परभणी हिंसा: पुलिस पर दलित युवकों को पीटने का आरोप, क्षेत्र में पुलिस अभियान जारी

महाराष्ट्र के परभणी में 10 दिसंबर को संविधान की प्रतिकृति तोड़ने के बाद हिंसा हुई और आरोपी को गिरफ़्तार कर लिया गया. हालांकि, इसके बाद दलित बस्तियों में पुलिस के अंधाधुंध तलाशी अभियानों के वीडियो सोशल मीडिया आए और पुलिस पर दलितों, खासकर आंंबेडकरवादियों के घरों में घुसने और पिटाई करने का आरोप लगा है.

परभणी हिंसा. (फोटो साभार: एक्स/ पीटीआई)

मुंबई: महाराष्ट्र के परभणी में 10 दिसंबर को एक व्यक्ति ने शहर के बीच स्थित संविधान की प्रतिकृति (Replica) को तोड़ दिया, जिसके विरोध में आंबेडकरवादियों द्वारा पूरे जिले में 11 दिसंबर को बंद का आह्वान किया गया था. बंद के दौरान गुस्साए लोग सड़कों पर उतरे और उन्होंने नारे लगाते हुए और ‘तत्काल न्याय’ की मांग की. हालांकि इस आंदोलन ने जल्द ही हिंसा का रूप ले लिया, जब आंबेडकरवादी कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति दोनों को नुकसान पहुंचाया.

मालूम हो कि जिस व्यक्ति ने संविधान की रेप्लिका को ध्वस्त किया, उनका नाम सोपान पवार बताया जा रहा है, जिन्होंने बिना किसी कारण या उकसावे के इस घटना को अंजाम दिया. उन्हें घटनास्थल पर ही पकड़ लिया गया.

इस मामले में अभी तक पुलिस ने आठ एफआईआर दर्ज की हैं और 50 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है – जिनमें से कई भीम नगर और प्रियदर्शनी नगर जैसी पड़ोसी दलित बस्तियों की महिलाएं और युवा पुरुष हैं.

मालूम हो कि संविधान की रेप्लिका का अपमान करने वाले पवार को उनकी गिरफ्तारी के कुछ घंटों के भीतर हा ‘मानसिक रूप से विक्षिप्त’ घोषित कर दिया गया.

स्थानीय लोगों का दावा है कि वे पवार को नहीं जानते हैं, और वे कहां से हैं, क्या वह स्थानीय हैं या वे कहीं बाहर से परभणी आए थे, उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है.

पुलिस के अनुसार, पवार ओबीसी धनगर समुदाय से हैं और उन्होंने बिना कुछ सोचे-समझे इस कृत्य को अंजाम दिया, उन्हें नहीं पता था कि इसका क्या अंजाम होगा.

10 दिसंबर को पवार की गिरफ्तारी के कुछ घंटों बाद नांदेड़ के विशेष महानिरीक्षक, शाहजी उमाप, जो इस जांच की देखरेख कर रहे हैं, ने दावा किया कि पवार की मानसिक स्थिति ठाक नहीं है.

हालांकि, इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि उन पर उचित वैज्ञानिक परीक्षण किए जाने से पहले ही पुलिस इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंच गई.

द वायर ने कई स्थानीय कार्यकर्ताओं से बात की, जिनमें कुछ ऐसे भी थे जो 10 दिसंबर के प्रदर्शन में शामिल थे.

एक आंबेडकरवादी युवक ने कहा, ‘घटना दोपहर करीब 3:30-4 बजे के आसपास हुई. पवार अकेले थे, उनके पास न तो कोई मोबाइल फोन था, न ही कोई कागज का टुकड़ा. लेकिन जैसे ही उन्हें गिरफ्तार किया गया, पुलिस को न केवल उनका नाम, बल्कि कुछ मेडिकल कागजात भी मिले, जिसके आधार पर पुलिस अब दावा करती है कि वह मानसिक रूप से अस्थिर है.’

ज्ञात हो कि बीआर आंबेडकर की मूर्ति से कुछ ही मीटर की दूरी पर शिवाजी की मूर्ती स्थित है. जहां 10 दिसंबर को संविधान की रेप्लिका के अपमान की घटना से महज एक घंटे से भी कम समय पहले एक कट्टर दक्षिणपंथी संगठन हिंदू सकल समाज ने ‘बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार’ की निंदा करने के लिए एक बैठक आयोजित की थी.

इस कार्यक्रम में, जैसा कि दक्षिणपंथी संगठन द्वारा आयोजित ऐसी हर सार्वजनिक सभा में होता है, वक्ताओं ने उत्तेजक भाषण दिए. बीते साल में महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में ऐसी कई सार्वजनिक बैठकें आयोजित की गई हैं, जो हर बार पहले वाले से अधिक उत्तेजक होती थीं, कुछ ने तो हिंसा का भी रूप ले लिया.

सकल हिंदू समाज की सभा.

अब तक ये पता नहीं चल सका है कि क्या पवार ने सकल हिंदू समाज की सार्वजनिक सभा में भाग लिया था, लेकिन क्षेत्र के एक जाति-विरोधी नेता राहुल प्रधान का आरोप है कि पुलिस इस पहलू की जांच नहीं कर रही है.

मालूम हो कि जिस तरह देश में आंबेडकर की मूर्ति या उनसे जुड़ी किसी भी चीज़ का अपमान असामान्य नहीं है, ऐसे ही जातिवादी कृत्यों के खिलाफ प्रतिशोध भी असामान्य नहीं है.

11 दिसंबर को जब कलेक्टर कार्यालय में पहली बार हिंसा भड़की, तो घटनास्थल से कुछ ही मीटर की दूरी पर महिला कार्यकर्ताओं सहित कई आंबेडकरवादी युवा कलेक्टर कार्यालय के बाहर एकत्र हुए थे. जब जिला कलेक्टर ने कार्यकर्ताओं से मिलने से इनकार कर दिया, तो वे कथित तौर पर हिंसक हो गए. कलेक्टर कार्यालय पर हिंसक हमले और सड़क पर हिंसा की कुछ घटनाओं के कई वीडियो तब से सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहे हैं.

इसी तरह शहर में दलित बस्तियों में पुलिस अत्याचारों और अंधाधुंध तलाशी अभियानों के वीडियो भी हैं. पुलिस पर भीम नगर और प्रियदर्शिनी नगर में दलितों, खासकर आंंबेडकरवादियों के घरों में घुसने और बस्तियों में पुरुषों और महिलाओं की अंधाधुंध पिटाई करने का आरोप है.

द वायर द्वारा देखे गए कई वीडियो में युवाओं को पुलिस द्वारा बेरहमी से पीटा जाता दिख रहा है. यह तब है, जब पुलिस का दावा है कि इस मामले में 50 से अधिक उपद्रवियों को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है और कई आगे की जांच के लिए पुलिस हिरासत में हैं.

एक वीडियो में प्रियदर्शनी नगर में तैनात पुलिस प्लाटून के कर्मी को बस्ती के अंदर खड़े वाहन को नुकसान पहुंचाते हुए देखा जा सकता है.

द वायर ने विशेष महानिरीक्षक उमाप से फोन और मैसेज के जरिये कई बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हुआ. उनका जवाब मिलने पर खबर अपडेट की जाएगी.

इस बीच, राहुल प्रधान कई प्रासंगिक सवाल उठाते हैं. वो कहते हैं, ‘राज्य में आंबेडकर की स्मृतियों या आंबेडकरवादियों के खिलाफ इस तरह की आक्रामकता और हिंसा के लिए किसी को मानसिक रूप से अस्थिर होने की आवश्यकता नहीं है. ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जब राज्य में आंबेडकर की मूर्तियों को खंडित किया गया है.

वे पूछते हैं, ‘जब हर बार, ऐसे कृत्य को समुदाय की ओर से समान रूप से जोरदार प्रतिक्रिया मिलती है, तो पुलिस ने 11 दिसंबर को हिंसा भड़कने से रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं किया?’

लाल सेना के एक नेता गणपत भिसे ने भी पुलिस की मनमानी और जिले भर में चल रही हिंसा की ओर इशारा किया है. भिसे और लाल सेना के अन्य सदस्यों ने कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपकर घटना की उचित जांच की मांग की है साथ ही कहा है कि कि राज्य के अधिकारी इस मामले में दलित युवाओं को गलत तरीके से गिरफ्तार न करें.

वंचित बहुजन अघाड़ी के नेता और बीआर आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर ने यह भी मांग की है कि पुलिस इस मामले में दलित युवाओं को परेशान न करे और गलत तरीके से हिरासत में न ले.

उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा, ‘मैंने परभणी के फुले-शाहू-आंबेडकरवादी वकीलों के एक समूह से फोन पर बात की. मैंने उन्हें दलित युवाओं और महिलाओं को पुलिस द्वारा पीटे जाने और गिरफ्तार किए जाने के कई मामलों और दलित इलाकों में संयोजन अभियानों के लिए एक कानूनी कार्य योजना दी.’

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