नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 14 जनवरी 2025 से शुरू होने वाले महाकुंभ मेले को लेकर कहा है कि अगर जिले में गंगा नदी में सीवेज के प्रवाह को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो इस मेले में आने वाले करोड़ों तीर्थयात्रियों के स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा.
चालीस दिवसीय महाकुंभ मेला में 14 जनवरी को मकर संक्रांति स्नान से शुरू होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि स्नान के साथ समाप्त होगा. इसमें दुनिया भर से लाखों श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है.
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, इस संबंध में एनजीटी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें दावा किया गया है कि शहर के रसूलाबाद से संगम तक आठ किलोमीटर के क्षेत्र में 50 नालों से गंगा नदी में सीवेज गिर रहा है.
इस मामले को लेकर एनजीटी ने इस साल सितंबर में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के अधीन एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था और उसे 23 नवंबर तक निवारक उपायों के बारे में एक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था.
एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 29 नवंबर के आदेश में कहा, ‘उच्चस्तरीय समिति ने ऐसी कोई रिपोर्ट दाखिल नहीं की है और न ही रिपोर्ट दाखिल करने या समय बढ़ाने की मांग करते हुए उससे कोई लिखित अनुरोध प्राप्त हुआ है.’
पीठ में न्यायिक सदस्य जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल भी शामिल हैं, जिन्होंने उत्तर प्रदेश के वकील की इस दलील पर गौर किया कि 28 नवंबर को मुख्य सचिव द्वारा रिपोर्ट दाखिल करने के लिए एक विस्तार की मांग के बारे में उन्हें भेजे गए संचार में टाइपोग्राफिक त्रुटि थी.
ट्रिब्यूनल ने संचार पर ध्यान देते हुए कहा, ‘भले ही हम तरह के अनुरोध को स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन ट्रिब्यूनल ने 23 सितंबर, 2024 को आदेश पारित किया था, फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि 7 नवंबर तक एचपीसी द्वारा कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई थी.’
ट्रिब्यूनल ने रेखांकित किया कि गंगा नदी के प्रदूषण का मुद्दा ‘समयानुसार संवेदनशील मामला’ है. एनजीटी ने कहा, ‘मुद्दा कुंभ मेले के शुरू होने से पहले गंगा नदी में अनुपचारित सीवेज के प्रवाह को रोकने से संबंधित है. करोड़ों लोग मेले में आएंगे और अगर नदी में ऐसे सीवेज के प्रवाह को रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया तो उनका स्वास्थ्य प्रभावित होगा. हम उम्मीद करते हैं कि एचपीसी इस मुद्दे पर संवेदनशील होगी.’
ट्रिब्यूनल ने सरकारी वकील के रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए 15 दिन का समय मांगने के अनुरोध पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा, ‘जब राज्य सरकार के वकील का कहना है कि रिपोर्ट पहले ही तैयार की जा चुकी है और इसे मूल्यांकन और हस्ताक्षर के लिए मुख्य सचिव के समक्ष रखा गया है. यदि ऐसा है, तो हम यह समझने में विफल रहे कि रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 15 दिन का समय क्यों मांगा गया है.’
राज्य के वकील के अनुरोध पर विचार करते हुए रिपोर्ट दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाता है. मामले में अगली सुनवाई नौ दिसंबर को होगी.
एनजीटी ने आगे ये भी कहा कि हालांकि, वह राज्य के पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव की व्यक्तिगत उपस्थिति का निर्देश देने को इच्छुक है, लेकिन वकील के ‘त्वरित कार्रवाई’ और भविष्य में कोई देरी नहीं होने के आश्वासन पर विचार करते हुए वह खुद को रोक रहा है.
गौरतलब है कि ये याचिका वकील सौरभ तिवारी ने दायर की है, जिस पर 1 जुलाई की सुनवाई में ट्रिब्यूनल ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट पर गौर करते हुए कहा था कि कार्रवाई रिपोर्ट दर्शाती है कि संबंधित खंड में नदी का पानी ‘आचमन’ उद्देश्यों के लिए पीने योग्य गुणवत्ता का नहीं है.