वित्तीय वर्ष 2024 में बैंकों ने 1.7 ट्रिलियन रुपये के क़र्ज़ बट्टे खाते में डाले: सरकार

केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी द्वारा लोकसभा में बताए गए आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 में 1.7 ट्रिलियन रुपये के कर्ज बट्टे खाते में डाले गए हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटोः rupixen.com/Pixabay)

नई दिल्लीः बैंकों द्वारा वित्त वर्ष 2023-24 (वित्तीय वर्ष 24) में 1.7 ट्रिलियन रुपये के कर्ज बट्टे खाते (राइट-ऑफ) में डाले गए हैं. हालांकि यह एक बड़ी राशि है, फिर भी वित्तीय वर्ष 2023 में बट्टे खाते में डाले गए 2.08 ट्रिलियन रुपये के आंकड़े से कम है.

रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी द्वारा बताए गए आंकड़ों के अनुसार, यह पिछले पांच वर्षों में बट्टे खाते में डाले गए कर्ज की सबसे कम राशि है. 

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2020 में सबसे अधिक 2.34 ट्रिलियन रुपये के कर्ज राइट-ऑफ किए गए, इसके बाद वित्त वर्ष 2021 में 2.03 ट्रिलियन रुपये और वित्त वर्ष 2022 में 1.75 ट्रिलियन रुपये के ऋण बट्टे खाते में डाले गए थे.  

सरकारी बैंकों में पंजाब नेशनल बैंक ने सबसे अधिक 18,317 करोड़ रुपये के लोन बट्टे खाते में डाले, इसके बाद यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने 18,264 करोड़ रुपये और भारतीय स्टेट बैंक ने 16,161 करोड़ रुपये के लोन राइट-ऑफ किए. 

निजी क्षेत्र के बैंकों में एचडीएफसी बैंक 11,030 करोड़ रुपये के ऋण बट्टे खाते में डालने के साथ सबसे आगे है, इसके बाद एक्सिस बैंक 8,346 करोड़ रुपये और आईसीआईसीआई बैंक 6,198 करोड़ रुपये के साथ दूसरे एवं तीसरे स्थान पर रहे.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2024 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण को राइट-ऑफ किए जाने में 18.2% की कमी आई है, लेकिन कुल बैंकों के 20% से अधिक बैंकों ने इस वर्ष बट्टे खाते में डाले गए कर्ज में वृद्धि देखी है. 

ऋण को राइट-ऑफ में डालने का मतलब है कि बैंक उस ऋण को नुकसान मान लेते हैं, लेकिन इसका सीधा मतलब यह नहीं है कि कर्जदार इसे चुकाएगा नहीं. इस तरह के लोन राइट-ऑफ भारतीय रिज़र्व बैंक के मानदंडों और बैंक बोर्डों द्वारा तय की गई नीतियों के अनुसार किए जाते हैं.

राइट-ऑफ की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए वित्त राज्य मंत्री ने कहा, ‘राइट ऑफ में डाले जाने का यह मतलब नहीं है कि उधारकर्ता अपनी देनदारियों से मुक्त हो गया है. इसलिए, लोन राइट ऑफ करने से उधारकर्ता को कोई लाभ नहीं होता है. वह ऋण को चुकाने के लिए उत्तरदायी बना रहता है. और बैंक इन खातों से वसूली की कार्रवाई जारी रखता हैं.’ 

ऋणों को राइट-ऑफ खाते में इसलिए डाला जाता है ताकि गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (नॉन परफॉर्मिंग एसेट-एनपीए) को हटाकर बैंक बैलेंस शीट को क्लियर किया जा सके. हालांकि, बैंक कानूनी और वसूली तंत्र के माध्यम से बकाया राशि वसूल कर सकते हैं. कोई भी ऋण एनपीए का दर्जा तब पाता है जब मूल राशि के ब्याज का भुगतान 90 दिनों तक लंबित रहता है.

हालांकि, इस साल अगस्त में एक आरटीआई आवेदन के जवाब से पता चलता है कि पिछले पांच वर्षों में बैंक बट्टे खाते में डाले गए ऋणों में से 81.30% की वसूली करने में विफल रहे हैं.