परभणी हिंसा: तलाशी अभियान में पुलिस द्वारा उठाए गए व्यक्ति की न्यायिक हिरासत में मौत

परभणी में 10 दिसंबर को संविधान की प्रतिकृति तोड़ने के बाद हुई हिंसा मामले में पुलिस ने 50 दलित-बहुजन युवाओं को हिरासत में लिया था, जिसमें से सोमनाथ व्यंकट सूर्यवंशी नामक 35 वर्षीय व्यक्ति की रविवार की सुबह न्यायिक हिरासत के दौरान परभणी जिला जेल में मौत हो गई.

परभाणी सिविल अस्पताल के बाहर भीड़, जहां सूर्यांशी के शव है. (फोटो साभार: स्पेशल अरेंजमेंट)

मुंबई: महाराष्ट्र के परभणी में 10 दिसंबर को संविधान की प्रतिकृति तोड़ने के बाद हुई हिंसा मामले में पुलिस ने 50 दलित-बहुजन युवाओं को हिरासत में लिया था, जिसमें से सोमनाथ व्यंकट सूर्यवंशी नाम के 35 वर्षीय व्यक्ति की रविवार (15 दिसंबर) सुबह न्यायिक हिरासत के दौरान परभणी जिला जेल में मौत हो गई.

मालूम हो कि सूर्यवंशी कानून की पढ़ाई कर रहे थे और परभणी के शास्त्री नगर में अपने परिवार से मिलने आए थे. वे महाराष्ट्र के खानाबदोश जनजाति (एनटी) वाडर समुदाय से थे. उन्हें शनिवार (14 दिसंबर) को न्यायिक हिरासत में भेजा गया था, जिसके कुछ ही घंटों के बाद परभणी जिला जेल में उनकी मृत्यु हो गई.

इस संबंध में जांच की देखरेख कर रहे नांदेड़ रेंज के विशेष महानिरीक्षक (आईजी) शाहजी उमाप ने एक फोन कॉल पर बताया कि ‘सीने में दर्द’ की शिकायत के बाद सूर्यवंशी को परभणी के सिविल अस्पताल में ले जाया गया था, जहां उनकी मौत हो गई.

उमाप से जब परभणी की दलित-बहुजन बस्तियों में पुलिस द्वारा शुरू किए गए तलाशी अभियान और कथित मारपीट की शिकायतों के बारे में पूछा गया तो, इस पर उन्होंने कहा, ‘सूर्यवंशी को प्रताड़ित नहीं किया गया था.’

फोन कॉल समाप्त होने के कुछ मिनट बाद उमाप ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सूर्यवंशी घुमंतू जनजाति से हैं और दलित समुदाय से नहीं हैं. उन्होंने फोन पर बात कर रहे संवाददाता से कहा, ‘कृपया अपनी खबर में ये उल्लेख करें कि वह दलित नहीं है.’

द वायर ने 13 दिसंबर को एक विस्तृत रिपोर्ट में बताया था कि कैसे 10 और 11 दिसंबर को परभणी में हिंसा की घटना सामने आई थी. एक व्यक्ति, जिनकी पहचान पुलिस ने ‘सोपान पवार’ के रूप में की है, वे एक बाइक के पीछे बैठकर शहर के मध्य में स्थित आंबेडकर प्रतिमा की ओर गए और उन्होंने संविधान की प्रतिकृति को नुकसान पहुंचाया. इसके बाद वहां आंबेडकरवादी पहुंचे और उन्होंने पवार को वहीं पकड़कर पीटना शुरू कर दिया.

गौरतलब है कि इससे पहले कि पुलिस पवार के नाम और ठिकाने का पता लगा पाती, आईजी उमाप ने उन्हें ‘मानसिक रूप से विक्षिप्त’ घोषित कर दिया था. बाद में पता चला कि पवार का असली नाम दत्ता है, सोपान नहीं, जैसा कि पुलिस ने शुरू में दावा किया था. और वह प्रमुख मराठा समुदाय से है, जो पुलिस द्वारा किए गए धनगर जाति के दावे के विपरीत है.

द वायर ने परभणी शहर से 28 किलोमीटर दूर मिर्ज़ापुर में कुछ ग्रामीणों से बात की, जहां पवार रहते हैं. उनके मुताबिक, पवार का कोई पुराना आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है. वह बहुत शराब पीते थे, लेकिन उन्होंने कभी भी गांव में उपद्रव तक नहीं किया, जातिवादी हिंसा तो दूर की बात है.

मिर्ज़ापुर गांव के एक आंबेडकरवादी युवक ने दावा किया कि शराब पीने की समस्या से न निपटने पर वह अकोला के एक पुनर्वास केंद्र में चले गए थे. कुछ दिन पहले ही वह उसी केंद्र से लौटे हैं.

ज्ञात हो कि 10 दिसंबर को संविधान की प्रतिमा ध्वस्त करने की घटना से कुछ ही मिनट पहले राज्य में अपने भड़काऊ भाषणों और हिंसा के लिए जाने जाने वाले अति-दक्षिणपंथी संगठन सकल हिंदू समाज ने ‘बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की निंदा करने’ के लिए परभणी में विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था.

मिर्ज़ापुर के ग्रामीणों के अनुसार, पवार सहित गांव के कई युवा विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे. यह एक ऐसा पहलू है जिसे पुलिस ने अब तक अपनी जांच में नजरअंदाज किया है.

पुलिस हिंसा की हद

सूर्यवंशी की मौत से पता चलता है कि परभणी में पुलिस ने किस हद तक हिंसा की है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि सूर्यवंशी कानून की पढ़ाई कर रहे थे और खुद एक जाति-विरोधी कार्यकर्ता थे.

उनके वकील पवन जोंधले के अनुसार, सूर्यवंशी की 11 दिसंबर के विरोध प्रदर्शन में कोई भूमिका नहीं थी और लेकिन झुग्गी बस्ती के कई लोगों के साथ उन्हें बेरहमी से पीटा गया और पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

14 दिसंबर को जोंधले ने सूर्यवंशी की कानून (लॉ) की आगामी परीक्षाओं का हवाला देते हुए जमानत याचिका दायर की थी. उन्होंने तर्क दिया था कि अगर सूर्यवंशी को तुरंत जमानत पर रिहा नहीं किया गया, तो उनकी परीक्षा छूट जाएगी.

इसी तरह, सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने’ के आरोप में गिरफ्तार किए गए कई अन्य युवाओं ने पुलिस पर कफी हिंसा का आरोप लगाया है. ऐसे कई वीडियो प्रसारित हो रहे हैं, जिनमें स्थानीय और राज्य रिजर्व पुलिस बल (एसआरपीएफ) को परभणी में प्रियदर्शनी नगर और भीम नगर जैसी दलित बस्तियों में पुरुषों और महिलाओं पर हिंसा करते हुए दिखाया गया है.

द वायर के हाथ लगे ऐसे ही एक सीसीटीवी फुटेज में पुलिस को परभणी के प्रियदर्शिनी नगर में एक खुले मैदान में एक महिला को घेरते और बेरहमी से पीटते देखा जा सकता है. महिला की पहचान वाचला भगवान मनवते के रूप में हुई है, जो पास के एक स्थानीय अस्पताल में काम करती हैं और काम के बाद घर लौटी ही थीं कि पुलिस उनकी बस्ती में घुस गई. पुलिस ने झुग्गी-झोपड़ी में कई युवा पुरुषों और महिलाओं के साथ हिंसा की है. मनवते का कहना है कि उन्होंने पुलिस की हिंसा को रिकॉर्ड करने के लिए अपना मोबाइल निकाला.

मनवते कहती हैं, ‘कुछ ही समय में वे मेरी ओर बढ़े और घसीटकर फर्श पर ले गए और मेरे चेहरे और निजी अंगों पर लात मारी.’ सीसीटीवी फुटेज भी नके दावे का समर्थन करता है. वे फिलहाल एक स्थानीय अस्पताल में इलाज करा रही हैं, उनके पूरे शरीर पर चोटें हैं.

उमाप ने दावा किया है कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को ‘बल’ का प्रयोग करना पड़ा. हालांकि, मनवते किसी भीड़ का हिस्सा नहीं थीं, जैसा कि वीडियो में देखा जा सकता है, और उन पर बिना किसी उकसावे के हमला किया गया था. आरोप यह है कि 12 साल से कम उम्र की और दलित समुदाय की दो नाबालिग लड़कियों को भी पीटा गया है और पुलिस द्वारा दर्ज की गई आठ एफआईआर में से एक में उनका नाम शामिल है.

इस घटना के बाद से ही ज़मीन पर काम कर रहे कार्यकर्ता राहुल प्रधान ने द वायर को बताया कि पुलिस ने युवाओं पर ‘जानलेवा गुस्से’ से हमला किया. प्रधान ने दावा किया, ‘हिरासत में लिए गए लगभग सभी लोगों को कई चोटें लगी हैं और पहले उन्हें पुलिस हिरासत में भेज लिया  गया, फिर बिना इलाज के न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.’

जेल में सूर्यवंशी की अचानक मौत को देखते हुए उनका दावा सच प्रतीत होता है. जब किसी आरोपी व्यक्ति को अदालत में पेश किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट कानूनी रूप से आरोपी से यह पूछने के लिए बाध्य होता है कि क्या हिरासत में रहते हुए उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया था. मजिस्ट्रेट पुलिस और न्यायिक हिरासत दोनों में व्यक्ति की मेडिकल रिपोर्ट की जांच करने के लिए भी कानूनी रूप से बाध्य है.

जोंधले, जो मामले में गिरफ्तार पुरुषों और महिलाओं के मामलों को देख रहे हैं, ने बताया कि पुलिस ने गिरफ्तार किए गए प्रत्येक व्यक्ति को घेर लिया था, जिससे उनके लिए अदालत में हिंसा की शिकायतें उठाना असंभव हो गया था.

प्रधान का कहना है कि यह मामला 2018 में भीमा कोरेगांव में हुई घटना के समान है, जहां पुलिस राज्य भर में आंबेडकरवादी पुरुषों और महिलाओं पर हमला कर रही है और उन्हें गिरफ्तार कर रही है. उन्होंने सूर्यवंशी की मौत की न्यायिक मजिस्ट्रेट जांच के साथ-साथ मांग की है. उनके मुताबिक, ‘सरकार को घटना की एक मौजूदा न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र न्यायिक जांच स्थापित करनी चाहिए.’

जैसे ही सूर्यवंशी की हिरासत में मौत की खबर आई, जोंधले और कई आंबेडकरवादी कार्यकर्ता परभणी के सिविल अस्पताल के बाहर जमा हो गए और शव की बंद कमरे में जांच की मांग करने लगे. उन्होंने द वायर को बताया, ‘हमने यह भी मांग की है कि शव को स्वतंत्र पोस्टमार्टम के लिए औरंगाबाद भेजा जाए.’

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