नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के संभल जिले में पुलिस ने दो महिलाओं समेत 25 मुसलमानों को गिरफ्तार किया है और समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क समेत करीब 2,500 लोगों पर मामला दर्ज किया है. यह हिंसा मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हुई थी.
अब तक चार मुसलमानों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन पुलिस ने दावा किया है कि उन्होंने भीड़ के खिलाफ किसी भी घातक हथियार का इस्तेमाल नहीं किया. सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो में पुलिस अधिकारियों और कॉन्स्टेबलों को भीड़ पर गोली चलाते हुए दिखाया गया है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि व्यापक रूप से साझा किए गए वीडियो में देखा गया हथियार एक पेलेट गन था.
रविवार की घटना के एक दिन बाद संसद के बाहर बोलते हुए बर्क ने आरोप लगाया कि कुछ अधिकारियों ने अपने निजी हथियारों के साथ-साथ अपनी सर्विस हथियारों से भी गोली चलाई और अपनी कारों को आग लगा दी. संभल पुलिस ने अभी तक उनके आरोपों का जवाब नहीं दिया है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने संसद के बाहर इन आरोपों को दोहराया और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की तथा उनके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की. उन्होंने आरोप लगाया कि यह घटना सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा कुंदरकी उपचुनाव में ‘वोटों की लूट’ से ध्यान हटाने के लिए की गई थी. यहां चौंकाने वाले परिणामों में भाजपा को जीत हासिल हुई है.
सपा प्रमुख ने आरोप लगाया कि मृतकों की मौत पुलिस की गोली से हुई.
हालांकि, मुरादाबाद के संभागीय आयुक्त (डिवीजनल कमिश्नर) आंजनेय कुमार सिंह ने कहा कि मारे गए चार मुसलमानों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि उन्हें देसी हथियारों से चलाई गई गोलियां लगी थीं. सिंह ने कहा, ‘हम इस मामले की आगे जांच करेंगे.’
उन्होंने रविवार को कहा था कि वे भीड़ के सदस्यों के बीच क्रॉस-फायरिंग में मारे गए थे, जिन्होंने पुलिस पर तीन तरफ से पत्थरों से हमला किया और यहां तक कि उन पर गोलियां भी चलाईं.
जिला प्रशासन ने इलाके में इंटरनेट बंद कर दिया है और संबंधित अधिकारियों की अनुमति के बिना किसी भी बाहरी व्यक्ति, सामाजिक संगठन या जनप्रतिनिधि के संभल में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है. जिला मजिस्ट्रेट राजेंद्र पेंसिया ने प्रतिबंधों को उचित ठहराते हुए एक आदेश में कहा कि जिले में माहौल ‘बेहद संवेदनशील’ बना हुआ है. संभल तहसील के सभी स्कूलों को भी सोमवार को बंद रखने का निर्देश दिया गया था.
वहीं, संभल के स्थानीय सांसद बर्क ने पूरी घटना की न्यायिक जांच की मांग की और कहा कि इसमें शामिल अधिकारियों पर तीनों लोगों की हत्या का मामला दर्ज कर उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए. तीनों मृतकों के परिवारों और विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उन्हें गोली मार दी.
बर्क ने कहा, ‘मैं सुप्रीम कोर्ट से मामले का संज्ञान लेने की मांग करता हूं.’ उन्होंने दावा किया कि हिंसा एक साजिश के तहत की गई थी.
उधर, इलाहाबाद स्थित एक सामाजिक समूह ‘नागरिक समाज इलाहाबाद’, जिसमें प्रमुख कार्यकर्ता और वकील शामिल हैं, ने संभल हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की है ताकि पता लगाया जा सके कि इसे किसने भड़काया और हिंसा में पुलिस की भूमिका क्या थी.
समूह ने उत्तर प्रदेश की अदालतों में कानूनी विवादों, खासकर जहां वे समाज में सांप्रदायिक शांति और सद्भाव से संबंधित हों, के निपटारे के तरीके पर गहरी चिंता व्यक्त की है. समूह ने कहा कि संभल इसका ज्वलंत उदाहरण है.
ज्ञात हो कि सिविल जज सीनियर डिवीजन आदित्य सिंह ने 24 नवंबर को मस्जिद के सर्वेक्षण का निर्देश दिया था. आठ वादियों ने मस्जिद में प्रवेश के अधिकार का दावा करने के लिए एक सिविल मुकदमे में आवेदन किया था. इन वादियों का नेतृत्व हिंदुत्व समर्थक वकील हरि शंकर जैन और हिंदू संत महंत ऋषिराज गिरि कर रहे थे.
संभल जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर मस्जिद को ‘ऐतिहासिक स्मारक’ के रूप में स्वीकार किया गया है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि इसे पहले मुगल बादशाह बाबर के निर्देश पर बनाया गया था. हालांकि, हिंदू याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि मस्जिद विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को समर्पित एक प्राचीन मंदिर का स्थल था. मुख्य वादी हरि शंकर जैन के वकील और बेटे विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 1529 में बाबर ने हरिहर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया और इसे मस्जिद में बदलने की कोशिश की थी.
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