मानवाधिकार दिवस: दो साल से सलाखों के पीछे क़ैद पत्रकार रूपेश, उच्च शिक्षा बनी सहारा

जुलाई 2022 से जेल में बंद रूपेश कुमार सिंह की जीवनसाथी उनके कारावास के अनुभव दर्ज कर रही हैं, साथ ही बता रही हैं कि बिहार की जेलों में क़ैदियों के साथ कितना अमानवीय बर्ताव होता है. लेकिन रूपेश की जिजीविषा बरक़रार है.

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रूपेश अपने परिवार के साथ. (फोटो साभार: ईप्सा/इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

10 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस अवसर पर झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की जीवनसाथी ईप्सा शताक्षी ने उनके संघर्ष के अनुभव दर्ज किए हैं. मानवाधिकार मुद्दों पर काम करने वाले रूपेश दो साल से अधिक समय से जेल में हैं. उन्हें माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.

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29 नवंबर का दिन बहुत ही खास रहा हमारे लिए, खास इसलिए क्योंकि करीब 2 साल के बाद एक बेटा अपने पिता की गोद में बैठा, और मैं अपने जीवनसाथी से गले मिल सकी जब वह पटना सिविल कोर्ट में ट्रायल पर चल रहे एक मुकदमे में पेशी के लिए भागलपुर के शहीद जुब्बा सहनी केंद्रीय कारा से लाए गए.

मानवाधिकार के मुद्दे पर बेखौफ लिखने बोलने वाले मेरे जीवनसाथी स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह 17 जुलाई 2022 को गिरफ्तार किए गए और अब तक 4 जेलों में ( जिनमें 2 झारखंड और 2 बिहार की जेलें शामिल हैं) रखे जा चुके हैं. वे वर्तमान में भागलपुर के शहीद जुब्बा सहनी केंद्रीय कारा में बंद हैं.

उनको एक हाथ में हथकड़ी लगी थी, जिसमें एक मोटी रस्सी बंधी थी और रस्सी का दूसरा छोर एक पुलिस वाले के हाथ में था, करीब छह-आठ पुलिस वालों से घिरे कोर्ट में लाया गया. वह दोपहर तकरीबन 2:45 पर कोर्ट पहुंचे, जहां हम सुबह के 11 बजे से उनका इंतजार कर रहे थे.

मैं रूपेश के लिए उनकी प्रिय मशरूम की सब्जी लाई थी. मुझे संदेह था कि शायद उन्हें खाने न दिया जाए, पर मैंने बनाकर रख ली थी. रूपेश की गिरफ्तारी के बाद मैंने पहली मर्तबा मशरूम बनाया था.

29 नवंबर की मुलाकात के लिए हम मां बेटे 1 दिन पहले पटना पहुंच चुके थे. इससे पहले भी 22 अक्टूबर और 19 नवंबर को भी रूपेश की पेशी के लिए कोर्ट का आदेश हुआ था और हम मुलाकात की बड़ी उम्मीद लेकर पटना पहुंच गए थे. खैर, दो बार कोर्ट के आदेश के बावजूद पेशी न कराने पर कोर्ट के कड़े रुख के कारण अब जाकर रूपेश की पेशी कराई गई.

रूपेश से मिलने वालों में मैं, बेटा और वहां प्रैक्टिस कर रही मेरी बहन थी. रूपेश को देखकर मैं गले लगी पर वह शांत रहे, शायद पुलिस वालों के कारण हिचक हो या लंबे वक्त की दूरी के कारण इंसान के भीतर चल रही भावनात्मक क्रिया.

हम कोर्ट रूम के बाहर स्लैब पर करीब 1 घंटे साथ बैठे. बहन कोर्ट के काम में व्यस्त रही. मैंने सोच रखा था कि जब हमारी मुलाकात होगी मैं उनसे खूब बातें करूंगी, पर लगा कि बातें टेक्निकल रूप से हो रही थीं. थोड़ा वक्त बीतने पर जैसे ही हम नार्मल हुए कि उनके केस पार्टनर विजय कुमार आर्या को भी पुलिस ले आयी. उन्हें बक्सर के जेल से लाया गया था.

अब खासी संख्या में लोग हमारे आसपास जमा हो गए और उनमें कई जान-पहचान के होने के कारण रूपेश की उनसे बातचीत शुरू हो गई. अलग-अलग मुद्दे पर बातचीत और कहकहे लगने लगे. बेटा भी उनमें शामिल हो गया. दो बार रूपेश और उनके केस पार्टनर को भी कोर्ट रूम में बुलाया गया. इस माहौल में मुझे बातों को पूरा करने का मौका तो नहीं मिला, पर माहौल देखकर अच्छा लगा.

इसी दौरान विजय जी की आपबीती सुनकर सुना बुरा लगा. वह बता रहे थे कि पहले वह पटना के आदर्श केंद्रीय कारा, बेउर में थे, पर बाद के दिनों में  सामान्य व गरीब बंदियों के लिए खाने-पीने की बदतर हो रही स्थिति पर कई बंदियों ने भूख हड़ताल की घोषणा की. इससे पहले उन्होंने कोर्ट को भी इस बदतर हो रही स्थिति को बताया था (यह खबर वहां के स्थानीय अखबार में भी आई थी), पर स्थिति सुधारने की जगह इनको बक्सर जेल भेजा गया.

इन्होंने बताया कि बक्सर जेल में जाते ही कई बंदियों की पिटाई की जाती है, और इनके साथ भी यह हुआ. जेल गेट से अंदर जाते ही इनके शरीर पर कई लाठियां बरसाई गई पर फिर भी सीधे खड़े रहने के कारण जेलर ने सिपाही से कहा कि ‘ये सेल बंदी है और अगर सेल तक लंगड़ाते हुए न जाए तो काहे का सेल बंदी, अभी और पीटो.’ यह सुनते ही दो सिपाही ने उनको पकड़ा और तीसरे ने पैरों पर लगातार लाठियां बरसाई. कुल 200 लाठी मारने के बाद उन्हें वहां से सेल में भेजा गया. कोर्ट को भी उन्होंने ये सब आवेदन के रूप में लिखकर दिया है.

विजय आर्या जी ने बताया कि यह सब केवल उनके साथ नहीं हुआ है कई और बंदियों के साथ ऐसा किया जाता है. कोर्ट परिसर में बातचीत के दौरान पता चला कि यह बिहार की कई जेलों- अररिया, बक्सर, भभुआ, भागलपुर में हो रहा है.

क्या सुधार गृह कहलाने वाली इन जेलों को बंदियों के साथ मारपीट का अधिकार है? या जेल के अधिकारी बंदियों में अपना खौफ बनाने के लिए ऐसा करते हैं ताकि जेल के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई आवाज उठाने की हिम्मत न करे?

मानवाधिकार के मुद्दे पर लिखने-बोलने वाले रूपेश ने जेल से ही इस तरह के अमानवीय कृत्यों व अन्य मुद्दों को अपने पेशी के दौरान कोर्ट के समक्ष भी रखा था. भागलपुर के जिला अधिकारी सहित जेल महानिरीक्षक, मुख्य न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय,पटना, मुख्यमंत्री बिहार, गृह सचिव बिहार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग, को भी यह शिकायत भेजी गयी थी.

इसका संज्ञान लेते हुए 3 जून 2024 को गृह सचिव तथा 12 जून को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने जेल महानिरीक्षक को पत्र भेजा था. 29 मई को जिलाधिकारी ने भी जांच कराई गई थी.

रूपेश जेल से ही अपनी तीसरी मास्टर्स डिग्री के लिए इग्नू की दिसंबर सत्रांत की परीक्षा में शामिल होंगे. इस बार वह ‘मास्टर्स इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन’ की परीक्षा में बैठेंगे. जेल से ये इनकी दूसरी मास्टर्स डिग्री होगी. इससे पहले वह जेल से स्नातकोत्तर की डिग्री इस साल पूरी कर चुके हैं.

(ईप्सा शताक्षी रूपेश कुमार सिंह की जीवनसाथी हैं और सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं.)