बांग्लादेश सरकार अडानी समूह के साथ विवादास्पद बिजली समझौते की समीक्षा करेगी

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने साल 2009 से 2024 के बीच शेख़ हसीना सरकार द्वारा हस्ताक्षरित सभी प्रमुख बिजली सौदों की समीक्षा करने का निर्णय लिया है, जिसमें अडानी समूह के साथ हुआ सौदा शामिल है.

बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना के साथ गौतम अडानी. फोटो: एक्स/@gautam_adani

नई दिल्लीः बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने रविवार (24 नवंबर) को घोषणा की है कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार द्वारा अडानी समूह के साथ किए गए बिजली समझौते की समीक्षा करेगी. 

खबर के मुताबिक, मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार द्वारा गठित एक समीक्षा समिति ने सिफारिश की है कि एक जांच एजेंसी, साल 2009 से 2024 के बीच हसीना सरकार द्वारा हस्ताक्षरित सभी प्रमुख बिजली समझौतों की जांच करे, जिनमें से एक अडानी समूह के साथ है. 

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यूनुस के कार्यालय के मुख्य सलाहकार द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि समिति वर्तमान में सात प्रमुख ऊर्जा और बिजली परियोजनाओं की समीक्षा कर रही है, जिसमें अडानी (गोड्डा) बीआईएफपीसीएल 1234.4 मेगावाट कोयला फायर्ड प्लांट शामिल है. यह कंपनी अडानी पावर लिमिटेड के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है. 

अन्य समझौते जिनकी समीक्षा की जानी है उनमें से एक है एक चीनी कंपनी द्वारा संचालित 1320 मेगावाट का कोल फायर्ड पावर प्लांट, और अन्य समझौतों में हसीना सरकार के करीबी माने जाने वाले व्यापारिक समूहों के साथ समझौते शामिल हैं.

समिति ने अपने बयान में कहा है कि उसने समझौतों को रद्द करने या उन पर विचार करने के लिए आंतरिक मध्यस्थता कानूनों के अनुसार पर्याप्त जानकारी एकत्र कर ली है. 

हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज मोयेनुल इस्लाम चौधरी की अध्यक्षता वाली समिति के एक पत्र का हवाला देते हुए जारी किए गए एक बयान में कहा गया है, ‘समिति को अन्य अनुबंधों का और अधिक विश्लेषण करने के लिए अतिरिक्त समय की आवश्यकता है. इसलिए हम समिति की सहायता के लिए एक या उससे अधिक, शीर्ष स्तरीय अंतरराष्ट्रीय कानूनी और जांच एजेंसियों की तत्काल नियुक्ति की सिफारिश करते हैं.’ 

शुरुआत से ही विवादों में रहा

अडानी का गोड्डा थर्मल पावर प्लांट शुरुआत से ही विवादों के केंद्र में रहा है.

विशेषज्ञों ने कहा था कि ढाका अत्यधिक कीमत पर बिजली की खरीद कर रहा है. वहीं बांग्लादेश के राजनीतिक दलों ने इसे ‘किसी गुप्त उद्देश्य से हस्ताक्षरित बेहद असमान सौदा’ कहा था.

साल 2023 में बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड (बीपीडी) ने अडानी पावर को पत्र लिखकर 2017 में हस्ताक्षरित समझौते को संशोधित करने के लिए कहा था.

बीपीडी के एक अधिकारी ने कहा था, ‘हमारे विचार में उन्होंने जो कोयले की कीमत (400 यूएस डॉलर प्रति एमटी) बताई है, वह अत्यधिक है. यह कीमत यूएस डॉलर 250/एमटी से कम होनी चाहिए, क्योंकि हम अपने अन्य थर्मल पावर प्लांट में आयातित कोयले के लिए इसी राशि का भुगतान कर रहे हैं.’ 

ज्ञात हो कि अगस्त 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे के तुरंत बाद अडानी समूह और ढाका के बीच 2017 के समझौते से पहले समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए थे.

भारत में विपक्षी दलों ने सवाल उठाया है कि क्या अडानी समूह और बांग्लादेश सरकार के बीच हुए सौदे में पीएम मोदी सीधे तौर पर शामिल थे.

‘अनुकूल नियम’

केंद्रीय विदेश मंत्रालय ने पिछले साल कहा था, ‘बिजली और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग भारत-बांग्लादेश संबंधों की पहचान बन गया है.’ 

हालांकि, अक्टूबर में अडानी समूह ने बांग्लादेश को 800 मिलियन डॉलर के बकाया बिजली बिल के संबंध में लिखा था, जिसके जवाब में बांग्लादेश के सरकारी बिजली विकास बोर्ड ने कहा था कि डॉलर संकट के बावजूद उन्होंने पहले ही 150 मिलियन डॉलर का भुगतान कर दिया है और बकाया राशि का भुगतान करने की उम्मीद कर रहे हैं. 

नवंबर में गोड्डा प्लांट से बिजली आपूर्ति आधी हो गई थी और बांग्लादेश को 1,600 मेगावाट से अधिक बिजली की कमी का सामना करना पड़ा. 

इस बीच भारत ने भी हाल ही में विद्युत् निर्यात नियमों में संशोधन किया है, जिसके तहत, पड़ोसी देशों को बिजली की आपूर्ति करने के लिए स्थापित थर्मल पावर प्लांटों से उत्पन्न उत्पाद को घरेलू स्तर पर बेचने के लिए मंजूरी दे दी गई थी. ऐसा तब किया जा सकता है, जब बाहरी देश भुगतान न कर रहे हों या बकाया चुकाने में देरी कर रहे हों. 

ज्ञात हो कि अडानी का प्लांट एकमात्र ऐसा प्लांट है जो अपना उत्पादन विदेशी बाजार में बेचता है. 

इस संशोधन को कुछ लोगों ने बांग्लादेश में उत्पन्न हुई राजनीतिक अस्थिरता के मद्देनज़र एक सुरक्षात्मक कदम के रूप में देखा था. 

अमेरिकी अभियोग और केन्या का निर्णय

पिछले हफ्ते केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने अडानी समूह के साथ सभी सौदों को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की घोषणा की थी, जिसमें जोमो केन्याटा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का ‘विवादास्पद’ अधिग्रहण भी शामिल था.

यह कदम अमेरिका द्वारा अडानी पर अभियोग लगाने के बाद आया था, जिसमें अमेरिकी न्याय विभाग और एसईसी ने उद्योगपति पर ‘बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी मामले’ में संलिप्त होने और उसे चलाने का आरोप लगाया था.