मंत्रालयों में आरक्षण नीति के अमल की निगरानी के लिए कोई शक्ति नहीं: कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग

अनुसूचित जाति और जनजाति कल्याण के लिए बनी संसदीय स्थायी समिति द्वारा संसद में पेश कार्रवाई रिपोर्ट में कहा गया है कि आरक्षण को लागू करने की निगरानी के लिए एक तंत्र तैयार किया जाना चाहिए, जो डीओपीटी के प्रति जवाबदेह हो.

केंद्रीय सचिवालय, जहां डीओपीटी स्थित है. (फोटो साभार: Flickr/ sapru CC BY-NC 2.0.)

नई दिल्ली: कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने कहा है कि उसके पास अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण नीति के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए मंत्रालयों और सरकारी विभागों में जांच की कोई शक्ति नहीं है.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण के लिए बनी संसदीय स्थायी समिति द्वारा 6 दिसंबर को संसद में पेश की गई एक कार्रवाई रिपोर्ट में डीओपीटी का रुख स्पष्ट किया गया है.

समिति की सिफारिश पर कि डीओपीटी को रैंडम रोस्टर जांच आयोजित की जानी चाहिए, विभाग ने व्यापार नियमों के लेनदेन और व्यापार नियमों के आवंटन का हवाला देते हुए कहा है, ‘सभी विभाग/मंत्रालय समान हैं, और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के पास आरक्षण नीति के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए अन्य मंत्रालयों के देख-रेख की कोई शक्ति नहीं है.’

डीओपीटी के जवाब में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते की अध्यक्षता वाली समिति ने मंत्रालय/डीओपीटी द्वारा उठाए गए खुद को संतुष्ट करने के इस रुख पर अपना असंतोष व्यक्त किया और कहा कि प्रत्येक मंत्रालय को डीओपीटी द्वारा तैयार की गई नीति को लागू करना होगा.

मालूम हो कि वर्तमान में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय का प्रभार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास है.

समिति के अनुसार, ‘मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों, बैंकों, स्वायत्त निकायों आदि के साथ व्यापक बातचीत के आधार पर समिति का विचार है कि डीओपीटी को नोडल मंत्रालय होने के नाते, इसे सक्षम करने के लिए अपने स्तर पर एक तंत्र तैयार करना चाहिए, जिसके जिम्मे डीओपीटी दिशानिर्देशों के अनुसार आरक्षण रोस्टर के कार्यान्वयन की निगरानी और इसके अनुसरण को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हो.

पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस प्रकार तैयार किया गया निगरानी तंत्र ‘डीओपीटी के प्रति जवाबदेह एक अलग प्राधिकरण’ होना चाहिए.

ज्ञात हो कि इससे पहले वर्ष 2023-2024 के लिए अपनी नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट में डीओपीटी ने केंद्र सरकार की नौकरियों और पदों में आरक्षण पर डेटा हटा दिया था.

इस संबंध में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की नेता बृंदा करात ने इस कदम को जानकारी को ‘जानबूझकर छिपाने’ का एक तरीका करार देते हुए कहा था कि यह हाशिए पर रहने वाले समुदायों को अपने अधिकारों की मांग करने और उनका दावा करने से रोकने का एक तरीका है.