रचनाकार का समय: मैं ‘टाइम-ट्रेवल’ करने के लिए लिखती और पढ़ती हूं   

इस सप्ताह से हम एक नई श्रृंखला शुरू कर रहे हैं जिसके तहत रचनाकार समय के साथ अपने संवाद को दर्ज करते हैं. पहली क़िस्त में पढ़िए प्रकृति करगेती का आत्म-वक्तव्य: त्रिकाल जब एक संधि पर आकर ठहर जाता है.

(बाएं) प्रकृति करगेती, (दाएं) साल्वाडोर डाली की द पर्सिस्टेंस ऑफ मेमोरी. (फोटो साभार: Facebook/@prakriti.kargeti/Britannica)

इस साल अक्टूबर की बात है, जब एक विषय ऐसा मिला जहां पर समय और लेखक केंद्र में थे. मेरे पास उस क्षण मंच था, माइक था, सामने श्रोता थे और हाथ में पर्चा था जिसपर मैंने वाक्य विन्यास का खेल खेला था. मैं अपनी बात कहने के लिए बिल्कुल तैयार थी. लेकिन शरीर में ऐसी कंपकंपी दौड़ी कि बात कहने के बावजूद वो बात कहीं पहुंची ही नहीं. वो एक अलग क्षण था. वहां से गुज़र कर आ चुकी हूं. लेकिन वो क्षण याद में इस तरह छप चुका है जैसे मेरी पहचान का हिस्सा हो. वो बार-बार याद आता है.

कर्ट वॉनएगट (Kurt Vonnegut) के उपन्यास ‘स्लॉटरहाउस फाइव’ में भूत, वर्तमान और भविष्य एक साथ घटते हैं. मुझे ये एक तरह की उपमा लगती है, जिसके ज़रिये ये कहा गया है कि भूतकाल हमेशा साथ रहता है. बार-बार घटता रहता  है. ऐसे में हम कह नहीं सकते कि जो हो रहा है वो भूत है, भविष्य है या वर्तमान है. जब मैं कोई कहानी सोचती हूं तो घट चुके समय पर आधारित वो मेरी आज की कहानी बनती है. लेकिन मेरा आज असल में है क्या?

समय के बारे में मैं प्रायः सोचती हूं. मेरी एक कविता का भी एक हिस्सा कुछ इस तरह है:

‘समय ख़ुद अमिट है
इस अमिट छवि को लेकर
वो न जाने कहां जाना चाहता है
और क्यों
चिल्लाता रहता है मुझपर हमेशा
कि मैं कहीं नहीं जा रहा
मैं यहीं रहूंगा
पर, रहता नहीं पास समय
बस चिल्लाते हुए बहता है
और कहता है
समय!
समय!
समय!
इस तरह
समय मुझे तलाक देकर
हमेशा मेरे पास रहता है’

मैं एक साधारण इंसान हूं, जिसका काम है लेखन. समय को दर्ज़ करते जाना मेरा धर्म है. इसलिए अपने समय में रहते हुए मुझे आने वाले समय को न समझ पाने का डर हमेशा बना रहता है. ये असल में कालजयता या लोकप्रियता की चिंता नहीं है. बल्कि बहते हुए समय से बिल्कुल अलग फेंक दिए जाने की चिंता है, क्योंकि समय की नदी में बहते रहना हर इंसान को अच्छा लगता है.

भौतिक विज्ञानी कार्लो रोवेली ने समय के बारे में कहा है कि ‘हम समय में मछली की तरह रहते हैं.’ अगर मैं समय से दूर हो गई तो तड़पकर मर जाऊंगी. आपको एक उदाहरण देती हूं. मुझे भोपाल के बड़े तालाब के पास पीडब्ल्यूडी से रिटायर्ड एक व्यक्ति मिले. उन्होंने बताया कि वो सुबह की सैर के समय अपने शौक के लिए मछली भी पकड़ते हैं. कहा कि कैसे मछली, तार के छोर पर लटके मेंढक को देखकर, तार के हुक पर अटक जाती है. लेकिन कभी-कभी मछवारे का साया देखकर वो डर भी जाती है. मुझे दरअसल, इसी साये से डर लगता है. लगता है जैसे कोई साया है जो प्रलोभन या कमज़ोरी को हुक पर लटकाएगा और तालाब से बाहर निकाल देगा. वो साया मौत हो सकती है, भटकाव हो सकता है, परिस्थिति हो सकती है या फिर राजनीतिक दबाव भी हो सकता है.

ऐसे कितने साये हैं, जिनकी वजह से समय को दर्ज करना रुक सकता है. मेरा बहते रहना रुक सकता है.

मेरे पास ढेर सारी चिंताएं हैं. पर्यावरण की, रोज़गार की, अपने हक़ की, दूसरों के हक़ की, उपभोक्तावाद की और न जाने क्या क्या. एक पुर्ज़ा बनकर ही सही लेकिन सभी की दुर्गति में मेरा योगदान भी होता है. फिर भी एक लेखक को इतनी राहत मिलती है कि वो सोचना नहीं छोड़ता. अपने हर अंधाधुन व्यवहार पर वो आत्मचिंतन कर सकता है. मुझे लगता है ये आत्मचिंतन उसकी सबसे बड़ी पूंजी है. इसी को शस्त्र बनाकर वो अपने समय, अपने व्यवहार और दूसरों के व्यवहार पर केंद्रित रचना करता है.

प्रकृति करगेती की किताबें. (साभार: संबंधित प्रकाशन)

अगर मुझसे पूछा जाए कि मैं क्यों लिखती हूं, तो मेरा एक ही जवाब है कि मैं दस्तावेज़ तैयार कर रही हूं. कहानी लिखकर मैं पाठक को किसी भी समय में ले जा सकती हूं.

तारीख़ वाला समय नहीं, किरदार की भावनाओं वाला समय. वो प्यार में है, या उसे डर लग रहा है, या वो हारा हुआ महसूस कर रही है, या वो लड़ने निकली है. वो कहां है, वो अपने जीवन के कौन से पड़ाव पर है, ये सब लेखक पन्ने-दर-पन्ने बुनता जाता है. मैं लिखती और पढ़ती इसीलिए हूं, ताकि मैं टाइम-ट्रेवल कर सकूं.

लेकिन इस जादूगरी की अपनी सीमाएं हैं. जैसे मुझे कालजयी शब्द से आपत्ति है. मुझे लगता है कि साहित्य काल से बड़ा नहीं होता. साहित्य, हर काल में प्रासंगिक हो सकता है. लेकिन काल को जीत नहीं सकता.

अगर मैं कहूं कि रामायण कालजयी है, तो लगेगा कि रामायण समय से बड़ी हो गई है. लेकिन रामायण असल में मानव मूल्यों को दर्शाती है, इसलिए प्रासंगिक है. जब पृथ्वी सिर्फ़ एक ठंडा गोला बनकर घूम रही होगी, तब भी काल होगा. लेकिन उसे दर्ज करने वाली सभ्यता ख़त्म हो चुकी होगी. बल्कि दर्ज होने की तो उसे ज़रूरत भी नहीं थी. अगर एलियंस हैं तो वो भी अपने समय को दर्ज कर रहे होंगे. लेकिन अंत में वो भी यही निष्कर्ष निकालेंगे कि असल में समय ने उन्हें दर्ज किया.

(प्रकृति करगेती युवा साहित्यकार हैं.)