नई दिल्लीः बीते 8 दिसंबर को कट्टर हिंदुत्ववादी संगठन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सांप्रदायिक भाषण देने के बाद से इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव को बर्खास्त करने की चौतरफा मांग हो रही है.
वकीलों और नागरिक अधिकार समूहों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को पत्र लिखकर यादव के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई और उन्हें निलंबित करने की मांग की है. 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसने मामले का संज्ञान लिया है.
इस बीच, श्रीनगर से नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद रुहुल्लाह मेहदी ने कहा कि वह जस्टिस यादव के खिलाफ उनके ‘घृणास्पद भाषण’ के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव ला रहे हैं.
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से विधायक शलभ मणि त्रिपाठी ने यादव के विचारों का समर्थन किया है. त्रिपाठी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार रह चुके हैं.
जस्टिस यादव ने मुसलमानों को कठमुल्ला कहा था
रविवार (8 दिसंबर) को इलाहाबाद हाईकोर्ट के पुस्तकालय हॉल में विहिप द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जस्टिस यादव ने कहा कि भारत केवल ‘बहुसंख्यकों’ की इच्छाओं के अनुसार चलेगा. यहां तक कि उन्होंने मुसलमानों के एक वर्ग को विवादास्पद शब्द ‘कठमुल्ला’ कहकर संबोधित किया, जो चार पत्नियां रखते हैं और तीन तलाक जैसी प्रथाओं में ‘संलिप्त’ हैं. जस्टिस यादव ने उन्हें राष्ट्र के लिए ‘घातक’ बताया.
अपने 34 मिनट के विवादास्पद भाषण में यादव ने मुस्लिम समाज में ‘व्याप्त बुराइयों’ का कई संदर्भ दिया, और कहा कि ‘मुस्लिम बच्चों से सहिष्णु और उदार होने की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि वे शुरुआत से ही हिंसा (जानवरों की हत्या) देख रहे होते हैं.’ हिंदू बच्चों से इसकी तुलना करते हुए यादव ने कहा कि हिंदुओं को कम उम्र से ही दयालुता के बारे में सिखाया जाता है, इसलिए उनके बच्चों में अहिंसा और सहिष्णुता रहती है.
जस्टिस यादव ने पहले भी मुसलमानों के खिलाफ विवादास्पद टिप्पणियां की हैं. विहिप के कार्यक्रम में उन्होंने मुसलमानों और हिंदुओं की तुलना करते हुए मुसलमानों के लिए नकारात्मक टिप्पणियां कीं. उन्होंने कहा, ‘हिंदुओं को बचपन से ही करुणा की शिक्षा दी जाती है, शायद इसीलिए हम सहिष्णु हैं और किसी और का दर्द देखकर हमें भी दर्द होता है, लेकिन मुसलमान इसे महसूस नहीं करते क्योंकि संस्कृति में बच्चों को बचपन से ही जानवरों का वध करना सिखाया जाता है. फिर आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वह बच्चा सहनशील और उदार होगा?’
महाभियोग प्रस्ताव पर सात हस्ताक्षर
जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद रुहुल्लाह मेहदी ने कहा कि वह यादव को उनके पद से हटाने की मांग करने के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव ला रहे हैं. मेहदी को इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए 100 सदस्यों के हस्ताक्षर की आवश्यकता है, उन्होंने कहा कि उनके पास सात सदस्यों के हस्ताक्षर हैं, जिनमें हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, बिहार से सीपीआई-एमएल (लिबरेशन) के सांसद सुदामा प्रसाद और संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क शामिल हैं.
मेहदी ने अपने नोटिस में कहा कि जस्टिस यादव का बयान और कार्य न्यायिक आचरण के मूलभूत सिद्धांतों और संवैधानिक जनादेश का उल्लंघन है और उनका कार्यकाल जारी रहना न्यायपालिका की अखंडता, निष्पक्षता और धर्मनिरपेक्षता के लिए हानिकारक है.
सीजेएआर ने जांच की मांग की
इससे पहले न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर) ने सीजेआई खन्ना को पत्र लिखकर इस मामले में एक समिति गठित कर ‘इन-हाउस जांच’ कराने का आग्रह किया है.
सीजेएआर के संयोजक और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने यह मांग की कि यादव के खिलाफ जांच पूरी होने तक उन्हें न्यायिक कार्य से वंचित रखा जाए.
भूषण ने कहा कि विहिप के कार्यक्रम में जस्टिस यादव की भागीदारी और उनके द्वारा दिया गया बयान संविधान की प्रस्तावना के साथ पढ़े जाने वाले अनुच्छेद 14, 21, 25 और 26 का घोर उल्लंघन है.
सीजेएआर के पत्र में भूषण ने लिखा, ‘जस्टिस यादव का भाषण भेदभावपूर्ण है और हमारे संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता और समानता के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं. हाईकोर्ट के एक मौजूदा जज द्वारा एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इस तरह के सांप्रदायिक बयान से न केवल धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं, बल्कि न्यायिक संस्थान की ईमानदारी और निष्पक्षता में आम जनता का विश्वास पूरी तरह से खत्म हो जाता है.’
वकील संघ ने राष्ट्रपति और सीजेआई को लिखा पत्र
एआईएलयू ने राष्ट्रपति और सीजेआई को लिखे गए पत्र में कहा, ‘विहिप के मंच से इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव का भाषण संविधान के विरुद्ध है. साथ ही धर्मनिरपेक्षता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता का सीधा अपमान है. यह भाषण न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचाने वाला है.’
पत्र में आगे लिखा गया है कि उनके द्वारा दिए गए भाषण का लहजा, हिंदू धर्म के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाला था.
एआईएलयू ने कहा, ‘मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ उनके आरोप कड़वी और जहरीली प्रवृति के हैं, एक अदालत के जज के लिए यह अशोभनीय है. यह हाईकोर्ट के जज के पद की संवैधानिक शपथ का उल्लंघन है.’
पीयूसीएल ने जस्टिस यादव के बयान को राजनेताओं की भाषा कहा
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने भी सीजेआई खन्ना को पत्र लिखकर मांग की कि यादव से न्यायिक कार्य वापस ले लिया जाए. पीयूसीएल ने कहा कि ‘उनकी टिप्पणी संविधान में उनकी पूर्ण आस्था की कमी को दर्शाती है जो संवैधानिक नैतिकता का गंभीर उल्लंघन है.’
पीयूसीएल ने पत्र में लिखा, ‘जस्टिस यादव ने भारत के संविधान की शपथ लेने वाले एक संवैधानिक पदाधिकारी के रूप में नहीं, बल्कि एक राजनीतिक नेता के रूप में बात की थी.’
नागरिक स्वतंत्रता समूह ने सीजेआई खन्ना से भारतीय न्यायिक प्रणाली में लोगों का विश्वास बहाल करने के लिए यादव के खिलाफ आवश्यक कदम उठाने को भी कहा.
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