दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण को दृष्टिहीन छात्रों का पुनर्वास करने का आदेश दिया. हाईकोर्ट ने मामले को लेकर उपराज्यपाल, डीडीए, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड और समाज कल्याण मंत्रालय से रिपोर्ट पेश करने को कहा.
नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दृष्टिहीन छात्रों के हॉस्टल गिराए जाने की दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की कार्रवाई पर हस्तक्षेप करते हुए उससे जवाब मांगा है.
बीते 15 दिसंबर को राजधानी दिल्ली के जनकपुरी स्थित वीरेंद्रनगर इलाके में 17 साल से दृष्टिहीन छात्रों का आसरा रहे इस हॉस्टल को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने गिरा दिया था. इस मामले में नियुक्त वकील कमलेश मिश्रा ने बताया कि हाईकोर्ट ने डीडीए को इन छात्रों को पुनर्वास करने का आदेश दिया है. मिश्रा ने कहा कि अदालत ने शुक्रवार को इंडियन एक्सप्रेस द्वारा एक रिपोर्ट का संज्ञान लिया है. मामले की अगली सुनवाई 16 जनवरी को की जाएगी.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार वकील पंकज सिन्हा, जो कि स्वयं दृष्टिहीन हैं, द्वारा इस मामले की जानकारी मिलने पर कार्यवाहक जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरिशंकर की पीठ ने इन छात्रों के पुनर्वास के लिए स्थानीय निकायों से भी जवाब तलब किया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल, दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड और समाज कल्याण मंत्रालय से इस मामले पर रिपोर्ट पेश करने को कहा है. साथ ही कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण को इन छात्रों के पुनर्वास का आदेश दिया है.
इसके अलावा दृष्टिहीन छात्रों को उनके जीवन और गरिमा के साथ जीने के अधिकार के उल्लंघन और इतनी सर्दी में खुले में रहने को मजबूर करने के कारण राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली के मुख्य सचिव और डीडीए के उपाध्यक्ष को नोटिस भी जारी किया, जिसमें चार सप्ताह के भीतर एक विस्तृत रिपोर्ट की मांग की है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राजधानी दिल्ली में उपलब्ध आवास घरों और छात्रावासों की संख्या का विवरण देने का भी आदेश प्राधिकरण को दिया है.
ज्ञात हो बीते 15 दिसंबर को 17 साल से दृष्टिहीन छात्रों का एक हॉस्टल को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने गिरा दिया. इस कार्रवाई के बाद तकरीबन एक हफ्ते से सड़क किनारे खुले में सोने को मजबूर हैं. इस हॉस्टल में ज़्यादातर दिल्ली विश्वविद्यालय और सर्वोदय स्कूल के छात्र थे. लुई वेलफेयर प्रोग्रेसिव एसोसिएशन आॅफ द ब्लाइंड नाम के इस हॉस्टल में तकरीबन 20 लोग रहते थे.
यह छात्रावास साल 2010 में बना था, इससे पहले इस बिल्डिंग का इस्तेमाल आंगनबाड़ी सेंटर के रूप में हो रहा था.लेकिन साल 2010 में इसे यहां से शिफ्ट कर दिया गया था. फिर क्षेत्रीय पार्षद ने यह ज़मीन इन दृष्टिहीन छात्रों को रहने के लिए दे दी थी.
इंडियन एक्सप्रेस की एक और रिपोर्ट के मुताबिक हॉस्टल गिराए जाने से छात्रों को उनके खोए हुए दस्तावेज़ खोजने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. छात्रों का आरोप है कि उनके जो दस्तावेज़ ब्रेल लिपि में नहीं हैं उन्हें खोजने में वो असमर्थ हैं और उनके पास सहायता के लिए भी कोई नहीं है.