भगत सिंह के ख़िलाफ़ ‘आपत्तिजनक टिप्पणियों’ पर भारत ने पाकिस्तान को कड़ा विरोध जताया

पाकिस्तानी नेवी के एक रिटायर कमोडोर ने कहा था कि भगत सिंह की ‘उपमहाद्वीप की आज़ादी की लड़ाई में कोई भूमिका नहीं थी.’ संसद में विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि इसे लेकर पाकिस्तान सरकार को कड़ा विरोध दर्ज कराया गया है. 

भगत सिंह (फोटो साभार: Wikimedia Commons)

नई दिल्लीः विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार (6 दिसंबर) को बताया कि भारत ने भगत सिंह पर एक सेवानिवृत्त पाकिस्तानी नौसेना कमोडोर द्वारा की गई ‘आपत्तिजनक टिप्पणियों’ पर पाकिस्तान के साथ कड़ा विरोध दर्ज कराया था. इन्हीं ‘आपत्तिजनक टिप्पणियों’ के चलते एक पाकिस्तानी नागरिक निकाय ने वहां की एक स्थानीय अदालत को सूचित किया था कि लाहौर के एक चौराहे का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने की योजना रद्द कर दी गई है. 

विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने शुक्रवार को लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी.

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया गया, ‘भारत सरकार ने पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों के संबंध में हालिया रिपोर्टों पर ध्यान दिया है और राजनयिक स्तर पर  इस घटना के संबंध में पाकिस्तान सरकार को कड़ा विरोध दर्ज कराया है.’ 

मंत्रालय ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान के समक्ष सांस्कृतिक विरासत पर हमलों, बढ़ती असहिष्णुता और पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति सम्मान की कमी से संबंधित मुद्दों को भी उठाया. 

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘सरकार और पूरा देश भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शहीद भगत सिंह के अमूल्य योगदान का सम्मान करता  है.’ 

कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा, ‘शहीद भगत सिंह की पुण्यतिथि हर साल भारत और विदेशों में मनाई जाती है. विदेशों में भारत के राजनयिक मिशन भी शहीद भगत सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम आयोजित करते हैं.’

ज्ञात हो कि दिसंबर 1928 में भगत सिंह ने शिवराम राजगुरु के साथ मिलकर लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की यह सोचकर हत्या कर दी थी कि वह लाला लाजपत राय की मौत के लिए जिम्मेदार था. इस अपराध के लिए भगत सिंह को बाद में दोषी ठहराया गया और मार्च 1931 में 23 साल की उम्र में उन्हें फांसी दे दी गई. 

पूर्व पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी की आपत्ति के बाद चौराहे का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने की योजना रद्द 

पाकिस्तानी अखबार डॉन की 10 नवंबर की रिपोर्ट के अनुसार, एक पूर्व सैन्य अधिकारी की ‘अवेयरनेस ब्रीफ’ को लाहौर नगर निगम द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों के साथ लाहौर हाईकोर्ट में दायर की गई थी. 

नगर निगम के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सेवानिवृत्त कमोडोर तारिक मजीद द्वारा आवेदन दायर किया गया था, जिसमें कहा गया कि शादमान चौक का नाम भगत सिंह चौक नहीं होना चाहिए. हाईकोर्ट में दायर याचिका का आवेदन मिलने के बाद हमने चौराहे का नाम बदलने के फैसले को वापस ले लिया.’ 

चार पेज के विवरण में सेवानिवृत्त कमोडोर मजीद ने तर्क दिया कि भगत सिंह की ‘उपमहाद्वीप के स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं थी.’

मजीद ने सिंह को ‘आज के संदर्भ में एक क्रांतिकारी नहीं बल्कि एक अपराधी और आतंकवादी बताया,’ ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी की हत्या की थी और इस अपराध के लिए उन्हें और उनके दो अन्य साथियों को फांसी दी गई थी.

मजीद ने यह भी तर्क दिया कि भगत सिंह एक घोषित नास्तिक थे.

उन्होंने कहा, ‘इस अपराधी को ‘शहीद कहना बेहद अपमानजनक है’ और इस्लाम के अनुसार शहीद शब्द की अवधारणा का जानबूझकर अपमान करना है.’

बता दें कि यह विवाद दिसंबर 2012 का है, जब नगर निगम ने लाहौर के भीतर विभिन्न सड़कों, चौराहों और अंडरपासों का नाम बदलने का प्रस्ताव रखा था, जिसमें फवारा चौक शादमान का नाम बदलकर ‘भगत सिंह चौक’ करने का सुझाव भी शामिल था.

एक अखबार में इस प्रस्ताव की घोषणा के बाद इसके खिलाफ आपत्तियां दर्ज की गईं, जिसके बाद एक स्थानीय पाकिस्तानी गैर सरकारी संगठन- भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन ने सिंह के सम्मान में चौराहे का नाम बदलने के प्रस्ताव की वकालत करते हुए लाहौर हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी. 

सितंबर 2018 में हाईकोर्ट ने लाहौर के मेयर को नाम बदलने के आवेदन पर ‘कानून के अनुसार’ निर्णय लेने का निर्देश देते हुए मामले को बंद कर दिया. 

इस साल मार्च में भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष इम्तियाज राशिद कुरैशी ने शादमान चौक का नाम भगत सिंह के नाम पर रखने के प्रस्ताव पर निर्णय लेने में विफलता के कारण अवमानना ​​कार्यवाही के लिए याचिका दायर की थी, जिसके बाद अदालत ने प्रांतीय और जिला सरकारों से जवाब मांगा था.