नई दिल्ली: पूर्व राजदूतों, मुख्य सचिवों और अन्य उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर देश में बिगड़ते सांप्रदायिक संबंधों पर चिंता व्यक्त की.
पत्र में कहा गया है कि हिंदुओं, मुसलमानों और ईसाइयों के बीच तनावपूर्ण संबंधों ने अल्पसंख्यक समुदायों के लिए ‘अत्यधिक चिंता और असुरक्षा’ पैदा कर दी है. ऐतिहासिक मस्जिदों और दरगाहों के सर्वेक्षण की ताजा घटना सांप्रदायिक सद्भाव को झटका देने वाली है.
इस पत्र में हस्ताक्षर करने वालों में एन. सी. सक्सेना (भारत के योजना आयोग के पूर्व सचिव), नजीब जंग (दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल), शिव मुखर्जी (ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त), अमिताभ पांडे (भारत सरकार के अंतर-राज्यीय परिषद के पूर्व सचिव), एस.वाई. कुरैशी (भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त), नवरेखा शर्मा (इंडोनेशिया में भारत की पूर्व राजदूत) समेत कई अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी शामिल हैं.
पूर्व अधिकारियों ने कहा कि हालांकि देश विभाजन के दौरान और उसके बाद सांप्रदायिक अशांति के दौर से गुजरा था, लेकिन पिछले 10 वर्षों की घटनाएं काफी अलग हैं क्योंकि वे कई राज्य सरकारों और उनके प्रशासनिक तंत्र की पक्षपातपूर्ण भूमिका स्पष्ट रूप से दर्शा रही हैं.
भारत में बढ़ते सांप्रदायिक बयानबाजी का जिक्र करते हुए पत्र में कहा गया है, ‘जो गोमांस ले जाने के आरोप में मुस्लिम युवाओं को धमकाने या पीटने की घटनाओं से शुरू हुआ, वह निर्दोष लोगों की लिंचिंग में बदल गया…इसके बाद स्पष्ट रूप से नरसंहार के इरादे से इस्लामोफोबिक नफरत भरे भाषण दिए गए. हाल के दिनों में मुस्लिम व्यापारिक प्रतिष्ठानों का बहिष्कार करने का आह्वान भी किया गया है. और मुख्यमंत्रियों के इशारे पर एक क्रूर स्थानीय प्रशासन के नेतृत्व में मुस्लिम घरों को बेरहमी से बुलडोजर से गिराया गया है.’
उन्होंने लिखा कि ऐसी गतिविधि अभूतपूर्व है और इसने धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वाले सभी लोगों की आत्मा को झकझोर दिया है.
पत्र में कहा गया है कि भारत में सांप्रदायिक सद्भाव को सबसे ताजा झटका ‘अज्ञात कट्टरपंथी समूहों द्वारा मध्यकालीन मस्जिदों और दरगाहों पर पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग’ से लगा है, ताकि यह साबित किया जा सके कि उनका निर्माण हिंदू मंदिरों के ऊपर किया गया था.
पत्र में पूजा स्थल अधिनियम में स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद अदालतों द्वारा ऐसे मामलों से निपटने के तरीके पर भी सवाल उठाया गया.
पत्र में कहा गया कि ‘उदाहरण के लिए यह अकल्पनीय प्रतीत होता है कि एक स्थानीय अदालत सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (अजमेर शरीफ दरगाह) की 12वीं सदी की दरगाह पर सर्वेक्षण का आदेश दे.’
पत्र में लिखा, ‘इस अद्वितीय समावेशी स्थल पर वैचारिक हमला, हमारी सभ्यतागत विरासत पर हमला है और समावेशी भारत के उस विचार को विकृत करता है, जिसे आप स्वयं पुनर्जीवित करना चाहते हैं.’
उन्होंने प्रधानमंत्री से एक सर्वधर्म बैठक आयोजित करने और देश को आश्वस्त करने का भी आग्रह किया कि सरकार सांप्रदायिक सौहार्द, सद्भाव और एकीकरण सुनिश्चित करेगी.
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