नरेगा संघर्ष मोर्चा का शिवराज सिंह चौहान को पत्र: फंड, मजदूरी और समय पर भुगतान की मांग

नरेगा संघर्ष मोर्चा (जो कि मनरेगा से जुड़े श्रमिकों और कार्यकर्ताओं का संगठन है) का एक प्रतिनिधिमंडल 6 दिसंबर, 2024 को भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव से मिला और अपनी मांगों का एक ज्ञापन सौंपा.

दिल्ली के जंतर मंतर पर मनरेगा श्रमिकों का धरना प्रदर्शन. (फोटो साभार: ट्विटर/@anumayhem)

नई दिल्ली: नरेगा संघर्ष मोर्चा ने दिल्ली के जंतर मंतर पर चल रहे अपने दो दिवसीय धरने को शुक्रवार (6 दिसंबर, 2024) को विराम देते हुए ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा.

इस पत्र में उन्होंने लोकसभा में उनके मंत्रालय द्वारा हाल में किए गए दावों का खंडन किया और अपनी लंबे समय से चली आ रही मांगों को दोहराया. ये मांगें हैं: मनरेगा के लिए पर्याप्त फंड, मजदूरी में बढ़ोतरी, समय पर भुगतान, और तकनीकी प्रक्रियाओं का अंत.

नरेगा संघर्ष मोर्चा ने मंत्री को संबोधित पत्र में बिंदुवार तरीके से अपने मुद्दों को रखा है, जिसे नीचे पढ़ा जा सकता है:

समय पर भुगतान

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दावा किया है कि 99% मनरेगा मजदूरी भुगतान समय पर किया जा रहा है. यानी 15 दिनों के भीतर (जैसा कि अधिनियम के तहत निर्धारित है). यह बहुत भ्रामक दावा है. यह आंकड़ा भुगतान आदेश जारी करने से संबंधित है. श्रमिकों के खातों में मजदूरी जमा करने से नहीं.

ग्रामीण विकास मंत्रालय अच्छी तरह जानता है कि दोनों के बीच अक्सर लंबा अंतराल होता है. 2021-22 के लिए 3 करोड़ मनरेगा मजदूरी भुगतानों के हालिया लिबटेक विश्लेषण से पता चलता है कि लगभग आधे मामलों में खातों में जमा करने में 15 दिनों से अधिक का समय लगता है. कोई भी मनरेगा मजदूर आपको बताएगा कि लंबे समय तक देरी अभी भी बड़े पैमाने पर है.

बजट

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने दावा किया है कि मनरेगा बजट में हर साल 10,000 या 20,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होती है. यह सच नहीं है. शायद ग्रामीण विकास मंत्रालय का मतलब यह कहना था कि हर साल, मनरेगा को प्रारंभिक बजट आवंटन के बाद 10-20,000 करोड़ रुपये का ‘अनुपूरक आवंटन मिलता है. यह पिछले कुछ वर्षों से सच है. लेकिन केवल इसलिए क्योंकि प्रारंभिक आवंटन बहुत कम है. पूरे वित्तीय वर्ष में, संयुक्त प्रारंभिक और अनुपूरक आवंटन हमेशा समय पर मजदूरी का भुगतान करने के लिए आवश्यक राशि से बहुत कम होता है. बढ़ी हुई मजदूरी दर पर मनरेगा की मांग को पूरा करने के लिए जो आवश्यक होगा, उसकी तो बात ही छोड़ दें.

जॉब कार्डों का निरस्तीकरण

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने माना कि पिछले कुछ वर्षों में कई जॉब कार्ड रद्द किए गए हैं लेकिन इसके लिए राज्यों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. यह भ्रामक दावा है, क्योंकि राज्य अक्सर केंद्र के दबाव में जॉब कार्ड रद्द कर देते हैं ताकि 100% आधार सीडिंग, 100% एबीपीएस पात्रता आदि सुनिश्चित की जा सके.

पश्चिम बंगाल के लिए फंड रोकना इस मामले में भी केंद्र ने राज्य सरकार को दोषी ठहराने की कोशिश की है (इस मामले में कथित भ्रष्टाचार के लिए). लेकिन केंद्र सरकार ने कभी भी यह स्पष्ट नहीं किया कि भ्रष्टाचार के आरोप क्या है, या इस पर पश्चिम बंगाल सरकार के साथ अपने पत्राचार को जारी करने के लिए सहमत नहीं हुआ. किसी भी मामले में. मनरेगा की धारा 27 किसी विशिष्ट शिकायत के आधार पर ‘उचित समय के लिए अस्थायी निलंबन से अधिक कुछ भी अधिकृत नहीं करती है. यह निश्चित रूप से केंद्र को उन श्रमिकों के वेतन को रोकने के लिए अधिकृत नहीं करता है जो पहले से ही काम कर चुके हैं.

हम आपसे आग्रह करते हैं कि आप संसद और जनता को गुमराह करने के बजाय वास्तविक मु‌द्दों पर ध्यान दें. हम जल्द से जल्द आपके साथ इन मामलों पर चर्चा करने का निवेदन भी करते हैं.