‘जय बांग्ला’ अब बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा नहीं, शेख़ मुजीबुर रहमान ने बनाया था लोकप्रिय

बांग्लादेश के संस्थापक शेख़ मुजीबुर रहमान द्वारा लोकप्रिय किया गया 'जॉय बांग्ला' का नारा 1971 के मुक्ति संग्राम का प्रतीक था. अब बांग्लादेश की एक अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय नारा तय करना सरकार की नीतिगत निर्णय का विषय है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें ‘जय बांग्ला’ (बांग्ला उच्चारण- जॉय बांग्ला) को देश का राष्ट्रीय नारा घोषित किया गया था.

यह नारा शेख मुजीबुर रहमान द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था, जो पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता थे. शेख हसीना को इस साल 5 अगस्त को उनकी सरकार के ख़िलाफ़ हुए बड़े विरोध प्रदर्शन के बाद सत्ता छोड़नी पड़ी थी.

सरकार बदलने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. सुप्रीम कोर्ट की चार-सदस्यीय पीठ ने मंगलवार (10 दिसंबर) को यह फैसला सुनाया. पीठ की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश सैयद रफात अहमद कर रहे थे.

अदालत ने कहा कि न्यायपालिका इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती क्योंकि राष्ट्रीय नारा तय करना सरकार की नीतिगत निर्णय का हिस्सा है. सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल अनीक आर. हक ने कहा, ‘इस आदेश के बाद ‘जय बांग्ला’ को राष्ट्रीय नारा नहीं माना जाएगा.’

‘जय बांग्ला’ का इतिहास

जॉय बांग्ला मशहूर बंगाली कवि, संगीतकार और लेखक काजी नजरुल इस्लाम की एक कविता से लिया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस में इस विषय पर प्रकाशित एक विस्तृत लेख से पता चलता है कि 1922 में लिखी काजी नजरुल इस्लाम की कविता ‘पूर्ण अभिनंदन’ की पांचवीं पंक्ति में जॉय बांग्ला का जिक्र मिलता है.

इस कविता में बंगाल के क्रांतिकारियों की भावना का वर्णन किया गया है, जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी उत्पीड़न की बेड़ियों को तोड़ा. नजरुल इस्लाम ने औपनिवेशिक शासन, विदेशी उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ विद्रोह को अभिव्यक्त करने वाली सी कविताएं लिखीं. उनकी इस लेखनी के कारण उन्हें ‘बिद्रोही कवि की उपाधि दी गई.

उनकी रचनाएं 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पूर्वी बंगाल के बंगालियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनीं. 1972 में उन्हें बांग्लादेश का ‘राष्ट्रीय कवि’ घोषित किया गया.

बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के नायक और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान को जब 22 जनवरी 1969 को पाकिस्तानी सरकार ने जेल से रिहा किया, तो ढाका में सर्वदलीय छात्र संग्राम परिषद द्वारा आयोजित एक बड़ी रैली में उनका अभिनंदन ‘जॉय बांग्ला’ के नारे ही किया गया था.

बांग्लादेश की आज़ादी के लिए छेड़े गए मुक्ति संग्राम के दौरान ‘जॉय बांग्ला’ मुक्तिवाहिनी का युद्ध घोष बन गया था.

बांग्लादेश की स्वतंत्रता के तुरंत बाद ‘जॉय बांग्ला’ को देश का राष्ट्रीय नारा बना दिया गया. हालांकि 1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद राष्ट्रपति बने खोंडकर मुश्ताक अहमद ने इस नारे को बदलकर ‘बांग्लादेश जिंदाबाद’ कर दिया.

2017 में बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट के वकील बशीर अहमद ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें ‘जॉय बांग्ला’ को राष्ट्रीय नारा घोषित करने की मांग की गई. उनका तर्क था कि ‘जॉय बांग्ला हमारी स्वतंत्रता और राष्ट्रीय एकता का नारा है. इसे राष्ट्रीय नारे के रूप में भविष्य की पीढ़ियों के लिए बनाए रखना चाहिए.’

अहमद की दलील को स्वीकार करें हुए हाईकोर्ट ने 10 मार्च, 2020 को‘जॉय बांग्ला’ को देश का राष्ट्रीय नारा घोषित कर दिया और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे इसे राष्ट्रीय महत्व के दिनों में भाषणों में इस्तेमाल करें.