गुजरात: गोहत्या के झूठे मामले को लेकर पुलिसकर्मियों, गवाहों के ख़िलाफ़ आपराधिक कार्रवाई का आदेश

गोधरा में जुलाई 2020 में दो लोगों के ख़िलाफ़ हत्या के इरादे से गोवंश ले जाने के आरोप में केस दर्ज किया गया था. अब अदालत ने इसे ख़ारिज करते हुए दो आरोपियों को बरी कर दिया और निर्देश दिया कि झूठे केस के लिए तीन पुलिसकर्मियों और दो पंच गवाहों के ख़िलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज की जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Allen Allen/Flickr CC BY 2.0)

नई दिल्ली: गुजरात के गोधरा में पंचमहल जिले की सत्र अदालत ने निर्देश दिया है कि जुलाई 2020 में दो व्यक्तियों के खिलाफ कथित तौर पर कथित गोहत्या के लिए मवेशियों को ले जाने के आरोप में दर्ज झूठे मामले के लिए तीन पुलिसकर्मियों और दो पंच गवाहों, जिनमें एक ‘गोरक्षक’ भी शामिल है, के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज की जाए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों व्यक्तियों को बरी करते हुए अदालत ने यह भी आदेश दिया कि चार वर्ष पहले उनके वाहन से जब्त किए गए पशुओं को तत्काल प्रभाव से उनके मालिक को वापस सौंप दिया जाए.

5वें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश परवेज अहमद मालवीय ने मंगलवार को अपने आदेश में जिला न्यायालय के रजिस्ट्रार आरएस अमीन को सहायक हेड कांस्टेबल रमेशभाई नरवतसिंह और शंकरसिंह सज्जनसिंह, पुलिस सब-इंस्पेक्टर एमएस मुनिया और दो पंच गवाहों- मार्गेश सोनी और दर्शन उर्फ ​​पेंटर पंकज सोनी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता अधिनियम की धारा 248 (सीआरपीसी की धारा 211) के तहत आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ झूठी आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया.

अदालत ने रजिस्ट्रार को उपरोक्त निर्देश के लिए अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया, जबकि पंचमहल के एसपी को दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया.

अदालत ने दो आरोपियों – खेड़ा के रुदन निवासी नजीरमिया सफीमिया मालेक और गोधरा के वेजलपुर निवासी इलियास मोहम्मद दावल को बरी कर दिया. उनके खिलाफ 31 जुलाई, 2020 को गोधरा बी डिवीजन पुलिस स्टेशन में पशु क्रूरता अधिनियम, 1860 की धाराओं के तहत दर्ज मामले में कथित तौर पर मवेशियों – एक गाय, एक भैंस और भैंस के बछड़े – को वध के लिए ले जाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था.

अदालत ने बचाव पक्ष की दलील को बरकरार रखते हुए कहा कि मामला केवल संदेह के आधार पर दर्ज किया गया था और अभियोजन पक्ष इसे साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है.

अदालत ने पंच गवाह मार्गेश सोनी की गवाही को अविश्वसनीय करार दिया और उसे ‘स्टॉक गवाह’ कहा, जो पुलिस के पीछे रहता है और पुलिस के निर्देशानुसार सामने आता है. अदालत ने कहा कि चूंकि मार्गेश सोनी ने स्वीकार किया है कि वह एक गोरक्षक है, इसलिए इससे उसकी विश्वसनीयता पर भारी संदेह पैदा होता है.

अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील पर विचार किया कि अभियोजन पक्ष का मामला- कि गोवंश को ले जा रहे वाहन को वासापुर चौराहे पर जब्त कर लिया गया था – का मतलब है कि दो पंच गवाहों को ‘पुलिस द्वारा बुलाया गया था’ जबकि उनका घर घटनास्थल से 8 से 10 किलोमीटर दूर था और इस प्रकार, वे स्थानीय निवासी नहीं थे, जो पंचनामा करते समय एक अनिवार्य प्रोटोकॉल है.

अदालत ने कहा, ‘उक्त पंच गवाह एक गोरक्षक था और पहले भी वह पशुओं के कई मामलों में पंच रह चुका है… अदालत उसकी गवाही पर कायम न रहने का विकल्प चुन सकती है.’

अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील पर भी विचार किया कि चूंकि घटना जुलाई 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान हुई थी, इसलिए केवल वे लोग ही बाहर आ सकते थे जिन्हें अपेक्षित पास परमिट जारी किया गया था. अदालत ने माना कि शिकायतकर्ता पुलिस अधिकारी ने स्वीकार किया था कि पंचों को उसने फोन करके बुलाया था, लेकिन उसने उनके लिए ऐसे पास परमिट की व्यवस्था नहीं की थी, न ही उसने अपने उच्च अधिकारियों से इसके लिए अनुमति ली थी.

इसे ‘झूठे अभियोजन’ का मामला बताते हुए अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील को भी बरकरार रखा कि मालेक केवल उस पिकअप वैन का चालक था, जिसके लिए दावल ने उसे खेड़ा जिले के रुदन गांव से अपने पशुपालन के व्यवसाय के लिए खरीदे गए मवेशियों को ले जाने के लिए भुगतान किया था, लेकिन जब पुलिस ने वाहन को रोका तो दावल उसमें मौजूद नहीं था.

अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील पर भी विचार किया कि दावल द्वारा खरीदे गए मवेशी पशु पालन के लिए थे और पुलिस को रुदन गांव के सरपंच द्वारा जारी किया गया खरीद का मूल प्रमाण पत्र दिखाया गया था, जिसमें कहा गया था कि दावल ने जर्सी गाय को मोहम्मदमिया फकरूमिया मालेक नामक व्यक्ति से खरीदा था.

अदालत ने यह भी आदेश दिया कि जब्त पशु, जिन्हें पंजरापोल (आश्रय गृह) भेजा गया था, उन्हें बिना कोई पैसा लिए तुरंत दावल को सौंप दिया जाना चाहिए.

इसके अलावा, अदालत ने निर्देश दिया कि यदि अभियोजन पक्ष, राज्य और पंजरापोल इस निर्णय की तिथि से 30 दिनों की अवधि के भीतर दावल को उक्त जानवरों की कस्टडी वापस देने में असमर्थ हैं, तो राज्य को दावल को उक्त जानवरों की खरीद कीमत 80,000 रुपये के साथ-साथ जब्ती की तिथि से उक्त राशि की वसूली तक 9% का साधारण वार्षिक ब्याज देना होगा.

अदालत ने राज्य को पंजरापोल, दोषी पुलिस अधिकारियों और पंच गवाहों से संयुक्त रूप से और अलग-अलग उक्त राशि वसूलने की भी छूट भी दी है.

इसके अलावा, अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा पुलिसकर्मियों और पंच गवाहों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग करने वाली एक अर्जी को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि अभियोजन पक्ष गुजरात हाकोर्ट के समक्ष उक्त आदेश को चुनौती देना चाहता है क्योंकि यह उनका वैधानिक अधिकार है.

अदालत ने कहा, ‘यदि इस अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया जाता है, तो उक्त आदेश के आधार पर शुरू की जाने वाली सभी कार्यवाही स्वतः ही समाप्त हो जाएगी. इसलिए, अभियोजन पक्ष द्वारा उठाए गए तर्क पर विचार नहीं किया जा सकता है और पूर्ण सुनवाई के बाद गुण-दोष के आधार पर पारित आदेश पर रोक नहीं लगाई जा सकती है.’