ईसाइयों पर बढ़ते अत्याचार के बीच क्रिसमस कार्यक्रम में मोदी की मौजूदगी की आलोचना

देश की 200 से अधिक प्रमुख हस्तियों ने भारत में ईसाइयों के बढ़ते उत्पीड़न पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए वरिष्ठ ईसाई नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हाल ही में हुई मुलाकातों, ख़ासकर क्रिसमस कार्यक्रमों पर सवाल उठाए हैं.

पिछले क्रिसमस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित लंच.(फोटो: X/@BJP4India)

नई दिल्ली: तुषार गांधी, एनी राजा, फादर सेड्रिक प्रकाश, जॉन दयाल और शबनम हाशमी सहित देश की 200 से अधिक प्रमुख हस्तियों ने भारत में ईसाइयों के बढ़ते उत्पीड़न पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए हैं.

बयान में ईसाई समुदाय के विरुद्ध हिंसा और उत्पीड़न में खतरनाक वृद्धि का जिक्र करते हुए इसके समाधान के लिए तत्काल कार्रवाई का आह्वान किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, बयान में कहा गया है, ‘पिछले कुछ सालों में भारत में ईसाइयों का उत्पीड़न एक बढ़ती हुई चिंता का विषय रहा है. विभिन्न रपट बताती हैं कि विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.’

इस संदर्भ में हस्ताक्षरकर्ताओं ने वरिष्ठ ईसाई नेताओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हाल ही में हुई मुलाकातों, खासकर क्रिसमस कार्यक्रमों पर सवाल उठाए हैं. वे इन मुलाकातों को ईसाइयों की सुरक्षा के लिए सरकार की निष्क्रियता को वैध ठहराने के प्रयासों के रूप में देखते हैं.

बयान में कहा गया है, ‘यह आश्चर्यजनक है कि ईसाइयों के बढ़ते उत्पीड़न के बावजूद ईसाई नेतृत्व के प्रमुख सदस्यों ने प्रधानमंत्री मोदी, जिनकी ईसाइयों के अधिकारों की रक्षा में निष्क्रियता के लिए आलोचना होती रही है, के साथ बातचीत करना चुना है. मोदी को हाल के दिनों में क्रिसमस कार्यक्रमों में समुदाय के कुछ सदस्यों के साथ देखा गया है. उन्हें 23 दिसंबर 2024 को नई दिल्ली में क्रिसमस समारोह में सीबीसीआई द्वारा आमंत्रित किया जा रहा है.’

ईसाई विरोधी हिंसा में भारी वृद्धि

बयान में कहा गया है कि हाल के वर्षों में ईसाइयों और मुसलमानों का उत्पीड़न बढ़ा है, जो हिंदुत्व राष्ट्रवाद के पुनरुत्थान से प्रेरित है, जिसने अल्पसंख्यक विरोधी भावना को और बढ़ा दिया है. बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद जैसे धार्मिक राष्ट्रवादी समूहों पर कई राज्यों में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया है.

इवेंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया और यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम (यूसीएफ) के आंकड़ों का हवाला देते हुए बयान में कहा गया है: 2021 में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की 327 घटनाएं दर्ज की गईं. 2022 में 486 से अधिक घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें शारीरिक हिंसा के 115 मामले और धमकी और उत्पीड़न के 357 मामले शामिल हैं.

बयान में कहा गया है, ‘यूसीएफ ने वर्ष 2014 में 127 घटनाओं को सूचीबद्ध किया, जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली थी. वर्तमान में जनवरी 2024 से नवंबर 2024 तक भारत में ईसाई नागरिकों पर उनकी आस्था के लिए हमला किए जाने की 745 घटनाएं दर्ज की गई हैं.

बयान में आगे कहा गया है, ‘कई घटनाओं में चर्च और ईसाई संस्थानों को खास तौर पर निशाना बनाया गया है. 2021 में पूरे भारत में कम से कम 15 चर्चों में तोड़फोड़ की गई या उन्हें आग लगा दी गई. 2022 में कई चर्चों पर हमला किया गया, जिसमें दिल्ली का एक चर्च भी शामिल है, जिसमें हिंदू कट्टरपंथियों के एक समूह ने तोड़फोड़ की थी. 3 मई को मणिपुर में हुए हिंसा में 200 से ज़्यादा चर्च नष्ट हो गए और अनगिनत लोगों की जान चली गई.’

कानून और सरकार की निष्क्रियता आलोचना के घेरे में

बयान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहने के लिए सरकार और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की आलोचना की गई है. इसमें आरोप लगाया गया है कि हिंसा भड़काने के आरोपी हिंदू राष्ट्रवादी समूहों को सरकार से मौन समर्थन मिलता है. इसके अलावा 13 राज्यों द्वारा बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों के दुरुपयोग को ईसाइयों को निशाना बनाने के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया है.

बयान में कहा गया, ‘2021 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने भारत को अपने ‘विशेष चिंता वाले देशों’ की सूची में रखा, जिसमें देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के ‘व्यवस्थित, निरंतर और गंभीर’ उत्पीड़न का हवाला दिया गया.’

बयान के अंत में कार्रवाई का आह्वान किया गया है, जिसमें सरकार और ईसाई नेतृत्व से देश में ईसाई समुदाय के सामने बढ़ते खतरों को संबोधित करने का आग्रह किया गया है.

इसमें कहा गया है, ‘हम ईसाई नेतृत्व से इन चिंताओं को आवाज़ देने और भारत में ईसाइयों की सुरक्षा के लिए सरकार के प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री को जवाबदेह ठहराने का आह्वान करते हैं.’