मुंबई: ‘यह कोई लहर नहीं बल्कि सुनामी थी. हम यहां तक कैसे पहुंचे? ऐसा फैसला कैसे आया? मुझे इसका मतलब नहीं समझ आ रहा.’
ये शब्द महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम से निराश उद्धव ठाकरे के हैं. उनकी पार्टी, शिव सेना (उद्धव बाल ठाकरे) ने इस बार कुल 89 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी महज़ 20 सीटों पर सिमट गई. वे अपनी कुल सीटों में से केवल 22% सीटें बरकरार रखने में कामयाब रहे. एकनाथ शिंदे के अलग होने के बाद ये पार्टी के लिये अस्तित्व की लड़ाई मानी जा रही थी.
मालूम हो कि ठाकरे से पहले उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने नतीज़ों के खिलाफ सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक पोस्ट कर मतपत्रों से दोबारा चुनाव कराने की मांग की थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा था कि महाराष्ट्र का नतीजा जनता की आवाज नहीं है.
महाराष्ट्राचा निकाल हा जनतेचा कौल नाही.ballot पेपर (मतपत्रिका) वर पुन्हा निवडणूक घ्या! जगाच्या पाठीवर
निवडणुकीत इतका फ्रॉड झाला नसेल.
हा निकाल मान्य नाही! नाही! त्रिवार नाही!
लोकशाही आणि महाराष्ट्राच्या स्वाभिमानाची लढाई सुरूच राहील!— Sanjay Raut (@rautsanjay61) November 23, 2024
मालूम हो कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सबसे ज्यादा 132 सीटें जीती हैं. वहीं, भाजपा की सहयोगी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 57 और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने 41 सीटें हासिल कर शानदार वापसी की है. इस तरह राज्य की 230 विधानसभा सीटें जीतते हुए ‘महायुति’ ने कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) गुट के महाविकास अघाड़ी गठबंधन को महज 50 सीटों पर रोक दिया है.
भाजपा का शानदार प्रदर्शन और कांग्रेस की शर्मनाक हार
राज्य में भाजपा के प्रदर्शन को देखें तो, पार्टी ने इस बार 2014 और 2019 से भी बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि तब ‘नरेंद्र मोदी लहर’ ने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया था.
विधानसभा चुनावों से कुछ ही समय पहले हुए देश के आम चुनाव में महाविकास अघाड़ी, जिसमें कांग्रेस, ठाकरे की सेना और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी शामिल है, ने जबरदस्त प्रदर्शन किया था. कांग्रेस की स्थिति में सुधार हुआ था, पार्टी ने यहां 14 सीटें जीती थीं. हालांकि, इस बार विधानसभा चुनाव में पार्टी जिन 103 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, उनमें से केवल 16 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई है.
कांग्रेस ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया है. 2014 में ‘मोदी लहर’ के बीच भी कांग्रेस 40 सीटें हासिल करने में सफल रही थी. 2019 में, पार्टी के लिए प्रचार करने वाले राष्ट्रीय नेताओं की अनुपस्थिति के बावजूद, कांग्रेस ने अपने दम पर 44 सीटें जीती थीं.
इस बार महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार में कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं ने अपनी उपस्थिति भी दर्ज करवाई. यहां कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक सभी बड़े नेताओं ने पार्टी के उम्मीदवारों के साथ-साथ अपने सहयोगियों के उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार किया, लेकिन पार्टी वोटों को अपने पक्ष में करने में कामयाब नहीं हो सकी. हार के बाद पार्टी नेताओं का कहना है कि वे आने वाले दिनों में इस नतीजे को लेकर ‘आत्मनिरीक्षण’ करेंगे.
महाविकास अघाड़ी में सबसे खराब प्रदर्शन शरद पवार की एनसीपी का रहा
कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र में पार्टी के प्रभारी रमेश चेन्निथला ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘ये नतीजे अविश्वसनीय और अस्वीकार्य हैं. मैं 38 साल से राजनीति में हूं. ऐसा परिणाम मैंने पहले कभी नहीं देखा. लोग त्रस्त हैं, हमने जमीनी हकीकत इतने समय तक देखी है. हम इस पर भरोसा नहीं कर सकते.’
हालांकि, एमवीए में सबसे खराब प्रदर्शन शरद पवार की पार्टी का रहा. एनसीपी के मैदान में उतारे गए 87 उम्मीदवारों में से केवल 10 ही जीत हासिल कर सके है. शरद पवार के पोते युगेंद्र अपने चाचा अजीत के खिलाफ एक लाख से अधिक वोटों के अंतर से हार गए.
शरद पवार ने अभी तक इस हार पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. लोकसभा चुनाव में गंभीर चुनौतियों के बीच उनकी पार्टी चुनाव लड़ी थी और 16 सीटों में से आठ जीतने में सफल रही थी. लेकिन इस बार उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया.
उनकी पार्टी को लगातार अपने मतदाताओं को अपने पार्टी चिन्ह को समझाने की चुनौती का सामना करना पड़ा. यहां गौर करें, चुनाव आयोग द्वारा कम से कम 163 निर्दलीय उम्मीदवारों को तुरही (trumpet) चिन्ह आवंटित किया गया था, जो एनसीपी पार्टी के शरद पवार गुट के चिन्ह, तुरही बजाता हुआ आदमी से मिलता-जुलता था.
इन 163 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 78 ने उन सीटों पर चुनाव लड़ा, जहां शरद पवार की पार्टी के उम्मीदवार मैदान में थे. उनमें से सात एनसीपी (शरद पवार) पार्टी के उम्मीदवारों के हमनाम भी थे.
हार के कई कारण
इस चुनाव में ऐसे कई कारक रहें, जिन्होंने महायुति के पक्ष में काम किया है. मुख्यमंत्री लड़की बहिन योजना (21 से 65 वर्ष की आयु वर्ग की पात्र महिलाओं को 1,500 रुपये की मासिक राशि की पेशकश करने वाली योजना) जो संसदीय चुनावों में महायुति की बड़ी हार के तुरंत बाद जुलाई में शुरू की गई थी, ने महायुति को फायदा पहुंचाया और महिलाओं को पक्ष में करने का काम किया. यह योजना 2.34 करोड़ महिलाओं तक पहुंचने में कामयाब रही.
एकनाथ शिंदे ने शनिवार (23 नवंबर) को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि महिला मतदाताओं ने महायुति को फिर से सत्ता हासिल करने में मदद की है. उन्होंने इस योजना की राशि बढ़ाने की भी बात कही. वहीं भाजपा के देवेंद्र फड़नवीस ने भी पार्टी के शानदार प्रदर्शन का श्रेय महिला मतदाताओं को दिया.
शुरुआत में इस योजना का विरोध करने और बाद में इसी तरह की योजना को अपने घोषणापत्र का हिस्सा बनाने के महाविकास अघाड़ी के फैसले का मतदाताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
बेरोजगारी से लेकर किसानों के संकट तक, महाराष्ट्र इस समय कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. सभी निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाता खुलकर अपनी समस्याएं भी बता रहे हैं. कृषि संकट के साथ-साथ रोजगार और शिक्षा में आरक्षण की मांग कर रहे मराठा समुदाय के युवाओं की नाराजगी ने राज्य के अधिकांश हिस्सों में महायुति विरोधी भावनाओं का संकेत भी दिया था. हालांकि, नतीजों ने जमीनी हकीकत को लगभग झुठला दिया, जिसमें भाजपा को मराठवाड़ा क्षेत्र में अच्छी खासी बढ़त हासिल हुई.
गौरतलब है कि बीते संसदीय चुनाव के अलावा, पिछले पांच वर्षों में राज्य में एक भी चुनाव नहीं हुआ है, चाहे वह जिला परिषद या निगम स्तर पर हो. बेहतर सड़कें, पानी और परिवहन जैसे मुद्दे विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में प्रमुख चर्चा का विषय बन गए थे. हालांकि, राज्य के शहरी क्षेत्रों में भी भाजपा और उसके सहयोगियों की भारी जीत को देखते हुए लगता है कि मतदाताओं ने वोट डालते समय इन मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया.
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