आर्मी प्रमुख के लाउंज की नई पेंटिंग पर पूर्व सैनिक संगठन का सवाल- सेना को धर्म से क्यों जोड़ रहे हैं

पूर्व सैन्यकर्मियों ने सेना प्रमुख के कार्यालय से 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की प्रतिष्ठित पेंटिंग को हटाने और नई पेंटिंग लगाए जाने पर सवाल उठाया है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ और तीनों सेनाओं के प्रमुखों को लिखे पत्र में उन्होंने पूछा है कि सशस्त्र बलों को धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है.

1971 युद्ध की तस्वीर. (फोटो साभार: X/@adgpi)

नई दिल्ली: सेना प्रमुख के लाउंज से 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की प्रतिष्ठित पेंटिंग को हटाने पर विवाद बढ़ता जा रहा है. विपक्ष से लेकर पूर्व सैन्यकर्मियों ने इस पर सवाल उठाते हुए नई पेंटिंग में सेना के गौरव को धर्म और चाणक्य से जोड़ने पर सवाल उठाया है.

द हिंदू की खबर के मुताबिक, इंडियन एक्स-सर्विसेज लीग (आईईएसएल) के अध्यक्ष ब्रिगेडियर इंदर मोहन सिंह (सेवानिवृत्त) ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) और तीनों सेनाओं के प्रमुखों को संबोधित एक पत्र में पुरानी ऐतिहासिक पेंटिंग की जगह नई पेंटिग जिसमें, महाभारत के संदर्भों को भी दर्शाया गया है ,को लेकर सवाल उठाए हैं.

मालूम हो कि पूर्व सैनिकों का संगठन इंडियन एक्स-सर्विसेज लीग रक्षा मंत्रालय द्वारा एक मान्यता प्राप्त संगठन है, जिसके प्रमुख संरक्षक केंद्रीय रक्षा मंत्री हैं और सीडीएस और तीन सेवा प्रमुख इसके संरक्षक हैं.

ब्रिगेडियर इंदर मोहन सिंह (सेवानिवृत्त) का कहना है कि सशस्त्र बलों को धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है, क्या हम अपनी प्रतिष्ठा को नष्ट कर अपनी बुनियाद को हिलाने जा रहे है.

नई पेंटिंग में लद्दाख के पैंगोंग त्सो, महाभारत से प्रेरित विषय-वस्तु और आधुनिक युद्ध को दर्शाया गया है, जो संभवतः चीन के साथ उत्तरी सीमा पर भारत के बढ़ते रणनीतिक फोकस को दर्शाता है. लेकिन पूर्व सैन्य अधिकारी ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि नई पेंटिंग के पृष्ठभूमि में पहाड़ों के साथ पैंगोंग त्सो और कुछ सैन्य उपकरण का क्या महत्व है?

ब्रिगेडियर इंदर मोहन सिंह के अनुसार, ‘लद्दाख में हमने फिंगर 4 से 8 तक अपने गश्त के अधिकार खो दिए हैं. मुझे यह पता है क्योंकि मैंने 2001 से 2003 तक उपेक्षित 114 इन्फैंट्री ब्रिगेड की कमान संभाली थी. फिर, हमारे पास इस पेंटिंग में चाणक्य हैं. क्या हम लगभग 2,400 वर्ष पहले उनके द्वारा सिखाई गई बातों पर चलते हैं? यदि उनके दर्शन इतने सुदृढ़ होते, तो भारत इतने सारे क्षेत्रों, राज्यों, रियासतों आदि में नहीं टूटता और क्या अंग्रेज बुद्धिमान नहीं थे, वे उन सभी को एक भूगोल में ले आए और आज सशस्त्र बल उस सफलता का परिणाम हैं और चाणक्य का नहीं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘आखिर में इस पेंटिंग में महाभारत को प्रतिबिंबित करने वाला रथ है, जिसे देखकर आश्चर्य होता है कि सशस्त्र बलों को धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है? क्या हम अपनी प्रतिष्ठा खत्म करना और अपनी जड़ें मिटाना चाहते हैं?’

उन्होंने सवाल किया कि आज हमारे सशस्त्र बलों के संबंध में इसकी क्या प्रासंगिकता है?

ज्ञात हो कि पिछले हफ्ते सेना प्रमुख के लाउंज से पेंटिंग हटाए जाने के बाद बढ़ती आलोचना के बीच सेना ने सोमवार (16 दिसंबर) को मानेकशॉ कन्वेंशन सेंटर में 1971 में पाकिस्तान के आत्मसमर्पण को दर्शाने वाली प्रतिष्ठित पेंटिंग लगा दी गई, जिसके पीछे तर्क दिया गया कि ये पेंटिंग के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है, जहां इसे ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सकते हैं.

1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का जिक्र करते हुए ब्रिगेडियर मोहन ने कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह अपनी तरह की पहली जीत थी, जहां किसी देश ने आत्मसमर्पण किया था.

गौरतलब है कि नई पेंटिंग 28 मद्रास रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जैकब द्वारा बनाई गई है. इसे ‘कर्म क्षेत्र’ यानी कर्मों का क्षेत्र’ कहा गया है. जिसकी पृष्ठभूमि में बर्फ से ढके पहाड़, दाईं ओर पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील, गरुड़ और कृष्ण का रथ दिखाया गया है. बाईं ओर चाणक्य और टैंक, सभी इलाके के वाहन, पैदल सेना के वाहन, गश्ती नौकाएं, स्वदेशी हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर और अपाचे हमले के हेलीकॉप्टर जैसे आधुनिक उपकरण भी हैं.

पूर्व सैन्य अधिकारी ने सवाल उठाया है कि क्या पुरानी पेंटिंग की जगह इस नई पेंटिग को सेना अध्यक्ष के आदेश से बदला गया है. क्योंकि यह फैसला सेना से जुड़े लोगों को प्रभावित करता है.

इसके साथ ही ब्रिगेडियर मोहन ने कहा कि अगर ऐतिहासिक तस्वीर आईईएसएल को उपहार में दे दी जाती है, तो वे आभारी होंगे और इसे सम्मान का स्थान दिया जाएगा.’

मालूम हो कि 1971 के युद्ध में निर्णायक नेतृत्व का श्रेय फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को दिया जाता है, उनकी प्रतिमा मानेकशॉ सेंटर में लगी हुई है. इसका जिक्र करते हुए ब्रिगेडियर मोहन ने कहा, ‘मुझे आश्चर्य है कि क्यों न इसका नाम ‘चाणक्य केंद्र’ रखा जाए और हमारे प्रिय फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की प्रतिमा के स्थान पर चाणक्य की प्रतिमा लगाई जाए.’

बता दें कि इससे पहले कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सोमवार को लोकसभा में यह मुद्दा उठाया था. शून्यकाल में प्रियंका गांधी वाड्रा ने 1971 के युद्ध में भारतीय सेना की भूमिका को याद करते हुए कहा था कि सेना मुख्यालय से पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की प्रतिष्ठित तस्वीर हटा दी गई है.

जिसके बाद आर्मी ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा था, ‘विजय दिवस के मौके पर जर्नल उपेंद्र द्विवेदी ने एडब्लूडब्लूए की अध्यक्ष सुनीता द्विवेदी के साथ मिलकर प्रतिष्ठित 1971 आत्मसमर्पण पेंटिंग को उसके सबसे उपयुक्त स्थान, मानेकशॉ सेंटर में स्थापित किया, जिसका नाम 1971 के युद्ध के नायक फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के नाम पर रखा गया है. इस अवसर पर भारतीय सेना के वरिष्ठ अधिकारी और सेवारत अधिकारी और दिग्गज मौजूद थे.’