गुजरात: अनावश्यक एंजियोप्लास्टी के चलते दो मरीज़ों की मौत, आयुष्मान भारत के तहत हुई थी सर्जरी

गुजरात के एक अस्पताल में आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थी दो मरीज़ों की एंजियोप्लास्टी के बाद मौत हुई थी. मामले की जांच में पता चला है कि इन मरीजों को एंजियोप्लास्टी की ज़रूरत नहीं थी पर अस्पताल ने पैसा बनाने के उद्देश्य से इस सर्जरी की योजना बनाई थी.

प्रतीकात्मक फोटो: सर्जरी करते डॉक्टर. (फोटो साभार: sswain_1999/Flickr, CC BY 2.0)

नई दिल्ली: आयुष्मान भारत योजना के तहत मरीजों की अनावश्यक सर्जरी की एक गुजरात से सामने आई है. इस सप्ताह अहमदाबाद के दो मरीजों की एक अस्पताल में खराब एंजियोप्लास्टी (हृदय स्टेंट डालने की एक प्रक्रिया) के कारण मौत हो गई.

रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में पता चला है कि इन मरीजों को एंजियोप्लास्टी की जरूरत ही नहीं थी. अस्पताल ने महज़ पैसा बनाने के उद्देश्य से इस सर्जरी की योजना बनाई, जबकि मरीज़ों की धमनियों (arteries) में रुकावट अपर्याप्त थी और स्टेंट डालने की कोई आवश्यकता नहीं थी.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस संबंध में गुजरात पुलिस ने अस्पताल के दो डॉक्टरों और मुख्य सीईओ कार्यकारी अधिकारी समेत इससे जुड़े दो अन्य लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.

मालूम हो कि जिन दो मरीजों की मौत हुई है, वे आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थी थे. इस योजना के तहत सर्जरी की फीस का भुगतान एक निजी स्वास्थ्य बीमा कंपनी द्वारा किया जाता है. स्वास्थ्य बीमा के लिए प्रीमियम का भुगतान केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है.

गुजरात का ख्याति मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में ये सर्जरी की गई थी. मामले के तूल पकड़ने के बाद इसे अब प्रधानमंत्री जन आरोग्य आयुष्मान भारत योजना के पैनल से हटा दिया गया है.

अखबार के अनुसार, एक जांच में सामने आया है कि अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट में दिखाई गई धमनियों में रुकावट का प्रतिशत असल में प्रक्रियाओं के मिले फुटेज से अधिक था.

उदाहरण के लिए, मृत मरीजों में से एक को अस्पताल ने 90% ब्लॉकेज बताया था, जबकि फुटेज से पता चला कि यह केवल 30-40% था. वहीं एक अन्य धमनी में बिल्कुल भी रुकावट नहीं थी, जबकि अस्पताल की रिपोर्ट में 80% ब्लॉकेज के दावे किए गए थे.

दूसरे मरीज के मामले में दायर एफआईआर में कहा गया है कि लेफ्ट एंटीरियर डेसेंडिंग आर्टरी (left anterior descending artery- एलएडी) के विभिन्न हिस्सों में रुकावट का प्रतिशत अलग-अलग था. एलएडी सबसे बड़ी धमनी होती है.

अस्पताल ने दावा किया था कि एलएडी में 90% रुकावट थी, जबकि फुटेज से पता चला कि यह 50-80% थी, वो भी दो अलग-अलग खंडों में. दाहिनी कोरोनरी धमनी में कोई रुकावट नहीं थी लेकिन अस्पताल की रिपोर्ट में दावा किया गया कि इसमें 90% रुकावट थी.

एंजियोप्लास्टी से पहले एंजियोग्राफी (कितनी रुकावट हुई है, यह जानने के लिए की जाने वाली जांच) होती है. मरीजों के अनुरोध पर अस्पताल एंजियोग्राफी की एक कॉम्पैक्ट डिस्क (सीडी) भी देता है. इस फ़ुटेज को आमतौर पर चिकित्सा या अन्य उद्देश्यों के लिए पोस्ट-ऑपरेटिव पूछताछ में इस्तेमाल किया जाता है.

पुलिस के मुताबिक, इन दो मरीजों के अलावा उसी गांव के पांच अन्य लोगों की भी एंजियोप्लास्टी हुई थी. उन्हें ऑपरेशन के बाद देखभाल के लिए शहर के दूसरे अस्पताल में भेजा गया है. इन सभी की पहचान अस्पताल द्वारा उनके गांव में आयोजित स्वास्थ्य जांच शिविर के दौरान की गई थी.

गुजरात पुलिस ने गुजरात स्टेट मेडिकल काउंसिल से डॉक्टरों का लाइसेंस निलंबित करने की सिफारिश की है. मेडिकल काउंसिल की कार्रवाई के बाद ही संबंधित डॉक्टरों को मरीजों का इलाज करने से रोका जा सकता है.

गौरतलब है कि इसी तरह का एक घोटाला 2012 में बिहार में हुआ था, जब 703 महिलाओं ने उन अस्पतालों, जो तत्कालीन राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत सूचीबद्ध थे, द्वारा की गई अनावश्यक सर्जरी के कारण अपना गर्भाशय खो दिया था. इस योजना के तहत भी प्रीमियम का भुगतान केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा किया जाता था.

एफआईआर संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों द्वारा दर्ज की गई थीं. हालांकि, एफआईआर दर्ज होने के चार साल बाद भी बिहार राज्य चिकित्सा परिषद एक भी आरोपी डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रही.