यौन हिंसा और एसिड हमलों के पीड़ितों को मुफ्त इलाज देने से इनकार नहीं कर सकते अस्पताल: हाईकोर्ट

अदालत ने फैसला सुनाया कि यौन हिंसा और एसिड हमलों में ‘जीवित बचे मरीजों को प्राथमिक चिकित्सा, प्रयोगशाला परीक्षण और सर्जरी सहित मुफ्त चिकित्सा उपचार प्रदान किए बिना वापस नहीं भेजा जाएगा.’

दिल्ली हाईकोर्ट. (फोटो साभार: Ramesh Lalwani/Flickr, CC BY 2.0)

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सभी सरकारी अस्पताल और निजी अस्पताल, क्लीनिक और नर्सिंग होम यौन हिंसा और एसिड हमलों के पीड़ितों को आवश्यक चिकित्सा उपचार देने से इनकार नहीं कर सकते हैं. अदालत ने यह फैसला इस मुद्दे के मद्देनजर लिया कि ऐसे मरीजों को मुफ्त चिकित्सा उपचार प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

द हिंदू अखबार के मुताबिक, अदालत ने फैसला सुनाया कि ‘जीवित बचे मरीजों को प्राथमिक चिकित्सा, प्रयोगशाला परीक्षण, सर्जरी और किसी भी अन्य आवश्यक इलाज सहित मुफ्त चिकित्सा उपचार प्रदान किए बिना वापस नहीं भेजा जाएगा.’

जस्टिस प्रथिबा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की पीठ ने आदेश दिया, ‘अगर पुलिस को पता चलता है कि कोई भी चिकित्सा पेशेवर, पैरा-मेडिकल पेशेवर, चिकित्सा प्रतिष्ठान, चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी, अगर ऐसे पीड़ितों को आवश्यक चिकित्सा उपचार प्रदान करने से इनकार करता है, तो तुरंत बीएनएस, 2023 की धारा 200 (पीड़ित का इलाज न करने के लिए सजा) के तहत शिकायत दर्ज की जाएगी.’

अदालत का यह निर्देश एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए आया, जो अपनी 17 वर्षीय बेटी का बार-बार यौन उत्पीड़न करने के लिए आजीवन कारावास का सामना कर रहा था. इस साल अगस्त में कार्यवाही के दौरान अदालत को पता चला कि पीड़िता ने एक बच्चे को जन्म दिया है, जिसका डीएनए नमूना भी उस आदमी से मेल खाने की पुष्टि हुई है.

जजों ने इस तथ्य पर काफी चिंता व्यक्त की कि सरकारी काउंसलर ने पीड़िता से ठीक से संपर्क करने और उसका पता लगाने का कोई प्रयास नहीं किया. इसके बाद अदालत ने पीड़िता का पता लगाने और उसे अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दिया.

सितंबर में अगली सुनवाई केआर दौरान दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (डीएसएलएसए) ने पीड़िता और उसकी मां का पता लगाया, उन्हें अदालत में पेश किया गया. कोर्ट ने डीएसएलएसए को पीड़िता की अस्पताल में चिकित्सकीय जांच कराने में सहायता करने का आदेश दिया.

पिछली सुनवाई के दौरान डीएसएलएसए के सचिव श्री अभिनव पांडे ने अदालत का ध्यान इस ओर दिलाया कि पीड़िता के मुफ्त चिकित्सा उपचार के संबंध में इस अदालत के निर्देशों के बावजूद, वह डीएसएलएसए के बार-बार हस्तक्षेप के बाद इसका लाभ उठा सकी.

पांडे ने कहा कि सभी अस्पतालों को मुफ्त इलाज प्रावधानों के बारे में संवेदनशील होना जरूरी है.

अदालत ने कहा कि कानून के अनुसार, सभी अस्पतालों, नर्सिंग होम, क्लीनिकों, चिकित्सा केंद्रों पर बलात्कार पीड़ितों, पोक्सो मामले के पीड़ित और यौन हमलों से बचे लोगों आदि को मुफ्त चिकित्सा देखभाल और उपचार प्रदान करना अनिवार्य है.

अदालत ने टिप्पणी की ‘बीएनएसएस या सीआरपीसी के तहत प्रावधानों के बावजूद, अदालत को सूचित किया गया है कि यौन हिंसा और एसिड हमलों से बचे लोगों को मुफ्त चिकित्सा उपचार प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.’

हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि राजधानी में प्रत्येक चिकित्सा सुविधा एक बोर्ड लगाएगी जिसमें लिखा होगा: ‘यौन उत्पीड़न, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, एसिड हमलों आदि के पीड़ितों के लिए मुफ्त चिकित्सा उपचार उपलब्ध है.’

अदालत ने कहा कि ऐसे पीड़ित को आवश्यक चिकित्सा उपचार उपलब्ध नहीं कराना एक आपराधिक अपराध है, और सभी डॉक्टरों, प्रशासन, अधिकारियों, नर्सों, पैरामेडिकल कर्मियों आदि को इसकी जानकारी दी जाएगी.

आदेश में कहा गया है कि उपरोक्त प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले को एक वर्ष की अवधि के लिए कारावास भुगतना पड़ेगा.

अदालत द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया है कि ‘उपचार’ शब्द में प्राथमिक चिकित्सा, निदान, आंतरिक रोगी प्रवेश, निरंतर बाह्य रोगी सहायता, नैदानिक ​​​​परीक्षण, प्रयोगशाला परीक्षण, यदि आवश्यक हो तो सर्जरी, शारीरिक और मानसिक परामर्श, मनोवैज्ञानिक सहायता, पारिवारिक परामर्श आदि शामिल होंगे.’