बांग्लादेश ने अडानी समूह से फिर की बिजली की क़ीमत कम करने की मांग

बांग्लादेश के पावर एंड एनर्जी एडवाइज़र मुहम्मद फौज़ुल कबीर ख़ान ने अडानी समूह द्वारा बिजली की क़ीमत कम किए जाने की मांग उठाते हुए कहा है कि 'वे किसी भी बिजली उत्पादक को उन्हें ब्लैकमेल करने नहीं देंगे.'

(फोटो साभार: वेबसाइट/अडानी पावर)

नई दिल्ली: बांग्लादेश चाहता है कि अडानी समूह बिजली की कीमत कम करे. बिजली ख़रीद को लेकर बांग्लादेश और अडानी समूह के बीच हुआ करार पहले ही जांच के घेरे में है. बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत ने समझौते की जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई है.

करार रद्द होने की आशंका के बीच न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में बांग्लादेश के पावर एंड एनर्जी एडवाइज़र मुहम्मद फौज़ुल कबीर खान ने कहा है, ‘अनुबंध में विसंगतियों के मामले में फिर से बातचीत की जानी चाहिए. केवल भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी जैसी अनियमितताओं के मामले में ही अनुबंध रद्द किया जाना चाहिए… ये सब न्यायालय द्वारा दिए गए जांच के आदेश के निष्कर्षों पर आधारित होने चाहिए.’

खान कहा कि बांग्लादेश ने पहले ही कुछ मुद्दे उठाए हैं, जैसे कि देश को बिजली संयंत्र के लिए भारत द्वारा दी जाने वाली कुछ कर (टैक्स) छूटों से लाभ नहीं मिल रहा है. ये मुद्दे फिर से बातचीत के लिए आधार बन सकते हैं.

2023 में बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड (बीपीडी) ने अडानी पावर को पत्र लिखकर समझौते को संशोधित करने का अनुरोध किया था.

क्या अडानी पर लगे अमेरिकी आरोपों का करार पर होगा असर?

खान ने रॉयटर्स को बताया है कि अडानी के खिलाफ अमेरिका में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का बांग्लादेश के साथ हुए सौदे पर असर नहीं पड़ेगा. खान ने कहा, ‘चूंकि कीमतें अधिक हैं, इसलिए सरकार को सब्सिडी देनी होगी. …हम चाहते हैं कि बिजली की कीमतें औसत खुदरा कीमतों से नीचे आ जाएं.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में बांग्लादेश को भारत में उत्पादित बिजली के लिए सबसे ज्यादा चार्ज किया है- 14.02 टका प्रति यूनिट.

खान ने जोर देकर कहा कि देश में खुद के लिए बिजली पैदा करने की क्षमता है. उन्होंने कहा, ‘हम किसी भी बिजली उत्पादक को हमें ब्लैकमेल करने की अनुमति नहीं देंगे.’

शेख हसीना की सरकार गिरते ही शुरू हो गया था जांच का सिलसिला

शेख हसीना की सरकार गिरते ही उनके द्वारा अडानी समूह के साथ किए गए बिजली समझौते की समीक्षा की मांग तेज हो गई थी.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने साल 2009 से 2024 के बीच शेख़ हसीना सरकार द्वारा हस्ताक्षरित सभी प्रमुख बिजली सौदों की समीक्षा करने का निर्णय लिया है, जिसमें अडानी समूह के साथ हुआ सौदा शामिल है.

2017 में हुए एक समझौते के तहत अडानी समूह  झारखंड के गोड्डा जिले में अपनी इकाई से बांग्लादेश को बिजली निर्यात करता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि नवंबर 2017 में अडानी पावर (झारखंड) लिमिटेड (एपीजेएल) ने बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड के साथ किए समझौते के तहत बांग्लादेश को अगले 25 साल तक एजेपीएल के गोड्डा प्लांट द्वारा उत्पादित शत प्रतिशत प्रतिशत बिजली को ख़रीदना है.

अडानी का गोड्डा थर्मल पावर प्लांट शुरुआत से ही विवादों के केंद्र में रहा है. विशेषज्ञों ने कहा था कि ढाका अत्यधिक कीमत पर बिजली की खरीद कर रहा है. वहीं बांग्लादेश के राजनीतिक दलों ने इसे ‘किसी गुप्त उद्देश्य से हस्ताक्षरित बेहद असमान सौदा’ कहा था.

मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक समीक्षा समिति गठित की है, जिसने अडानी समूह से खरीदे जाने वाली बिजली के साथ-साथ सात प्रमुख बिजली परियोजनाओं की जांच के लिए एक जांच एजेंसी नियुक्त करने की सिफारिश की है.

हाल ही में देश के उच्च न्यायालय ने एक विशेषज्ञ समिति ने भी सौदे की समीक्षा करने का आदेश दिया.

उल्लेखनीय है कि बीते अक्टूबर में अडानी समूह ने बांग्लादेश को 800 मिलियन डॉलर के बकाया बिजली बिल के संबंध में लिखा था, जिसके जवाब में बांग्लादेश के सरकारी बिजली विकास बोर्ड ने कहा था कि डॉलर संकट के बावजूद उन्होंने पहले ही 150 मिलियन डॉलर का भुगतान कर दिया है और बकाया राशि का भुगतान करने की उम्मीद कर रहे हैं.

नवंबर में गोड्डा प्लांट से बिजली आपूर्ति आधी हो गई थी और बांग्लादेश को 1,600 मेगावाट से अधिक बिजली की कमी का सामना करना पड़ा.

इस बीच भारत ने भी हाल ही में विद्युत् निर्यात नियमों में संशोधन किया है, जिसके तहत, पड़ोसी देशों को बिजली की आपूर्ति करने के लिए स्थापित थर्मल पावर प्लांटों से उत्पन्न उत्पाद को घरेलू स्तर पर बेचने के लिए मंजूरी दे दी गई थी. ऐसा तब किया जा सकता है, जब बाहरी देश भुगतान न कर रहे हों या बकाया चुकाने में देरी कर रहे हों.

ज्ञात हो कि अडानी का प्लांट एकमात्र ऐसा प्लांट है जो अपना उत्पादन विदेशी बाजार में बेचता है.

इस संशोधन को कुछ लोगों ने बांग्लादेश में उत्पन्न हुई राजनीतिक अस्थिरता के मद्देनज़र एक सुरक्षात्मक कदम के रूप में देखा था.