नई दिल्ली: बस्तर क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से सक्रिय संगठन ‘मूलवासी बचाओ मंच’ पर छत्तीसगढ़ सरकार के गृह मंत्रालय ने प्रतिबंध लगा दिया है. सरकार द्वारा 30 अक्टूबर, 2024 को जारी एक परिपत्र कहा गया है कि यह एक गैरकानूनी और विकास विरोधी संगठन है.
आदेश में कहा गया है कि यह संगठन केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में चलाए जा रहे विकास कार्यों और इनके संचालन के लिए स्थापित किए जा रहे पुलिस कैंपों का विरोध कर रहा और जनता को भड़का रहा है.
इसमें आगे कहा गया है कि यह संगठन न्यायिक प्रशासन में हस्तक्षेप कर रहा है और कानूनी रूप से स्थापित संस्थाओं की अवज्ञा को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण सार्वजनिक व्यवस्था और शांति में गड़बड़ी हुई और नागरिकों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है.
बस्तर के मूलवासी बचाओ मंच ने पिछले कुछ बरसों में पूरे इलाके के आदिवासियों के भीतर राजनीतिक और सामाजिक चेतना का प्रसार किया है.
सिलगेर आंदोलन के दौरान गठित हुए इस मंच ने अहिंसक तरीके से प्रतिरोध किया है, आदिवासियों को एकजुट किया है.छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया है. pic.twitter.com/0G0u2XiyGa
— Ashutosh Bhardwaj (@ashubh) November 19, 2024
मूलवासी बचाओ मंच बस्तर के आदिवासियों का एक संगठन है जो जंगलों के अंदर पुलिस व अर्धसैनिक बलों के कैंप खोलने का विरोध के कारण चर्चा में आया है. यह संगठन दावा करता है कि वह ‘जंगलों को बचाने, कॉरपोरेट कंपनियों द्वारा खदान खोलने का विरोध करने और इसके लिए उस इलाके में हो रहे सैन्यीकरण के खिलाफ’ आवाज उठाता है.
इस आंदोलन की शुरुआत बस्तर संभाग के सुकमा ज़िले के सिलगेर गांव से हुई थी, जहां 13 मई, 2021 की रात को अर्धसैनिक बलों द्वारा शिविर स्थापित किया गया था. इसका विरोध कर रहे ग्रामीणों पर 17 मई, 2021 को सुरक्षाबलों द्वारा फायरिंग की गई, इस घटना में तीन ग्रामीणों और लाठीचार्ज में एक गर्भवती महिला की जान चली गई थी और लगभग 18 लोग घायल हो गए थे.
इस घटना के बाद मूलवासी बचाओ मंच का गठन किया गया. तब से मूलवासी बचाओ मंच सिलगेर में धरना दे रहा है और यह आंदोलन अब सुकमा के अलावा बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और कांकेर जिलों में भी फैल गया है.
पिछले तीन साल से अधिक समय से बस्तर में अर्धसैनिक बलों के कैंपों की स्थापना के अलावा मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर समय-समय पर यह संगठन आंदोलन चलाता रहा है. हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने इस संगठन की अगुवाई में रैलियों और सभाओं में भाग लिया.
अलग-अलग समय में पुलिस के उच्च अधिकारियों ने इस संगठन के साथ माओवादियों के संबंध होने का आरोप लगाया. हालांकि, पूर्व में द वायर को दिए गए एक इंटरव्यू में इस संगठन से जुड़े नेताओं ने कहा कि यह आरोप गलत है. उनका दावा था कि वो स्थानीय लोगों के मुद्दे उठाते हैं.
इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले पर द वायर हिंदी ने कोंटा से पूर्व विधायक और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता मनीष कुंजाम से बात की. उन्होंने कहा कि वे इस फैसले का विरोध करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘अगर इसके ऊपर यह आरोप है कि यह माओवादियों का छद्म संगठन है और सरकारी प्रतिबंध की वजह यही है तो, हमारा मानना है कि सरकार को इस पर पूरी जानकारी देनी चाहिए. माओवादियों से इसका संबंध किस तरीके का है, कैसा है, यह सब बताना जरूरी है. हमारा मानना है कि जब तक कोई संगठन इस इलाके में संविधान पर आस्था रखते हुए, अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीक़े से आंदोलन करता है तो उस पर प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए, बल्कि उसके साथ संवाद करना चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसका एक और पहलू यह है कि ऐसा लगता है कि माओवादियों के साथ संबंध होने के बहाने सरकार इस संगठन को ही खत्म कर देना चाहती है. हमारी तरफ से बार-बार कहा जा रहा था कि सरकार माओवादियों के साथ भी बातचीत करे. बिना खूनखराबे के शांति और सुलह का कोई रास्ता ढूंढे. बस्तर में शांति की दिशा में पहल करने के लिए भी इस मूलवासी बचाओ मंच के युवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता था. इनके द्वारा बाचतीच के लिए माहौल बनाया जा सकता था. लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार इसे पूरी तरह से कुचल देना चाहती है. हम इस तरीके के प्रतिबंध के खिलाफ हैं.’
उन्होंने कहा, ‘मूलवासी बचाओ मंच के लोग कोई हिंसा नहीं कर रहे थे. इसलिए उन पर प्रतिबंध लगाने का कोई औचित्य नहीं है.’
आदिवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा कि उन्हें और मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध के बारे में वॉट्सऐप संदेशों से पता चला है. उन्होंने कहा कि मूलवासी मंच के अध्यक्ष रघु मोडियम को कलेक्टर द्वारा नोटिस के जरिये कानूनी रूप से जानकारी देनी चाहिए थी.
उन्होंने कहा, ‘हम पहले मूलवासी मंच के लोगों के साथ मिलेंगे और कलेक्टर के पास जाकर पूछेंगे कि बात क्या है. उसके बाद ही कोई कदम उठाएंगे.’
सोरी ने आरोप लगाया, ‘सरकार यहां अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाले हर व्यक्ति की आवाज़ को दबाना चाहती है. मूलवासी बचाओ मंच में ज्यादातर यहां के युवा जुड़े हुए हैं. और सरकारी प्रतिबंध उन सारे युवाओं को निशाना बनाता है.’
उन्होंने कहा, ‘बस्तर में अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले हर शख्स को नक्सली के नाम पर जेलों में डालना आम बात हो गई है. वर्तमान में सरकार जो कर रही है, उसका मकसद यह लग रहा है कि नक्सलवाद के नाम पर आदिवासी समाज को खत्म कर दिया जाए.’
उन्होंने कहा, ‘उनकी (सरकार) लड़ाई माओवादियों से नहीं, यहां के आदिवासियों से है. क्योंकि आदिवासी जब तक इन जंगलों में रहेंगे, यहां की खनिज संपदाओं को बड़े कॉरपोरेट और पूंजीपतियों को नहीं दे पाएंगे. आदिवासी उनके खिलाफ आखिरी दम तक आवाज उठाते ही रहेंगे. मूलवासी बचाओ मंच भी इसी के लिए लड़ रही है. अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा रही है.’
उन्होंने कहा, ‘मूलवासी बचाओ मंच को प्रतिबंध लगाकर सरकार आदिवासी आंदोलन को कुचलना चाहती है. अब इसके सदस्यों और कार्यकर्ताओं को बड़े पैमाने पर जेल में डाला जाएगा. कई लोगों को पहले ही गिरफ्तार किया गया.’
काफी कोशिश के बाद मूलवासी बचाओ मंच के अध्यक्ष रघु मोडियम से द वायर हिॆदी का संपर्क हो पाया. उनसे प्रतिबंध पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी. उन्होंने बताया कि उन्हें प्रतिबंध के बारे में अभी-अभी पता चला है. वह किसी दूरस्थ गांव में थे, जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं है.
उन्होंने कहा इस बारे में उनके कार्यकारी सदस्यों, जो अलग-अलग जिलों में हैं, के साथ बात करके अगले कदम के बारे में फैसला लेंगे.
फोरम अगेंस्ट कॉरपोरेटाइजेशन एंड मिलिटराइजेशन (एफएसीएएम) ने मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध की निंदा की. एफएसीएएम ने मांग की कि सरकार प्रतिबंध हटाए और गिरफ्तार किए गए इसके सभी सदस्यों को रिहा करे.