नई दिल्ली: एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म लोकल सर्कल्स द्वारा भारत के 159 ज़िलों में किए गए सर्वे से देश में फैले भ्रष्टाचार की समस्या एक बार फिर उजागर हुई है.
सर्वे के परिणाम बताते हैं कि पिछले 12 महीनों में 66% व्यापारिक फर्मों (सर्वे में शामिल) ने रिश्वत दी है. यह सर्वे मई 22 से 30 नवंबर 2024 के बीच किया गया, जिसमें 18,000 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं.
सर्वे से मिले प्रमुख निष्कर्ष
सर्वे में 18,000 प्रतिक्रियाएं मिलीं, जिनमें से 54 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें मजबूरी में रिश्वत देनी पड़ी, जबकि 46 प्रतिशत ने काम जल्दी होने के लिए स्वेच्छा से रिश्वत दी.
रिपोर्ट में कहा गया कि व्यापारिक फर्मों को सरकारी दफ्तरों से काम जल्दी करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, जैसे अनुमति प्राप्त करने, संपत्ति से जुड़े कामों या लाइसेंस की डुप्लीकेट कॉपी लेने के लिए.
सर्वे रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 83% रिश्वत नकद में दी गई और 17% रिश्वत वस्तु (उपहार) के रूप में दिया गया है.
सर्वे में शामिल व्यापारियों में से केवल 16 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने बिना रिश्वत दिए अपना काम निकाल लिया, और 19 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें रिश्वत देने की जरूरत नहीं पड़ी यानी उनके सामने ऐसी स्थिति ही नहीं बनी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की रिश्वत जबरन वसूली के समान है, क्योंकि सरकारी एजेंसियों के साथ काम करते समय अगर रिश्वत नहीं दी जाती तो परमिट, सप्लायर क्वालिफिकेशन, फाइल, ऑर्डर और भुगतान रोक दिया जाता है.
75% रिश्वत कानूनी, मेट्रोलॉजी, खाद्य, औषधि और स्वास्थ्य जैसे विभागों के अधिकारियों को दी गई. जीएसटी, प्रदूषण विभाग, नगर निगम और बिजली विभाग में भी रिश्वतखोरी के मामले सामने आए.
डिजिटलाइजेशन का प्रभाव?
रिपोर्ट के अनुसार, कई विभागों में डिजिटल सिस्टम लागू किया गया है और सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, लेकिन रिश्वतखोरी अब भी बंद दरवाजों के पीछे जारी है.
पीटीआई के मुताबिक, डेलॉयट इंडिया के पार्टनर आकाश शर्मा ने कहा कि बढ़ते भ्रष्टाचार के मामलों और बदलते नियमों को देखते हुए कंपनियों को अपने एंटी-करप्शन फ्रेमवर्क को मजबूत करना चाहिए.
सरकार द्वारा ई-प्रोक्योरमेंट मार्केटप्लेस जैसे कदम उठाए गए हैं, लेकिन रिश्वतखोरी रोकने के लिए और सख्त उपायों की जरूरत है. हालांकि पिछले 12 महीनों में रिश्वत की संख्या और कुल राशि में कमी आई है.