नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने गुरुवार (5 दिसंबर) को राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में बताया कि छत्तीसगढ़ के हसदेव वन क्षेत्र में परसा ईस्ट केते बासन (पीईकेबी) खदान में 94,460 पेड़ काटे गए हैं.
यादव ने संसद को बताया, ‘छत्तीसगढ़ सरकार से जुलाई, 2024 में प्राप्त जानकारी के अनुसार, परसा ईस्ट केते बासन खदान में 94,460 पेड़ काटे गए हैं और प्रतिपूरक वनरोपण, खदान सुधार और स्थानांतरण के रूप में 53,40,586 पेड़ लगाए गए हैं. इसके अलावा राज्य ने बताया है कि आने वाले वर्षों में खनन गतिविधियों के लिए इस जंगल में 2,73,757 पेड़ काटे जाने हैं.’
मंत्री ने यह जवाब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के सांसद पीपी सुनीर के उस सवाल के जवाब में दिया जिसमें वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) द्वारा पीईकेबी क्षेत्र में खनन के बारे में की गई सिफारिशों के बारे में पूछा गया था. इसके अलावा, मंत्री से यह बताने के लिए कहा गया कि क्या डब्ल्यूआईआई ने खनन विस्तार से उत्पन्न होने वाले संभावित मानव-पशु संघर्षों के बारे में चेतावनी दी थी और क्या सरकार ने ऐसे संघर्षों की संभावना वाले क्षेत्रों की पहचान की है.
मंत्री से यह भी पूछा गया कि पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बावजूद इस क्षेत्र में खनन की मंजूरी देने के पीछे क्या कारण हैं, साथ ही हसदेव क्षेत्र में खनन के लिए काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या भी बताई जाए.
यादव ने अपने जवाब में बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने हसदेव-अरण्य कोयला क्षेत्र के जैव विविधता मूल्यांकन अध्ययन का काम भारतीय वानिकी, अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद को सौंपा था, जिसने डब्ल्यूआईआई के साथ मिलकर अध्ययन किया और रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी. यह रिपोर्ट बाद में 14 जून, 2021 को केंद्र सरकार को सौंपी गई.
मंत्री ने कहा, ‘उक्त रिपोर्ट में अन्य बातों के साथ-साथ यह सुझाव दिया गया है कि गेज-झिंक जलग्रहण क्षेत्र में आने वाले आवंटित चार समीपवर्ती कोयला ब्लॉक अर्थात तारा (15), परसा (13) पीईकेबी (14) और केते एक्सटेंशन (12), जो या तो पहले से ही खोले जा चुके हैं या वैधानिक मंजूरी/टीओआर स्वीकृत होने के अग्रिम चरण में हैं, उन पर सतही जल और जैव विविधता के प्रबंधन के लिए उचित संरक्षण उपायों सहित सख्त पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के साथ खनन के लिए विचार किया जा सकता है.’
उल्लेखनीय रूप से वन प्रबंधन और विकास परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण के प्रति सरकार के दृष्टिकोण ने पर्यावरणविदों और आदिवासी समूहों के बीच चिंताएं पैदा की हैं. आलोचकों का तर्क है कि वनीकरण और पुनर्वनीकरण परियोजनाओं के लिए सरकार का जोर प्राकृतिक वनों की बहाली के बजाय वाणिज्यिक वृक्षारोपण को तरजीह देता है.
मालूम हो कि हसदेव अरण्य 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ घना जंगल है, जो छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था. हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी. बाद में 2013 में खनन शुरू हो गया था.
मालूम हो कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के सत्ता में आते ही पिछले साल दिसबंर में हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा पूर्व और केते बासन (पीईकेबी) दूसरे चरण विस्तार कोयला खदान के लिए पेड़ काटने की कवायद पुलिस सुरक्षा घेरे के बीच बड़े पैमाने पर हुई थी.
स्थानीय प्रशासन ने दावा किया था कि उसके पास पीईकेबी-II में पेड़ काटने के लिए सभी आवश्यक अनुमतियां हैं, जो पीईकेबी-I खदान का विस्तार है.
इससे पहले वन विभाग ने मई 2022 में पीईकेबी चरण-2 कोयला खदान की शुरुआत करने के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी, जिसका स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था. बाद में इस कार्रवाई को रोक दिया गया था.