नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सांसदों ने हाल ही में अमेरिका और खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय मीडिया नेटवर्क – ओसीसीआरपी पर मोदी सरकार को अस्थिर करने और संसद न चलने देने की साजिश रचने का आरोप लगाया था. भाजपा ने राहुल गांधी को भी ‘गद्दार’ कहते हुए उनके अमेरिका और ओसीसीआरपी के साथ मिलीभगत की बात कही थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, अब अमेरिकी दूतावास ने शनिवार (7 दिसंबर) को भाजपा के इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे ‘निराशाजनक’ बताया है.
दूतावास ने अमेरिका के विदेश विभाग द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मीडिया रिपोर्ट्स में किसी भी हेर-फेर से साफ इनकार करते हुए कहा है कि वे केवल पत्रकारों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए स्वतंत्र मीडिया का समर्थन करते हैं. वे स्वतंत्र मीडिया संगठनों के संपादकीय निर्णयों को प्रभावित नहीं करते हैं.
मालूम हो कि गुरुवार (5 दिसंबर) को सोशल मीडिया मंच एक्स पर भाजपा ने अपने आधिकारिक एकाउंट से कई ट्वीट कर आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ पार्टी पर लक्षित हमलों और ‘भारत को अस्थिर करने’ के प्रयासों के पीछे अमेरिकी विदेश विभाग का हाथ है.
इन आरोपों के पीछे भाजपा ने फ्रांसीसी खोजी मीडिया आउटलेट, मेदियापार की एक रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें दावा किया गया है कि ओसीसीआरपी अमेरिकी विदेश विभाग के यूएसएआईडी द्वारा वित्त पोषित है.
इससे पहले गुरुवार को ही संसद के भाजपा सदस्यों ने लोकसभा में कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर हमला करने के लिए मेदियापार की इसी रिपोर्ट का इस्तेमाल किया था और आरोप लगाया था कि वह ओसीसीआरपी और अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के साथ मिलीभगत कर मोदी सरकार को गिराना चाहते हैं. इस आरोप को भाजपा की सोशल मीडिया पोस्ट में भी दोहराया गया.
अमेरिकी दूतावास ने भाजपा के आरोपों को निराशाजनक बताया
भाजपा के इस आरोप पर अब अमेरिकी दूतावास के प्रवक्ता ने प्रतिक्रिया देते हुए शनिवार को कहा कि यह निराशाजनक है कि भारत में सत्तारूढ़ पार्टी इस तरह के आरोप लगा रही है.
प्रवक्ता ने आगे कहा कि अमेरिकी सरकार ‘प्रोग्रामिंग पर स्वतंत्र संगठनों के साथ काम करती है जो पत्रकारों के लिए पेशेवर विकास और क्षमता निर्माण प्रशिक्षण का समर्थन करती है.यह प्रोग्रामिंग इन संगठनों के संपादकीय निर्णयों या दिशा को प्रभावित नहीं करती है.’
अमेरिकी दूतावास का कहना है कि अमेरिका ‘लंबे समय से दुनिया भर में मीडिया की स्वतंत्रता का हिमायती रहा है.’
प्रवक्ता के अनुसार, ‘एक स्वतंत्र प्रेस किसी भी लोकतंत्र का एक अनिवार्य घटक है, जो सत्ता में बैठे लोगों की जवाबदेही तय करती है.’
ज्ञात हो कि भाजपा ने एक्स पर पोस्ट किया था कि ओसीसीआरपी की 50% फंडिंग सीधे अमेरिकी विदेश विभाग से आती है और ओसीसीआरपी ने डीप स्टेट एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए एक मीडिया टूल के रूप में काम किया है, जिसका स्पष्ट उद्देश्य प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाकर भारत को अस्थिर करना है.
बता दें कि इस मामले पर अभी तक भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.
गौरतलब है कि बीते सप्ताह जब राहुल गांधी की पीएम मोदी की तुलना अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की लुप्त होती याददाश्त से करने संबंधित एक टिप्पणी सामने आई थी, तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी.
मंत्रालय ने कहा था कि भारत-संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के साथ एक बहुआयामी साझेदारी साझा करता है और यह साझेदारी दोनों पक्षों की वर्षों की दृढ़ता, एकजुटता, आपसी सम्मान और प्रतिबद्धता से बनी है. ऐसी टिप्पणियां मधुर और मैत्रीपूर्ण संबंधों के अनुरूप नहीं हैं और भारत सरकार की स्थिति का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं.
रफाल मुद्दे पर मेदियापार की रिपोर्ट भाजपा खारिज कर चुकी है
मालूम हो कि मौजूदा समय में जिस मेदियापार की रिपोर्ट का भाजपा हवाला दे रही है, इससे पहले वो इसी संगठन की रफाल मामले पर की गई रिपोर्ट को खारिज कर चुकी है.
रफाल मुद्दे पर मेदियापार की आखिरी रिपोर्ट 14 दिसंबर 2023 में आई थी, जब संगठन ने अपनी जांच में दावा किया था कि भारत भ्रष्टाचार के आरोपों में फ्रांसीसी न्यायाधीशों द्वारा जांच को रोक रहा था.
मेदियापार ने 14 दिसंबर 2023 की अपनी रिपोर्ट में लिखा था, ‘यह अब एक स्थापित तथ्य है: अति-राष्ट्रवादी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भारत को फ्रांसीसी रक्षा और विमानन कंपनी दासो द्वारा निर्मित 36 रफाल लड़ाकू विमानों की बिक्री से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले को हर कीमत पर दफनाने की इच्छुक है.’
अपनी नवीनतम जांच में मेदियापार ने कहा है कि उसकी रिपोर्ट मुख्य रूप से सार्वजनिक दस्तावेजों और ओसीसीआरपी के संस्थापक ड्रू सुलिवन और कई वरिष्ठ अमेरिकी सिविल सेवकों द्वारा जर्मन ब्रॉडकास्टर एनडीआर को दिए गए साक्षात्कारों पर निर्भर है. हालांकि, एनडीआर ने बाद में इस जांच के प्रकाशन से खुद को अलग कर लिया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ओसीसीआरपी ने कई अमेरिकी सरकारी चंदे को स्वीकार किया है, जिसे वह कुछ देशों में जांच पर खर्च करने के लिए बाध्य है, जिसे अमेरिका प्राथमिकता वाला मामला मानता है.
हालांकि, मेदियापार की रिपोर्ट में भारत को निशाना बनाने वाले किसी भी अमेरिकी विदेश विभाग के अनुदान का संदर्भ नहीं है.
ओसीसीआरपी ने मेदियापार के आरोपों का खंडन किया
गौरतलब है कि ओसीसीआरपी ने मेदियापार के इन आरोपों का खंडन किया है, और इस रिपोर्ट को ‘बिल्कुल गलत’ बताया है.
इस संबंध में ओसीसीआरपी ने अपनी वेबसाइट पर एक बयान प्रकाशित कर इस रिपोर्ट को ‘बिल्कुल गलत’ बताते हुए कहा है, ‘ओसीसीआरपी की पत्रकारिता पर कोई दबाव नहीं है और कोई भी चंदादाता हमारी रिपोर्टिंग को प्रभावित नहीं करता है.’
संगठन ने आगे दावा किया है कि इस लेख के लेखकों में से एक ‘हमारे नेटवर्क का असंतुष्ट पूर्व सदस्य’ था. हालांकि इस दावे को मेदियापार ने ध्यान भटकाने वाला बताकर खारिज कर दिया है.
ओसीसीआरपी का ये भी कहना है कि ये रिपोर्ट ‘हमारे काम में कमी या बताये जा रहे किसी दबाव का एक भी उदाहरण देने में असमर्थ है और ये महज संकेत और आशंका जताने पर निर्भर है.’
इसने आगे कहा, ‘डोनेशन से चलने वाले मीडिया संगठन के तौर पर ओसीसीआरपी ने अपनी संपादकीय प्रक्रिया में कई सेफगार्ड इस्तेमाल किए हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हम स्वतंत्रता बनाए रखें और दुनिया भर में हमारे पत्रकार और सदस्य केंद्र उन ख़बरों को सामने ला सकें, जो उनके अनुसार महत्वपूर्ण और बताने लायक हैं.’