नई दिल्ली: गुजरात के पोरबंदर की एक अदालत ने 1997 के एक मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बरी कर दिया है. अदालत ने यह फैसला सबूतों की कमी के चलते दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को ‘संदेह से परे’ साबित करने में असफल रहा.
मामला और पृष्ठभूमि
मामला 1997 का है, तब भट्ट पोरबंदर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) थे. भट्ट और सिपाही वाजुभाई चौ (जिनकी अब मौत हो चुकी है.) पर आरोप था कि उन्होंने शिकायतकर्ता नारन जादव को पुलिस हिरासत में शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित कर जबरन अपराध स्वीकार कराया.
नारन जादव, जो 1994 के हथियार तस्करी मामले के 22 आरोपियों में से एक थे. अभियोजन पक्ष के अनुसार, पोरबंदर पुलिस की एक टीम 5 जुलाई, 1997 को जादव को अहमदाबाद के साबरमती सेंट्रल जेल से ट्रांसफर वारंट पर पोरबंदर स्थित भट्ट के आवास पर ले गई थी.
जादव ने आरोप लगाया था कि उन्हें भट्ट के आवास पर प्रताड़ित किया गया. उन्होंने दावा किया कि उन्हें और उनके बेटे को बिजली के झटके दिए गए.
हालांकि, कोर्ट को इन आरोपों में सच्चाई नहीं मिली है, जिसके परिणामस्वरूप शनिवार (7 दिसंबर, 2024) को अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मुकेश पंड्या ने संजीव भट्ट को बरी कर दिया.
अदालत के निर्णय की मुख्य बातें:
अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि शिकायतकर्ता से अपराध कबूल कराने के लिए खतरनाक हथियारों और धमकियों का इस्तेमाल किया गया.
अदालत ने यह भी कहा कि उस समय सरकारी अधिकारी के रूप में कार्यरत भट्ट के खिलाफ अभियोजन के लिए आवश्यक अनुमति प्राप्त नहीं की गई थी.
अन्य मामले और सजाएं
1990 हिरासत में मौत का मामला: संजीव भट्ट को जामनगर में हिरासत में हुई मौत के मामले में पहले ही आजीवन कारावास की सजा दी जा चुकी है.
1996 ड्रग प्लांटिंग मामला: मार्च 2024 में भट्ट को राजस्थान के एक वकील को फंसाने के लिए ड्रग्स प्लांट करने के मामले में 20 साल कैद की सजा सुनाई गई.
इसके अलावा भट्ट, पत्रकार और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरबी श्रीकुमार के साथ 2002 के गुजरात दंगों से संबंधित साक्ष्य गढ़ने के एक मामले में भी आरोपी हैं.
भट्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर 2002 के गुजरात दंगों में भूमिका का आरोप लगाया था, जिसे विशेष जांच दल (SIT) ने खारिज कर दिया था.
संजीव भट्ट को 2011 में निलंबित कर दिया गया था और 2015 में ‘अनधिकृत अनुपस्थिति’ के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया. वह इस समय राजकोट सेंट्रल जेल में बंद हैं.
ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि भले ही अदालत का हालिया फैसला उनके लिए राहत लेकर आया है, लेकिन उनके खिलाफ अन्य गंभीर मामलों के चलते उनका कानूनी संघर्ष अभी जारी रहेगा.