नई दिल्ली: बांग्लादेश के चटगांव में एक हिंदू नेता को हिरासत में लिए जाने के विरोध में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़प के दौरान एक वकील की कथित तौर पर हत्या के बाद देश के अंतरिम मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने उसकी हत्या की निंदा की और जांच के आदेश दिए.
रिपोर्ट के अनुसार, यूनुस के कार्यालय के प्रेस सचिव द्वारा गुरुवार (26 नवंबर) को जारी एक बयान में कहा गया कि यूनुस ने लोगों से शांत रहने और किसी भी अप्रिय गतिविधियों में भाग लेने से दूर रहने का आग्रह किया है.
इसमें कहा गया है कि यूनुस ने चटगांव में सुरक्षा बढ़ाने के भी निर्देश दिए हैं. बयान में यह भी कहा गया कि, ‘अंतरिम सरकार किसी भी कीमत पर बांग्लादेश में सांप्रदायिक सद्भाव सुनिश्चित करने और उसे बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है.’
ख़बरों के अनुसार, वकील सैफुल इस्लाम की मंगलवार (26 नवंबर) को पुलिस और हिंदू नेता चिन्मय कृष्ण दास ब्रह्मचारी के समर्थकों के बीच झड़प के दौरान कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी. चिन्मय कृष्ण दास को इस झड़प से कुछ घंटे पहले स्थानीय अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया था और देशद्रोह के आरोप में हिरासत में लेने का आदेश दिया था.
डेली स्टार समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार, चट्टोग्राम जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष नाजिम उद्दीन चौधरी ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से बताया कि चिन्मय कृष्ण के अनुयायी इस्लाम को घसीटकर पास के एक कन्वेंशन सेंटर में ले गए और उन पर धारदार हथियारों से हमला किया.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया कि इस्लाम की पहचान ‘दास का बचाव करने वाले मुस्लिम वकील’ के रूप में की गई है. प्रोथोम एलो अखबार ने बताया कि इस्लाम एक सहायक सरकारी वकील थे.
इसी बीच, चिन्मय कृष्ण के समर्थकों ने कथित तौर पर उन्हें अदालत से जेल ले जा रही पुलिस वैन को कम से कम एक घंटे तक रोके रखा. पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करके भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की, जबकि भीड़ ने पुलिस पर गमले और पत्थर फेंके.
ज्ञात हो कि इस्कॉन से जुड़े और बांग्लादेश सम्मिलिता सनातनी जागरण जोत के प्रवक्ता चिन्मय कृष्ण पर अक्टूबर में बांग्लादेशी ध्वज का अपमान करने का आरोप लगाया गया था.
प्रोथोम एलो के अनुसार, मामले में दिए गए बयान में आरोप लगाया गया है कि जिस दिन पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना देश छोड़कर निकली थीं, उस रोज प्रभु और अन्य ने चटगांव में एक भीड़ को उकसाया था कि वह बांग्लादेशी झंडे की जगह इस्कॉन का भगवा रंग का झंडा लगा दे.
डेली स्टार ने बताया कि युवा, खेल और स्थानीय सरकार के सलाहकार आसिफ महमूद साजिब भुइयां ने रंगपुर में एक कार्यक्रम में कहा कि चिन्मय कृष्ण को किसी समुदाय के नेता के तौर पर नहीं बल्कि देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.
एपी ने बताया कि चिन्मय कृष्णा ने अगस्त से बांग्लादेशी हिंदुओं की सुरक्षा की मांग करते हुए कई रैलियों का नेतृत्व किया था.
ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार शाम को 200 से अधिक वकीलों ने इस्लाम की हत्या का विरोध किया तथा उन्होंने जिम्मेदार लोगों की गिरफ्तारी के लिए 24 घंटे का अल्टीमेटम जारी किया.
एक वकील के हवाले से कहा गया कि, ‘यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम एकजुट होकर आवश्यक कार्रवाई करेंगे और देश भर की सभी अदालतें अपना कामकाज बंद कर देंगी.’
भारत में चिंता जाहिर की
भारत के विदेश मंत्रालय ने चिन्मय कृष्णा के हिरासत आदेश पर ‘गहरी चिंता’ व्यक्त करते हुए कहा कि यह घटना बांग्लादेश में चरमपंथी तत्वों द्वारा हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर कई हमलों के बाद हुई है.
इसमें आगे कहा गया, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन घटनाओं के अपराधी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं, जबकि शांतिपूर्ण सभाओं के माध्यम से वैध मांगें प्रस्तुत करने वाले एक धार्मिक नेता के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं.’
बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने इस बारे में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नई दिल्ली का ‘निराधार’ बयान तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है और दोनों पड़ोसी देशों के बीच मित्रता की भावना के विपरीत है.
ढाका ने कहा, ‘बांग्लादेश सरकार को यह जानकर बेहद निराशा और दुख हो रहा है कि (चिन्मय कृष्णा की) गिरफ्तारी को कुछ वर्गों द्वारा गलत समझा गया है, क्योंकि (उन्हें) विशिष्ट आरोपों पर गिरफ्तार किया गया है.’ उन्होंने कहा कि यह मुद्दा बांग्लादेश के आंतरिक मामलों से संबंधित है.
इसमें कहा गया है कि, ‘यह बयान (भारत का) बांग्लादेश में सभी धर्मों के लोगों के बीच सद्भाव और इस संबंध में सरकार की प्रतिबद्धता को भी प्रतिबिंबित नहीं करता है.’
बता दें कि हसीना के सत्ता से हटने के बाद से भारत ने बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा का मुद्दा कई स्तरों पर उठाया है. ऐसा कहा भी जा रहा है कि ढाका की अंतरिम सरकार के साथ संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि नए प्रशासन में नागरिक समाज के सदस्य और छात्र कार्यकर्ता शामिल हैं, जिन्होंने नई दिल्ली के करीबी माने जाने वाली अवामी लीग सरकार की कथित तानाशाही के लिए आलोचना की है.
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना 5 अगस्त को भारत भाग आईं थीं, हालांकि इसके घंटे भर से भी कम समय बाद प्रदर्शनकारियों ने उनके प्रधानमंत्री कार्यालय परिसर पर धावा बोल दिया था.