नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वी. रामसुब्रमण्यम को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के एक दिन बाद कांग्रेस ने एक असहमति पत्र में चयन प्रक्रिया को एक ‘पूर्व निर्धारित कवायद’ कहा, जो मौलिक रूप से त्रुटिपूर्ण था. साथ ही कहा कि समिति ने ‘नामों को अंतिम रूप देने के लिए अपने संख्यात्मक बहुमत पर भरोसा किया’ और ‘देश की क्षेत्र, जाति, समुदाय और धार्मिक विविधता’ के संतुलन को नजरअंदाज कर दिया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने एक संयुक्त असहमति पत्र में कहा, ‘यह एक पूर्व निर्धारित कवायद था, जिसमें आपसी परामर्श और आम सहमति की स्थापित परंपरा को नजरअंदाज किया गया, जो ऐसे मामलों में आवश्यक है.
पत्र में कहा गया है, ‘यह बदलाव निष्पक्षता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को कमजोर करता है, जो चयन समिति की विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण हैं. विचार-विमर्श को बढ़ावा देने और सामूहिक निर्णय सुनिश्चित करने के बजाय समिति ने नामों को अंतिम रूप देने के लिए अपने संख्यात्मक बहुमत पर भरोसा किया. बैठक के दौरान उठाए गए वैध चिंताओं और दृष्टिकोणों की अनदेखी की.’
आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाती है, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, गृह मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता तथा राज्यसभा के उपसभापति होते हैं.
पत्र के अनुसार, दोनों कांग्रेस नेताओं ने ‘योग्यता और समावेशिता की आवश्यकता दोनों को ध्यान में रखते हुए’ अध्यक्ष पद के लिए जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस कुट्टीयल मैथ्यू जोसेफ के नाम प्रस्तावित किए थे. नरीमन पारसी समुदाय से हैं, जबकि जोसेफ ईसाई हैं.
पत्र में कहा गया है कि एनएचआरसी सदस्यों के पदों के लिए उन्होंने जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस अकील अब्दुल हमीद कुरैशी की सिफारिश की है क्योंकि दोनों के पास मानव अधिकारों को बनाए रखने में अनुकरणीय रिकॉर्ड है.
जस्टिस मुरलीधर 2023 में ओडिशा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुए और इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया. दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में उन्होंने 26 फरवरी, 2020 को राजधानी में हुए दंगों के दौरान चार महत्वपूर्ण आदेश पारित किए. उनमें से एक आदेश में दिल्ली पुलिस को कथित नफरत भरे भाषणों के लिए भाजपा नेताओं – जिनमें अनुराग ठाकुर भी शामिल हैं – के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कहा गया था, जिसके बारे में याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि उन्होंने दंगे भड़काए थे.
इन आदेशों के बाद सरकार ने 26 फरवरी की देर रात को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में उनके स्थानांतरण की अधिसूचना जारी कर दी – जिसकी कॉलेजियम ने पहले ही सिफारिश कर दी थी – लेकिन न्यायाधीश को काम निपटाने के लिए दो सप्ताह का समय नहीं दिया गया. जस्टिस मुरलीधर ने 1984 के सिख नरसंहार में उनकी भूमिका के लिए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को भी दोषी ठहराया.
दूसरी ओर, जस्टिस कुरैशी 2022 में राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. 2010 में उन्होंने सोहराबुद्दीन मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दो दिनों की पुलिस हिरासत में भेजा था.
असहमति पत्र में कहा गया है कि ‘यद्यपि योग्यता निस्संदेह प्राथमिक मानदंड है, लेकिन राष्ट्र की क्षेत्रीय, जातिगत, सामुदायिक और धार्मिक विविधता को प्रतिबिंबित करने वाला संतुलन बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण है.’
इसमें कहा गया है, ‘संतुलन सुनिश्चित करता है कि एनएचआरसी समावेशी दृष्टिकोण के साथ काम करे, समाज के सभी वर्गों के अनुभवों के प्रति संवेदनशील हो. इस महत्वपूर्ण सिद्धांत की उपेक्षा करके समिति इस प्रतिष्ठित संस्था में जनता के विश्वास को खत्म करने का जोखिम उठा रही है.’
दोनों कांग्रेस सांसदों ने कहा कि 18 दिसंबर को हुई बैठक में चयन समिति द्वारा अपनाया गया ‘निराशाजनक दृष्टिकोण’ बेहद खेदजनक है.
पत्र में आगे कहा गया है, ‘एनएचआरसी की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता भारत के संवैधानिक लोकाचार को परिभाषित करने वाली विविधता और समावेशिता को मूर्त रूप देने की इसकी क्षमता पर निर्भर करती है. हमने जो नाम प्रस्तावित किए हैं, वे इस भावना को दर्शाते हैं और आयोग के मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप हैं. उनका बहिष्कार चयन प्रक्रिया की निष्पक्षता के बारे में महत्वपूर्ण चिंताएं पैदा करता है.’
सोमवार (23 दिसंबर) को एक बयान में एनएचआरसी ने जस्टिस रामसुब्रमण्यम की नियुक्ति की घोषणा की, जो जस्टिस अरुण मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद जून से खाली पड़े अध्यक्ष के पद को भरेंगे. इसके अलावा, प्रियांक कानूनगो, जो पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं, और सेवानिवृत्त जस्टिस बिद्युत रंजन सारंगी को आयोग के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया है.