हाशिमपुरा नरसंहार: सुप्रीम कोर्ट ने 82 साल के बुजुर्ग समेत दो और दोषियों को दी ज़मानत

1987 में यूपी के हाशिमपुरा में 42 लोगों की हत्या के आरोप में दिल्ली हाईकोर्ट ने 2018 में 16 पीएसी जवानों को दोषी मानते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दो और दोषियों को ज़मानत दी है. शीर्ष अदालत आठ दोषियों को पहले ही ज़मानत दे चुकी है.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के हाशिमपुरा में प्रादेशिक सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) के जवानों द्वारा 38 लोगों के नरसंहार के मामले में दो और दोषियों को शुक्रवार (20 दिसंबर) को जमानत दे दी. जमानत प्रप्त करने वालों में एक 82 वर्षीय व्यक्ति भी शामिल हैं, जिन्हें हाशिमपुरा नरसंहार मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय ने पलट दिया था.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि 2018 में उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें बरी किए जाने के फैसले को पलटने के बाद उन्होंने छह साल जेल में बिताए हैं.

मालूम हो कि  इससे पहले शीर्ष अदालत ने छह दिसंबर को इस मामले के आठ अन्य दोषियों को जमानत दे दी थी, जिनमें से सभी पूर्व पीएसी सदस्य थे.

अभियोजन पक्ष के अनुसार, मई 1987 में मेरठ जिले में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिसके चलते दंगा नियंत्रण और सुरक्षा के लिए पुलिस, अर्धसैनिक और सैन्य बलों को हाशिमपुरा मोहल्ले में तैनात किया गया था. इसमें पीएसी की 41वीं बटालियन की ‘सी-कंपनी’ भी शामिल थी. 21 मई 1987 को हाशिमपुरा से सटे मोहल्ले में सेना के एक मेजर के भाई की हत्या कर दी गई और कुछ असामाजिक तत्वों ने पीएसी जवानों की दो राइफलें लूट ली गई थी.

इसके बाद 22 मई की शाम को पीएसी कर्मियों ने कथित तौर पर लगभग 42-45 मुस्लिम लोगों को पकड़ लिया और उन्हें एक ट्रक में ले गए. बाद में उन्हें गोली मार दी गई और शवों को गंग नहर और हिंडन नहर में फेंक दिया गया. जिन लोगों को गोली मारी गई उनमें से कुछ लोग बच निकलने में कामयाब रहे. मारे गए 38 लोगों में से केवल 11 के शवों की पहचान बाद में रिश्तेदारों ने की. शेष शव बरामद नहीं किए जा सके.

सुनवाई को दिल्ली स्थानांतरित किया गया

इस मामले की जांच उत्तर प्रदेश की अपराध शाखा, आपराधिक जांच विभाग (सीबी-सीआईडी) को सौंपी गई थी. सीबी-सीआईडी ​​ने 1996 में गाजियाबाद की आपराधिक अदालत के समक्ष आरोप पत्र दायर किया था. पहले आरोप पत्र में पीएसी के अठारह अधिकारियों को आरोपी बनाया गया था, जबकि पूरक आरोप पत्र में एक और 19वें आरोपी को भी शामिल किया गया था. 2002 और 2007 में पारित सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत मामले की सुनवाई दिल्ली स्थानांतरित कर दी गई.

ज्ञात हो कि इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान तीन आरोपियों की मौत हो गई. बाकी 16 को ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया. फिर अपील पर उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को हस्तक्षेप करने की अनुमति दी तथा उसकी याचिका पर निचली अदालत द्वारा अतिरिक्त साक्ष्य दर्ज करने की अनुमति दी, जबकि अपील लंबित रखी गई.

इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपियों को बरी करने के फैसले को पलट दिया और अभियुक्तों को आपराधिक साजिश, अपहरण, हत्या और अपराध के सबूतों को गायब करने का दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.

हाशिमपुरा नरसंहार घटनाक्रम

हाशिमपुरा में 1987 में हुए नरसंहार का यह मामला कब, कहां हुआ और कैसे यह मुक़दमे से सज़ा की घोषणा तक पहुंचा, उसकी प्रमुख तारीख़ों का ब्योरा निम्न है.

22 मई 1987: पीएसी के जवान उत्तर प्रदेश के मेरठ में हाशिमपुरा गांव से अल्पसंख्यक समुदाय के करीब 50 मुस्लिम युवकों को कथित तौर अपने साथ जबरन ले गए. पीड़ितों को बाद में गोली मार दी गई और उनके शवों को नहर में फेंक दिया गया. घटना में 42 लोगों को मृत घोषित किया गया.

1988: उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले में सीबी-सीआईडी जांच के आदेश दिए.

फरवरी 1994: सीबी-सीआईडी ने अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी जिसमें 60 पीएसी और पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया गया.

20 मई 1996: उत्तर प्रदेश पुलिस की सीबी-सीआईडी द्वारा गाज़ियाबाद में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष 19 आरोपियों के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दायर किया गया. 161 लोगों को गवाह के तौर पर सूचीबद्ध किया गया.

सितंबर 2002: पीड़ितों और घटना में बचे हुए लोगों की याचिका पर उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले को दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया.

जुलाई 2006: दिल्ली की अदालत ने 17 आरोपियों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत हत्या, हत्या के प्रयास, साक्ष्यों से छेड़छाड़ और साज़िश के आरोप तय किए.

08 मार्च 2013: निचली अदालत ने सुब्रह्मण्यम स्वामी की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें मामले में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री पी. चिदंबरम की कथित भूमिका की जांच करने की मांग की गई.

22 जनवरी 2015: निचली अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा.

21 मार्च 2015: अदालत ने 16 जीवित आरोपियों को उनकी पहचान के संदर्भ में संशय का लाभ देते हुए बरी किया.

18 मई 2015: पीड़ितों के परिजनों और इस घटना में ज़िंदा बचे प्रत्यक्षदर्शियों की तरफ़ से निचली अदालत के फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई.

29 मई 2015: निचली अदालत के फैसले को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी गई चुनौती पर उच्च न्यायालय ने 16 पीएसी जवानों को नोटिस जारी किया.

दिसंबर 2015: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) को मामले में पक्षकार बनाया गया. एनएचआरसी ने इस मामले में और जांच की मांग की.

17 फरवरी 2016: उच्च न्यायालय ने इस मामले में स्वामी की याचिका को दूसरी संबंधित याचिकाओं के साथ जोड़ा.

06 सितंबर 2018: दिल्ली उच्च न्यायालय ने मामले में फैसला सुरक्षित रखा.

31 अक्टूबर 2018: दिल्ली उच्च न्यायालय ने पीएसी के 16 पूर्व कर्मचारियों को 42 लोगों की हत्या में दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई.