नई दिल्ली: एक तरफ सरकार ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की तैयारी कर रही है, लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने के लिए काूनन बना रही है, दूसरी तरफ चुनाव आयोग की स्थिति यह है कि वह इस वर्ष हुए लोकसभा चुनाव के छह महीने बाद भी मतदान संबंधी आंकड़ों की ‘जांच’ और ‘सत्यापन’ का कार्य कर रहा है.
यह हर आम चुनाव की कहानी है. इस देरी ने कई सवालों और विसंगतियों को जन्म दिया है, लेकिन चुनाव आयोग इसे साधनों की कमी कहती है. लोकसभा चुनाव 2019 के बाद चुनाव आयोग ने दावा किया था कि उसके द्वारा अपनायी गई नई तकनीक की वजह से अंतिम आंकड़े चुनाव परिणाम घोषित होने के कुछ ही दिनों बाद आ जाएंगे. लेकिन पांच साल बाद भी ऐसा नहीं हो पाया है.
इस वर्ष हुए चुनावों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार शपथ ग्रहण कर पूरे अधिकार से तमाम फैसले ले रही है. लेकिन चुनाव आयोग ने 4 जून को जो परिणाम जारी किए थे, उन आंकड़ों की अब भी ‘जांच’ चल रही है. उन आंकड़ों के ‘सत्यापन’ का काम अब भी जारी है.
चुनाव आयोग ने क्या कहा?
5 अगस्त को निर्वाचन आयोग के समक्ष एक आरटीआई दायर कर लोकसभा चुनाव में सातों चरणों के मतदान के प्रारंभिक एवं अंतिम आंकड़ों की सत्यापित प्रति मांगी गई थी. यह आरटीआई छत्तीसगढ़ कांग्रेस के आरटीआई विभाग के चेयरमैन नितिन राजीव सिन्हा ने दायर की थी.
14 अक्टूबर को चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि उनके पास यह आंकड़े नहीं है. ‘लोकसभा चुनाव के सात चरण के मतदान में चरणवार जारी किए गए मतदान के प्रारंभिक आंकड़ों एवं अंतिम आंकड़ों के चरणबद्ध विवरण आयोग में उपलब्ध नहीं है.’
चुनाव आयोग ने जवाब में आगे लिखा, ‘लोकसभा आम चुनाव 2024 के सांख्यिकीय आंकड़ों की जांच और सत्यापन का कार्य प्रक्रिया में है. उक्त कार्य पूरा होने के बाद ही सही और अंतिम सांख्यिकीय आंकड़े आयोग की वेबसाइट पर अपलोड किए जाएंगे…’
ध्यान दें चुनाव आयोग ने जब यह जवाब भेजा, तक तक परिणाम आए चार महीने हो चुके थे.
चुनाव आयोग के जवाब पर अवर सचिव एवं केंद्रीय जन सूचना अधिकारी शिल्पी श्रीवास्तव का हस्ताक्षर है. द वायर हिंदी ने उनसे पूछा कि परिणाम घोषित होने के छह महीने बाद भी आयोग के पास ‘सही और अंतिम’ आंकड़े क्यों नहीं है?
शिल्पी श्रीवास्तव ने कहा, ‘पूरे देश से डेटा मंगाना पड़ता है. फिर हम उसे संकलित करते हैं. इसमें समय लगता है.’ श्रीवास्तव ने कहा कि जब आंकड़े मांगे गए थे तब वह उपलब्ध नहीं थे, ‘आप अपील दायर कर देख लीजिए, आंकड़े उपलब्ध होंगे तो मिल जाएंगे.’
लेकिन 24 अक्टूबर को अपील दायर हो चुकी है. एक अपील का जवाब तीस दिन के भीतर देने का प्रावधान है, लेकिन उसका जवाब अब तक (रिपोर्ट प्रकाशित होने तक) नहीं आया है. इस अपील की मौजूदा स्थिति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की.
डेटा न मिलने पर नितिन राजीव सिन्हा ने मुख्य सूचना आयुक्त के समक्ष शिकायत भी दर्ज कराई है.
उन्होंने लिखा है ‘निर्वाचन आयोग मांगी गई जानकारी छुपाने का प्रयास कर रहा है… इससे यह स्पष्ट होता है कि चुनाव परिणाम घोषित होने से साढ़े चार महीने बाद भी मतदान के आंकड़ों का विवरण निर्वाचन आयोग के पास नहीं पहुंचा है. यह गंभीर मामला है जो मतगणना की प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करता है. कृपया निर्वाचन आयोग के इस गैर जिम्मेदार आचरण पर विधि सम्मत कार्यवाही कर हमें अनुग्रहित करें.’
आयोग के जवाब से उपजे सवाल?
अगर अभी भी आंकड़ों की जांच और सत्यापन का काम ही चल रहा है तो परिणाम किस आधार पर घोषित कर दिया गया? क्या परिणाम भी अनुमानित है, बदल सकता है, विभिन्न दलों की लोकसभा में स्थिति में अंतर आ सकता है?
चुनाव आयोग द्वारा 1 जून, 2019 को जारी प्रेस नोट कहता है कि मतदान के दिन किस क्षेत्र में कितना प्रतिशत मतदान हुआ, इसका जो आंकड़ा चुनाव आयोग की वेबसाइट या मोबाइल ऐप पर दिखता है, वह अनुमानित होता है, उसमें बदलाव हो सकता है.
आयोग का कहना है कि ये आंकड़े इसलिए अनुमानित होते हैं क्योंकि ‘इसे रिटर्निंग अधिकारी/सहायक रिटर्निंग अधिकारी द्वारा अपलोड किया जाता है, जो यह डेटा सेक्टर मजिस्ट्रेट से प्राप्त करते हैं. सेक्टर मजिस्ट्रेट यह आंकड़े लगभग 10 प्रेसीडिंग अधिकारियों से समय-समय पर फोन या व्यक्तिगत रूप से एकत्र करते हैं.’
प्रेस नोट कहता है कि चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद भी मतदान के आंकड़ों को इकट्ठा करने का काम चलता रहता है. इन आंकड़ों को संकलित कर फ़ाइनल डेटा देने में पहले महीनों का वक्त लग जाता था. 2014 के चुनाव का परिणाम मई में आया था, लेकिन अंतिम आकंड़े अक्टूबर में दिए गये थे.
पिछले आम चुनाव (2019) के बाद आयोग ने दावा किया था कि नई तकनीक के बाद यह काम कुछ ही दिनों में हो जाएगा, लेकिन इस बार भी आयोग ऐसा नहीं कर पाया है. इस संबंध में द वायर हिंदी ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को ईमेल पर सवाल भेजे हैं, जिनका जवाब आने पर इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.
इस देरी से पड़ता प्रभाव
चुनावी प्रक्रिया पर नजर रखने वाले गैरसरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के सह-संस्थापक प्रोफेसर जगदीप छोकर ने द वायर हिंदी से कहा कि यह देरी लोकतंत्र का उल्लंघन है.
‘अगर वेरिफिकिशेन के बाद पता लगे कि चुनाव परिणाम गलत है तो… व्यक्ति तो सांसद बन गया, मंत्री बन गया..ये तो संविधान का उल्लंघन हो गया.’
‘चुनाव आयोग ने परिणाम घोषित कर दिया, अपने ही डेटा को वेरिफाई किए बिना. क्या आपको अपने डेटा पर विश्वास नहीं है? अगर विश्वास है तो आप उसको वेरिफाई क्यों कर रहे हैं, विश्वास पक्का करने के लिए न? इसका मतलब है कि आपको अपने डेटा पर पक्का विश्वास नहीं है और आपने नजीजे घोषित कर दिए.’
हालांकि यह सही है कि अभी तक ऐसे उदाहरण नहीं आए हैं कि अंतिम आकंड़ों ने आरंभिक आंकड़ों के ज़रिये मिले परिणाम को बदल दिया हो, या जिस राजनीतिक दल को पहले बहुमत मिला या जिसके नेतृत्व में सरकार बनी, अंतिम आंकड़े किसी अन्य दल को बहुमत मिलता दिखा रहे थे.
लेकिन वर्तमान राजनीतिक हालात में जब चुनाव आयोग पर तमाम प्रश्न पहले से ही लगते आए हैं, अंतिम आंकड़े जारी करने में यह देरी अन्य प्रश्नों को जन्म देती है.
पिछले चुनाव के बाद दो संगठनों ने अदालत का किया था रुख
मार्च 2021 में प्रकाशित द कारवां से एक बातचीत के दौरान पत्रकार पूनम अग्रवाल सवाल करती हैं कि ‘अगर चुनाव आयोग को पूरा डेटा संकलित करने में छह महीने लगे, तो क्या इसका मतलब यह है कि उन्होंने अनंतिम डेटा के आधार पर लोकसभा चुनाव परिणाम घोषित किए?’
एडीआर भी इस तरह की कथित विसंगति को दर्ज कर चुका है. 15 नवंबर, 2019 को एडीआर और कॉमन कॉज (एनजीओ) ने मतदाता और मतदान के आंकड़ों में कथित विसंगतियों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
चुनाव प्रक्रिया पर चिंता जताते हुए रिट याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित डेटा जारी करने से पहले परिणाम घोषित करना खतरनाक प्रवृत्ति है. जगदीप छोकर का कहना है कि यह मामला अभी भी अदालत में लंबित है. इतने महत्वपूर्ण मसले पर भी अब तक सिर्फ़ कुछ बार ही सुनवाई हुई है.