नई दिल्ली: विदेश मंत्रालय (एमईए) की ओर से दो लापता व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों को भेजे गए पत्र के अनुसार, कई भारतीय पुरुष जिन्हें धोखाधड़ी से रूसी सेना में भर्ती किया गया था और जबरन रूस-यूक्रेन सीमा पर युद्ध क्षेत्र में भेजा गया था, वे अभी भी लापता बताए जा रहे हैं.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के तंगधार के कुपवाड़ा निवासी मोहम्मद अमीन शेख (65) ने बताया कि उनके बेटे जहूर शेख (27) ने परिवार से आखिरी बार 31 दिसंबर 2023 को बात की थी.
जम्मू-कश्मीर के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के सेवानिवृत्त निरीक्षक शेख ने कहा, ‘उन्होंने कहा कि वे प्रशिक्षण के लिए जा रहे हैं और अगले तीन महीनों तक फोन पर उपलब्ध नहीं होंगे. लेकिन जब हमें जनवरी में रूस में भारतीयों की मौत के बारे में खबर मिलनी शुरू हुई, तो हम चिंतित हो गए और उनके नंबर पर कॉल किया. हम उनसे संपर्क नहीं कर पाए. हमें अभी तक उनसे कोई जवाब नहीं मिला है.’
मॉस्को स्थित भारतीय दूतावास को कई बार फोन करने पर भी अपने बेटे के बारे में कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिलने पर शेख और उनके दो अन्य बेटे विदेश मंत्रालय और यहां रूसी दूतावास से जवाब मांगने के लिए पिछले सप्ताह दिल्ली पहुंचे.
जहूर के बड़े भाई एजाज अमीन (31) ने कहा, ‘हमने रूसी दूतावास में एक याचिका दायर की है. उन्होंने कहा कि वे मामले की जांच कर रहे हैं. विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि कम से कम 15 भारतीय अभी भी लापता हैं और हालांकि रूसी सरकार सहयोग कर रही है, लेकिन जमीन पर उनके कमांडर जवाब नहीं हैं.’
अमीन ने बताया कि जहूर चंडीगढ़ में कृषि में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहा था और पार्ट टाइम नौकरी से 33,000 रुपये भी कमा रहा था.
अमीन ने कहा, ‘उन्होंने पिछले साल फीफा विश्व कप के दौरान कतर में कुछ महीनों तक काम किया था. रूस में सुरक्षा सहायक की नौकरी का वादा करने वाले एक यूट्यूब वीडियो को देखने के बाद वह रूस गया था. उसे रूसी सेना में शामिल होने के लिए झांसा दिया गया. वह सबका लाडला है,हमने उसे रूस भेजने के लिए पैसे उधार लिए.’
उन्होंने आगे बताया कि आखिरी बार 31 दिसंबर को परिवार ने जहूर के साथ एक घंटे से अधिक समय तक वीडियो कॉल पर बात की थी.
इसी तरह पंजाब के जालंधर निवासी जगदीप कुमार भी अपने भाई मनदीप (30) के बारे में सरकार से जवाब मांगने दिल्ली पहुंचे हैं, जो मार्च से लापता है.
कुमार ने कहा, ‘हमने आखिरी बार 3 मार्च को बात की थी. वह पहले आर्मेनिया गया था और वहां से उसे काम की तलाश में इटली जाना था. लेकिन, एक एजेंट ने उन्हें रूस भेज दिया और उसे रूसी सेना में भर्ती होने के लिए मजबूर किया. कुछ दिनों की ट्रेनिंग के बाद उन्हें युद्ध क्षेत्र में भेज दिया गया.’
कुमार ने दिल्ली में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मुलाकात की, जिन्होंने उन्हें बताया कि रूस में कम से कम 25 भारतीय अब भी लापता हैं.
कुमार ने कहा, ‘विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने हमें बताया कि रूसी सरकार मदद करना चाहती है, लेकिन ज़मीन पर मौजूद सेना कमांडरों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. मैंने फोन से रूसी अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की और गूगल ट्रांसलेट की मदद से उनसे बात की. उन्होंने मुझसे मनदीप का बैज नंबर मांगा, जो मेरे पास नहीं है.’
गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच रूसी सेना में तैनात कई भारतीयों की जान गई है. इस साल अगस्त महीने की शुरुआत में विदेश मंत्रालय ने संसद में बताया था कि इस युद्ध में अब तक आठ भारतीय नागरिकों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि 69 को रूसी सेना से जल्द रिहाई मिलने का इंतजार है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि नरेंद्र मोदी ने जुलाई में मॉस्को की अपनी यात्रा के दौरान पुतिन के साथ व्यक्तिगत रूप से इस मुद्दे को उठाया था.
अगस्त महीने में ही पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई परिवार राजधानी दिल्ली में मोदी सरकार के खिलाफ़ प्रदर्शन किया था. इन परिवारों की मांग की थी कि सरकार रूसी सेना में फंसे उनके परिजनों को जल्द से जल्द रिहा करवाए.
इसके बाद सितंबर महीने में चार भारतीय नागरिक स्वदेश लौट आए थे, जिन्हें धोखा देकर एक निजी रूसी सेना में भर्ती किया गया था और रूस-यूक्रेन युद्ध में लड़ने के लिए मजबूर किया गया था.
इसी साल जुलाई महीने में रूसी सेना के साथ युद्ध क्षेत्र में तैनात एक भारतीय नागरिक ने रिहाई की गुहार लगाई थी. पश्चिम बंगाल के कलिम्पोंग के रहने वाले 47 वर्षीय उर्गेन तमांग ने एक वीडियो जारी कर कहा था कि उसके समूह में 15 गैर-रुसी थे, जिनमें से 13 मारे गए हैं.