राजस्थान: अजमेर दरगाह के बाद ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ मस्जिद के सर्वेक्षण की मांग उठी

अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद को लेकर जारी बयान में दावा किया है कि इसमें संस्कृत कॉलेज और मंदिर होने के सबूत मिले हैं. दरगाह शरीफ़ से पैदल दूरी पर स्थित यह मस्जिद एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक है.

अढ़ाई दिन का झोपड़ा. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Varun Shiv Kapur)

नई दिल्ली: राजस्थान की प्रसिद्ध अजमेर शरीफ के सर्वेक्षण की मांग के बाद अब दरगाह के पास स्थित ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ मस्जिद के सर्वे की मांग की गई है. इस मस्जिद को ऐतिहासिक माना जाता है और देश की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक बताया जाता है. ये मस्जिद दरगाह से 5 मिनट की पैदल दूरी पर है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्मारक है.

मालूम हो कि हाल ही में हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने स्थानीय अदालत में एक याचिका दायर कर दरगाह शरीफ में सर्वे की मांग करते हुए दावा किया था कि इसके नीचे पहले एक शिव मंदिर था. इसे लेकर अदालत ने  27 नवंबर को अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, एएसआई और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अब अजमेर के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर बयान जारी किया है. उन्होंने दावा किया है कि इस मस्जिद में संस्कृत कॉलेज और मंदिर होने के सबूत मिले हैं.

उन्होंने कहा कि इसे आक्रमणकारियों ने उसी तरह ध्वस्त कर दिया, जिस तरह उन्होंने नालंदा और तक्षशिला जैसे ऐतिहासिक शिक्षा स्थलों को ध्वस्त किया था. जैन के अनुसार, मस्जिद पर हमला कर के संस्कृति, सभ्यता और शिक्षा पर हमला हुआ.

जैन ने दावा किया कि एएसआई के पास इस जगह से मिली 250 से ज्यादा मूर्तियां हैं. और इस जगह पर स्वास्तिक, घंटियां और संस्कृत के श्लोक लिखे हैं. उन्होंने आगे कहा कि ये मूल रूप से 1,000 साल से ज्यादा पुराना है. और इसका जिक्र ऐतिहासिक किताबों में भी किया गया है. जैन ने पहले भी इस तरह की मांग की थी कि इस जगह पर मौजूदा धार्मिक गतिविधियों को रोका जाना चाहिए. और एएसआई को कॉलेज के पुराने गौरव को वापस लौटाना सुनिश्चित करना चाहिए.

एएसआई के अनुसार, इस बात कि संभावना है कि यहां ढाई दिनों का मेला (उर्स) लगता था. इसी कारण से इसका नाम ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ पड़ा. इसका जिक्र हरविलास शारदा की किताब (Ajmer: Historic and Descriptive) में भी मिलता है.

इस किताब में 1911 में हर बिलास सारदा ने लिखा है, ‘ये नाम 18वीं शताब्दी के अंतिम सालों में आया. जब फकीर अपने धार्मिक नेता पंजाब शाह की मृत्यु की ढाई दिनों का उर्स मनाने के लिए यहां इकट्ठा होने लगे. शाह पंजाब से अजमेर आए थे.’

सारदा के अनुसार, सेठ वीरमदेव काला ने 660 ई. में जैन त्योहार ‘पंच कल्याण महोत्सव’ के उपलक्ष्य में एक जैन मंदिर बनवाया था.

सारदा ने आगे लिखा है, ‘चूंकि अजमेर में जैन पुरोहित वर्ग के रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, इसलिए ये मंदिर बनवाया गया. हालांकि, बाद में यहां की संरचनाओं को 1192 में मुहम्मद गौरी के नेतृत्व में गोर के अफगानों ने कथित तौर पर नष्ट कर दिया था और संरचना को मस्जिद में बदल दिया गया था.’

वहीं, एएसआई का इस मस्जिद के बारे कहना है कि इसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने लगभग 1200 ई. में शुरू किया था, जिसमें स्तंभों में नक्काशीदार खंभे इस्तेमाल किए गए थे. स्तंभों वाला (प्रार्थना) कक्ष नौ अष्टकोणीय (8 कोणों वाले डिब्बों में विभाजित) है और केंद्रीय मेहराब के ऊपर पर दो छोटी मीनारें हैं.

कुफिक और तुगरा शिलालेखों से उकेरी गई तीन केंद्रीय मेहराबें इसे एक शानदार वास्तुशिल्प देती हैं.

ज्ञात हो कि इससे पहले मई महीने में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने भी ऐसी ही मांग की थी. देवनानी अजमेर उत्तर सीट से विधायक हैं. उन्होंने कुछ जैन मुनियों के दावे के आधार पर इस जगह पर एएसआई के सर्वेक्षण की मांग की थी.

उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों के साथ इस जगह के दौरे भी किए थे. उनका भी दावा था कि इस यहां कभी एक संस्कृत विद्यालय और एक मंदिर हुआ करता था.

गौरतलब है कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में मुगलकालीन जामा मस्जिद के को लेकर इसी तरह का दवा हुआ था, जिसके बाद हुए विवादास्पद सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा में चार लोगों की गोली लगने से मौत हो गई थी, जिसके बाद देशभर में एक बार फिर मंदिर-मस्जिद विवाद ने तूल पकड़ लिया है.