सुप्रीम कोर्ट ने टीएम कृष्णा को एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार विजेता के तौर पर मान्यता देने से रोका

सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में निर्देश दिया कि कर्नाटक गायक टीएम कृष्णा को द हिंदू संगीत कलानिधि एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार प्राप्तकर्ता के रूप में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए. दिवंगत गायिका के पोते का आरोप है कि कृष्णा ने सुब्बुलक्ष्मी के बारे में 'घटिया' और 'महिला विरोधी' टिप्पणियां की थीं.

कर्नाटक गायक टी.एम. कृष्णा. (फोटो साभार: https://tmkrishna.com)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (16 दिसंबर) को मशहूर कर्नाटक संगीत गायक टीएम कृष्णा को महान गायिका और भारत रत्न से सम्मानित एमएस सुब्बुलक्ष्मी के नाम पर स्थापित पुरस्कार पाने वाले के रूप में मान्यता देने या पेश करने पर रोक लगा दी.

रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश में निर्देश दिया कि कर्नाटक गायक टीएम कृष्णा को द हिंदू संगीत कलानिधि एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार पाने वाले शख्स के रूप में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश कृष्णा को द हिंदू द्वारा स्थापित और संगीत अकादमी द्वारा प्रदान किए गए पुरस्कार के एक दिन बाद आया.

जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने बेंगलुरू निवासी वी. श्रीनिवासन की याचिका पर यह अंतरिम आदेश पारित किया, जिन्होंने दावा किया है कि वह दिवंगत गायिका एमएस सुब्बुलक्ष्मी के पोते हैं.

कृष्णा को यह पुरस्कार शुक्रवार (13 दिसंबर) को मद्रास हाईकोर्ट की एक पीठ द्वारा एकल न्यायाधीश द्वारा दिए गए अंतरिम निषेधाज्ञा, जिसने संगीत अकादमी और द हिंदू को उन्हें पुरस्कार देने से रोक दिया था, खारिज किए जाने के बाद दिया गयाथा.

हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘यह स्पष्ट होना चाहिए कि संगीत अकादमी की एक शानदार विरासत है. संगीत की दुनिया में उनके योगदान को सार्वभौमिक मान्यता प्राप्त है. हिंदू समूह की भी यही प्रतिष्ठा है. अंतरिम आदेश को संगीत अकादमी या हिंदू या टीएम कृष्णा की गायन क्षमता पर टिप्पणी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.’

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने कहा, ‘चूंकि पुरस्कार 15 दिसंबर को ही दिया जा चुका है, इसलिए अंतरिम उपाय के रूप में हम यह कहना उचित समझते हैं कि प्रतिवादी (टीएम कृष्णा) को संगीत कलानिधि एमएस सुब्बुलक्ष्मी पुरस्कार के प्राप्तकर्ता के रूप में मान्यता नहीं दी जानी चाहिए और उन्हें खुद को उपरोक्त पुरस्कार प्राप्तकर्ता के रूप में पेश करने से भी रोका जाता है.’

याचिकाकर्ता श्रीनिवासन के वकील ने आरोप लगाया था कि कृष्णा ने एमएस सुब्बुलक्ष्मी के बारे में ‘घटिया’ और ‘महिला विरोधी’ टिप्पणियां की थीं. एमएस सुब्बुलक्ष्मी का साल 2004 में निधन हो गया था. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जिस व्यक्ति ने महान गायिका का ‘अपमान’ किया है, उसे उनके नाम पर कोई पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए.

कृष्णा और अन्य प्रतिवादियों के वकीलों ने इस बात से इनकार किया कि गायक ने कभी भी अपने द्वारा लिखे गए लेखों में एमएस सुब्बुलक्ष्मी को ‘सबसे बड़ा छल’ (the greatest hoax) नहीं कहा था, बल्कि कई लोगों द्वारा ऐसा कहे जाने के पर कृष्णा ने अपने लेख में इसी बात को ख़ारिज करने का प्रयास किया था.

जस्टिस भट्टी ने कहा कि पुरस्कार विजेता का चयन करना संगीत अकादमी की कार्यकारी समिति के ‘सत्ता और विशेषाधिकार’ के अंतर्गत आता है, लेकिन जब तक हमें यह स्पष्ट नहीं होता कि लेख प्रकाशित करवाते समय उनका कोई गलत अर्थ नहीं था, तब तक उन्हें (कृष्णा को)  उस व्यक्ति के नाम पर पुरस्कार नहीं देना चाहिए, जिसका उन्होंने अपमान किया है.

उन्होंने कहा कि गायक ने अतीत में अपनी कथित टिप्पणियों और लेखों को वापस लेने के बजाय उन्हें उचित ठहराने का विकल्प चुना था. भट्टी ने कहा, ‘यह बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा है.’

मामले को संवेदनशील बताते हुए अदालत ने सुब्बुलक्ष्मी के पोते की याचिका पर नोटिस जारी किया और कृष्णा, संगीत अकादमी और हिंदू समूह से छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है.