शशिभूषण द्विवेदी स्मृति सम्मान: युवा कथाकारों को मिलेगा प्रोत्साहन

वर्ष 2023 का प्रथम ‘शशिभूषण द्विवेदी स्मृति सम्मान’ इस बरस जुलाई में युवा लेखिका दिव्या विजय को उनके कहानी संग्रह ‘सगबग मन’ के लिए दिया गया था.

इस बरस जुलाई में हुए आयोजन के दौरान सम्मान ग्रहण करतीं दिव्या विजय. (फोटो साभार: जानकीपुल ट्रस्ट)

नई दिल्ली: हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार स्मृतिशेष शशिभूषण द्विवेदी की स्मृति में जानकी पुल ट्रस्ट ने कथा-साहित्य के लिए एक सम्मान स्थापित किया है. वर्ष 2023 का प्रथम ‘शशिभूषण द्विवेदी स्मृति सम्मान’ इस बरस जुलाई में युवा लेखिका दिव्या विजय को उनके कहानी संग्रह ‘सगबग मन’ के लिए दिया गया था.

वर्ष 2024 के सम्मान के लिए आवेदन की घोषणा करते हुए जानकी पुल के संस्थापक प्रभात रंजन ने कहा, ‘कथा साहित्य को लेकर अभी भी ऐसा कोई सम्मान नहीं है, जो युवा कथाकारों को प्रोत्साहित करने वाला हो. हम कोशिश कर रहे हैं कि पुरस्कार के केंद्र में पुस्तक रहे, लेखक नहीं. श्रेष्ठ रचनाशीलता को को पुरस्कार मिले और यह विचारधारा से परे जाकर हो.’

इस बरस दिव्या विजय को सम्मान दिए जाने के बाद वरिष्ठ लेखक अशोक वाजपेयी ने लिखा था, ‘हिंदी में ज़्यादातर पुरस्कारों की विश्वसनीयता और पारदर्शिता बहुत कम होती गई है. कई बार तो यह शक होता है कि हर अच्छे-बुरे लेखक को, कोई-न-कोई पकड़कर पुरस्कार दे ही देता है…पर स्वयं कुछ युवा लेखकों द्वारा ‘जानकीपुल’ लेखक-समवाय द्वारा दिवंगत युवा कथाकार शशिभूषण द्विवेदी की स्मृति में युवा कथा-साहित्य के लिए स्थापित पुरस्कार इन सबसे अलग है और  आशा की जा सकती है, भविष्य में भी अलग रहेगा.’

उन्होंने इस सम्मान की तुलना युवा कविता के लिए ‘भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार’ और युवा आलोचना के लिए ‘देवीशंकर अवस्थी पुरस्कार’ से करते हुए कहा था कि ‘सौभाग्य से यही दो ऐसे पुरस्कार हैं, जिनकी विश्वसनीयता और पारदर्शिता दशकों से बनी हुई है’ और ‘शशिभूषण द्विवेदी पुरस्कार अब मिलकर एक त्रयी बना देगा ऐसी आशा है’.

‘ऊपर जिस त्रयी का ज़िक्र किया गया, उसमें अब एक-एक पुरस्कार युवा कविता, युवा आलोचना और युवा कथा के लिए हो गया है. हिंदी साहित्य की सार्वजनिक सक्रियता के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि युवा साहित्य की तीन प्रमुख विधाओं के लिए अब तीन अलग-अलग पुरस्कार हैं,’ अशोक वाजपेयी ने लिखा था.

इस वर्ष के लिये आवेदन आमंत्रित करते हुए प्रभात रंजन ने कहा, ‘हमारा जोर है कि पुरस्कार में प्रत्येक चरण पर पारदर्शिता रहे. जब पहला सम्मान दिव्या विजय को मिला था, उनके लेखन को लेकर किसी ने सवाल नहीं उठाया था. किसी ने नहीं कहा कि वह अपात्र हैं.’

आवेदन के नियम. (फोटो साभार: जानकी पुल ट्रस्ट)

गौरतलब है कि पहले सम्मान के निर्णायक पत्रकार-लेखक प्रियदर्शन और वरिष्ठ लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ थीं, लेकिन ट्रस्ट ने अब एक नई तीन सदस्यीय ज्यूरी गठित की है, जिसके सदस्य पत्रकार-लेखक आशुतोष भारद्वाज, द्विभाषी उपन्यासकार अनुकृति उपाध्याय तथा लेखक-संपादक गिरिराज किराडू हैं.

निर्णायक-मंडल बदलने के प्रश्न पर प्रभात रंजन ने कहा, ‘पिछली ज्यूरी को हटाया नहीं गया. हिंदी के दो वरिष्ठ लेखकों ने जानकी पुल शशिभूषण द्विवेदी सम्मान को स्थापित करने में अहम योगदान दिया है. इस साल से हमने पुरस्कार की प्रक्रिया बदल दी. प्रक्रिया बदलने के बाद यह ज़रूरी लगा कि नई ज्यूरी बनाई जाए. नई प्रक्रिया इस नई ज्यूरी ने ही तय की है. यह ज्यूरी स्थायी है. ऐसी ज्यूरी बार-बार नहीं बन सकती जो पारदर्शिता को लेकर प्रतिश्रुत हो.’

इस बरस से यह पुरस्कार कथा विधा में पुस्तकाकार कृति पर दिया जाएगा, जिसके प्रकाशन के समय लेखक की आयु 40 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए.

प्रभात रंजन ने आगे कहा, ‘हिंदी फ़िक्शन का वर्तमान परिदृश्य प्रतिभाओं से भरपूर है, लेकिन उन्हें समुचित प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है. ख़ास विचारधारा से जुड़े लेखकों को या सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय लेखकों को बहुत कुछ मिल जाता है, लेकिन जो लेखक साधना की तरह से रच रहा है उसको कुछ नहीं मिलता. उदाहरण के लिए हाल के वर्षों में जिस लेखिका के लेखन ने मुझे बहुत प्रभावित किया मैंने पाया कि उसके लेखन को लेकर कोई व्यापक चर्चा नहीं होती. कारण क्या है? कारण यह है कि वह पीआर नहीं करतीं. ईमानदारी से अपना लेखन करती हैं. इस अवार्ड का प्रयास है कि ऐसे लेखकों को केंद्र में लाने का प्रयास किया जाए’.

‘एक बूढ़े की मौत’, ‘कहीं कुछ नहीं’, ‘खेल’, ‘खिड़की’, ‘छुट्टी का दिन’ और ‘ब्रह्महत्या’ जैसी कहानियों से हिंदी कथा साहित्य को समृद्ध करने वाले कथाकार शशिभूषण द्विवेदी का जन्म 26 जुलाई, 1975, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था. उनकी कहानियों ने शुरू से ही पाठकों और आलोचकों को प्रभावित किया. उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ के ‘नवलेखन पुरस्कार’ से पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी कथा पुस्तकों ‘ब्रह्महत्या तथा अन्य कहानियां’ तथा ‘कहीं कुछ नहीं’ को समकालीन हिंदी कथा लेखन में महत्वपूर्ण स्थान है. 7 मई 2020 को हृदयाघात से उनका आकस्मिक निधन हो गया था.