श्रीनगर: उमर अब्दुल्ला सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश में बढ़ते गुस्से के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर की आरक्षण नीति में किए गए बदलावों पर फिर से विचार करने के लिए एक उप-समिति का गठन किया है.
मंगलवार (10 दिसंबर) को सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया है कि अब्दुल्ला के मंत्रिमंडल के तीन मंत्रियों वाली समिति, ‘सभी हितधारकों के परामर्श से आरक्षण नियमों के संबंध में विभिन्न पदों के लिए उम्मीदवारों के एक वर्ग द्वारा व्यक्त की गई शिकायतों की जांच करेगी.’
आदेश में कहा गया है कि समिति का जिम्मा समाज कल्याण विभाग का होगा, और समिति अपनी रिपोर्ट मंत्रिपरिषद को सौंपेगी. हालांकि, इसमें कोई समयसीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है.
जीएडी का यह आदेश तब आया, जब अब्दुल्ला द्वारा जम्मू में संवाददाताओं से कहा गया था कि सरकार आरक्षण नीति की जांच के लिए एक उप-समिति गठित करेगी, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि इससे ‘ओपन मेरिट’ (ओएम) श्रेणी के युवाओं में चिंता पैदा हो रही है.
अब्दुल्ला ने कहा कि समिति आरक्षण नियमों पर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाएगी, जो ओएम श्रेणी के उम्मीदवारों और नौकरी के इच्छुक लोगों के लिए शैक्षणिक संस्थानों और सरकार में केवल 40% आरक्षण देता है.
सूत्रों ने बताया कि अब्दुल्ला सरकार जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार आरक्षण नियमों में ‘समानता लाने’ पर विचार कर रही है. हालांकि, पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस तरह के कदम से राजनीतिक परिणाम सामने आ सकते हैं.
जम्मू-कश्मीर में अपनी चुनावी पकड़ मजबूत करने की राजनीतिक रणनीति के तहत भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा पहाड़ी और तीन अन्य ‘पसमांदा’ समुदायों को जनजातीय दर्जा दिए जाने के बाद उन्हें समायोजित करने के लिए आरक्षण नियमों में फेरबदल किया गया था.
हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 में फैसला दिया था कि आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता है, तथा इसमें किसी भी तरह का बदलाव संविधान द्वारा प्रदत्त समान पहुंच का उल्लंघन बताया था, लेकिन नए नियमों को रद्द करने की वकालत करने वाले कार्यकर्ता साहिल पार्रे ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया है.
जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में हाल ही में दायर एक याचिका में नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के एक समूह ने आरोप लगाया है कि नए आरक्षण नियमों ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओएम उम्मीदवारों के लिए सीटों को 57% से घटाकर 33% कर दिया है.
द वायर द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि सरकार द्वारा हाल ही में विज्ञापित नौकरियों और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों और व्यावसायिक कॉलेजों द्वारा प्रस्तावित सीटों में से केवल 40% ही ओएम उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थीं.
उदाहरण के लिए, जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग ने इस सत्र में जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस) में 30 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए, जिनमें से केवल 12 ओएम उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थे, जबकि शेष 18 रिक्तियां अन्य श्रेणियों के लिए आरक्षित थीं.
वर्ष 2018 में जब जम्मू और कश्मीर एक राज्य था, 27 जेकेएएस रिक्तियों में से 16 ओएम उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थीं.
पार्रे का कहना है कि जम्मू-कश्मीर सरकार के विभिन्न विभागों में रिक्तियों को भरने के लिए हाल ही में जारी किए गए विज्ञापनों में ओएम उम्मीदवारों के लिए कोटा 20% तक सीमित कर दिया गया है, जबकि शेष सीटें विभिन्न श्रेणियों के लिए आरक्षित कर दी गई हैं, जो जनसंख्या का केवल 30% हिस्सा हैं.
उधमपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए उम्मीदवारों की 2024 की चयन सूची से पता चलता है कि काउंसलिंग के पहले दौर में आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों के साथ 49 सीटें भरी गई हैं, जिससे आने वाले वर्षों में जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता पर आरक्षण नीति के नकारात्मक प्रभाव पर बहस शुरू हो गई है.
जीएमसी, डोडा में भी ओपन मेरिट श्रेणी से केवल तीन छात्र ही 71 उम्मीदवारों की चयन सूची में जगह बना पाए. दोनों कॉलेजों में हर साल 100 सीटों पर प्रवेश दिए जाते हैं.
अपने चुनावी घोषणापत्र में सत्तारूढ़ जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने नए आरक्षण नियमों के कारण पैदा हुए ‘अन्याय और असंतुलन’ को ठीक करने का वादा किया था. पार्रे ने कहा, ‘यह एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन सरकार ने समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की है, पर ऐसा करने की जरूरत है.’
उल्लेखनीय है कि असंतुलित आरक्षण का मुद्दा उच्च न्यायालय में भी पहुंचा, जहां याचिकाकर्ताओं के एक समूह ने आरोप लगाया है कि 2005 के आरक्षण नियमों में संशोधन से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओपन मेरिट उम्मीदवारों के लिए सीटें 57% से घटकर 33% हो गई हैं.
याचिका में कहा गया है कि पिछड़े क्षेत्र के निवासियों का कोटा 20% से घटकर 10% हो गया है, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) का कोटा 10% से दोगुना होकर 20% हो गया है, जिसमें पहाड़ी और अन्य समुदाय शामिल हैं, जिन्हें इस वर्ष की शुरुआत में भाजपा सरकार द्वारा एक विवादास्पद कदम के तहत आदिवासी का दर्जा दिया गया था.
अदालत ने 4 दिसंबर को फैसला सुनाया कि नए आरक्षण नियमों के तहत की गई सभी नियुक्तियां नियमों को अमान्य घोषित करने की मांग करने वाली याचिका के परिणाम के अधीन होंगी.
यह मुद्दा तब और भी बड़े विवाद में तब्दील होने की आशंका बन गया था, जब नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता और श्रीनगर से लोकसभा सांसद सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने पिछले महीने अब्दुल्ला सरकार के खिलाफ कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की कसम खाई थी.
इससे पहले पिछले महीने जम्मू में अपनी दूसरी कैबिनेट बैठक की अध्यक्षता करने के बाद अब्दुल्ला ने कहा कि उप-समिति सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेशों के मद्देनजर नए आरक्षण नियमों के मुद्दे की जांच करेगी. उन्होंने कहा, ‘समिति सुधारात्मक उपाय सुझाएगी ताकि हम किसी को उसके अधिकारों से वंचित न करें और सभी के साथ न्याय हो.’
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