केंद्र का चुनाव नियमों में बदलाव, खरगे बोले- चुनाव आयोग की अखंडता ख़त्म करने की साज़िश

केंद्र सरकार ने चुनाव संचालन नियमों में संशोधन करते हुए कहा कि चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेज जनता के लिए उपलब्ध नहीं होंगे. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की ईमानदारी को जानबूझकर कम किया जा रहा है, जो संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला है.

मल्लिकार्जुन खरगे. (फोटो साभार: ट्विटर/@INCRajasthan)

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने रविवार (22 दिसंबर) को नरेंद्र मोदी सरकार पर एक बार फिर चुनाव की पारदर्शिता को कम करने का आरोप लगाया. खरगे का कहना है कि सरकार ने सीसीटीवी कैमरा और वेब कास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक डॉक्यूमेंट्स की जांच को रोकने के लिए चुनाव के नियम में बदलाव कर दिया.

कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि यह बदलाव चुनाव आयोग की संस्थागत अखंडता को नष्ट करने की मोदी सरकार की ‘व्यवस्थित साजिश’ का हिस्सा है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर खरगे ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की ईमानदारी को जानबूझकर कम किया जा रहा है, जो संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला है.

उन्होंने कहा, ‘मोदी सरकार द्वारा चुनाव संचालन नियमों में किया गया संशोधन भारत के चुनाव आयोग की संस्थागत अखंडता को नष्ट करने की उसकी सुनियोजित साजिश का हिस्सा है.’

खरगे ने कहा, ‘इससे पहले उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाले चयन समिति से हटा दिया था और अब वे उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी चुनावी जानकारी को छिपाने का सहारा ले रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि जब भी कांग्रेस पार्टी ने भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) को मतदाता सूची से नाम हटाए जाने और ईवीएम में पारदर्शिता की कमी जैसी चुनावी अनियमितताओं के बारे में लिखा, तो ईसीआई ने अपमानजनक लहजे में जवाब दिया और कुछ गंभीर शिकायतों को भी स्वीकार नहीं किया. यह फिर से साबित करता है कि ईसीआई, भले ही एक अर्ध-न्यायिक निकाय है, स्वतंत्र रूप से व्यवहार नहीं कर रहा है.

खरगे ने कहा, ‘मोदी सरकार द्वारा ईसीआई की अखंडता को जानबूझकर नुकसान पहुंचाना संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला है और हम उनकी रक्षा के लिए हर कदम उठाएंगे.’

इस मामले को लेकर तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद जवाहर सरकार ने पूछा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार क्या छिपा रही है.

उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा है, ‘आखिर क्यों अचानक चुनाव नियमों में बदलाव करके जनता को चुनाव रिकॉर्ड और डेटा के बारे में पूछने और जांचने से रोक दिया गया? मोदी और चुनाव आयोग की जोड़ी इतनी डरी हुई है कि जैसे ही हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया, उन्होंने अधिकार छीन लिए.’

चुनाव नियम में बदलाव

केंद्र सरकार ने शुक्रवार (20 दिसंबर) को चुनाव संचालन नियमों में संशोधन करते हुए कहा कि चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेज जनता के लिए उपलब्ध नहीं होंगे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय कानून मंत्रालय ने शुक्रवार को चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93(2)(ए) में संशोधन किया, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले ‘कागजात’ या दस्तावेजों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके.

चुनाव संचालन नियम के नियम 93 के अनुसार, चुनाव से संबंधित सभी ‘कागज़ात’ सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे. केंद्र सरकार द्वारा किए गए संशोधन में ‘कागज़ातों’ के बाद ‘इन नियमों में निर्दिष्ट अनुसार’ शब्द जोड़ा गया है. कानून मंत्रालय और ईसीआई अधिकारियों ने अलग-अलग बताया कि संशोधन के पीछे एक अदालती मामला ‘ट्रिगर’ था.

स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव आयोग के परामर्श से केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा अधिसूचित इस परिवर्तन के साथ चुनाव से संबंधित सभी कागजात जनता द्वारा निरीक्षण नहीं किए जा सकेंगे. केवल चुनाव संचालन नियमों में निर्दिष्ट कागजात ही जनता द्वारा निरीक्षण किए जा सकेंगे.

अदालतें भी चुनाव आयोग को चुनाव से संबंधित सभी कागजात जनता को उपलब्ध कराने का निर्देश नहीं दे पाएंगी.

यह पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा 9 दिसंबर को चुनाव आयोग को हाल ही में हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान केंद्र पर डाले गए मतों से संबंधित वीडियोग्राफी, सुरक्षा कैमरे की फुटेज और दस्तावेजों की प्रतियां अधिवक्ता महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने के निर्देश देने के कुछ दिनों बाद आया है.

चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने स्क्रॉल को बताया, ‘हमें सभी तरह के आवेदन मिलने लगे, कुछ तो आरटीआई (सूचना का अधिकार) के तहत भी आए, जिसमें दस्तावेज और यहां तक ​​कि मतदान केंद्रों के सीसीटीवी फुटेज भी मांगे गए. हम कुछ समय से चुनाव से संबंधित कागजातों के सार्वजनिक निरीक्षण को विनियमित करने की योजना बना रहे थे. अब हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नियमों में संशोधन कर उन्हें अधिसूचित कर दिया गया है.’

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनाव आयोग ने प्राचा की याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया था कि वह अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार नहीं थे, इसलिए वह चुनाव से संबंधित दस्तावेज नहीं मांग सकते.

हालांकि, हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को छह सप्ताह के भीतर फॉर्म 17सी, भाग 1 और भाग 2 सहित आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था. इसने प्राचा की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि उम्मीदवार और किसी अन्य व्यक्ति के बीच एकमात्र अंतर यह है कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को दस्तावेज मुफ्त में दिए जाने चाहिए, जबकि किसी अन्य व्यक्ति को निर्धारित शुल्क के भुगतान के अधीन दस्तावेज दिए जाने चाहिए.

मतदान दस्तावेजों तक पहुंच को प्रतिबंधित करने वाली केंद्र की अधिसूचना पर प्रतिक्रिया देते हुए प्राचा ने कहा, ‘लोकतंत्र और बाबासाहेब के संविधान को बचाने के लिए हमें असमान जमीन पर खेलने के लिए मजबूर किया जा रहा है. मनुवादी ताकतों ने पूरे इतिहास में आंबेडकरवादियों को दबाने के लिए अनैतिक और अनुचित तरीकों का इस्तेमाल किया है, जिसमें हारने पर गोल पोस्ट को बदलना भी शामिल है, लेकिन हमारे पास इन अलोकतांत्रिक और फासीवादी ताकतों को हराने के लिए अपनी कानूनी रणनीतियों सहित अपने तरीके हैं.’