नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (12 दिसंबर) को देशभर की निचली अदालतों को आदेश दिया कि वे धार्मिक स्थलों के मालिकाना हक से जुड़े नए मुकदमे दर्ज न करें, न ही सर्वे के आदेश दें.
देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने उपासना स्थल क़ानून, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली छह याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया. पीठ में जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन भी शामिल थे.
अदालत ने कहा कि जब तक यह मामला लंबित है, तब तक न तो नए मुकदमे दर्ज होंगे और न ही लंबित मुकदमों में अंतरिम या अंतिम आदेश जारी किए जाएंगे.
अदालत ने केंद्र सरकार को चार सप्ताह के भीतर अपना पक्ष स्पष्ट करने का निर्देश दिया. सीजेआई ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि भारत सरकार का रुख रिकॉर्ड पर लाया जाए.’
अदालत अब इस मामले की सुनवाई 17 फरवरी, 2025 को करेगी.
1991 के कानून पर विवाद
उपासना स्थल क़ानून-1991, जिसे ‘राम मंदिर आंदोलन’ के दौरान पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने लागू किया था, 15 अगस्त, 1947 को धार्मिक स्थलों के चरित्र को संरक्षित करने और किसी भी प्रकार के परिवर्तन को रोकने का प्रावधान करता है. हालांकि, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया था.
कई याचिकाएं इस कानून के सख्त अनुपालन की मांग कर रही हैं ताकि सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे और धार्मिक स्थलों की वर्तमान स्थिति को बरकरार रखा जा सके.
दूसरी ओर, विभिन्न हिंदू समूहों ने दावा किया है कि कई मस्जिदें ऐतिहासिक रूप से मंदिरों को तोड़कर बनाई गई थीं.
अदालत का कड़ा रुख
सीजेआई खन्ना ने कहा कि अन्य अदालतें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के समानांतर कोई कार्रवाई नहीं कर सकतीं. उन्होंने कहा, ‘जब मामला हमारे सामने लंबित है, तो यह उचित नहीं होगा कि अन्य अदालतें इन मामलों की सुनवाई करें.’
अदालत ने अयोध्या मामले का हवाला देते हुए कहा कि ऐतिहासिक गलतियों को सही करने के लिए कानून को हाथ में लेना उचित नहीं है.
लंबित मुकदमों पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद (वाराणसी), शाही ईदगाह (मथुरा), और संभल की जामा मस्जिद से जुड़े मुकदमों सहित देशभर में इस प्रकार के मामलों पर रोक लगा दी है. अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह दी कि वे इस मुद्दे पर समन्वय स्थापित करें.
इस आदेश के साथ सुप्रीम कोर्ट ने सुनिश्चित किया है कि इस मुद्दे पर विवाद बढ़ने से पहले व्यापक विचार-विमर्श किया जाए. केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया और याचिकाओं की सुनवाई के बाद ही इस मामले पर कोई फैसला लिया जाएगा.