मामले में पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र बरी. राजद प्रमुख लालू यादव सहित 16 लोग दोषी क़रार. तीन जनवरी को विशेष सीबीआई अदालत सुनाएगी सज़ा.
रांची: चारा घोटाले के एक मामले में रांची की एक विशेष सीबीआई अदालत ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजद प्रमुख लालू प्रसाद, पूर्व सांसदों आरके राणा और जगदीश शर्मा एवं कई आईएएस अधिकारियों सहित 16 आरोपियों को बीते 23 दिसंबर को दोषी क़रार देते हुए जेल भेज दिया. अदालत तीन जनवरी को दोषियों के ख़िलाफ़ सज़ा सुनाएगी.
वहीं इस मामले में अदालत ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, बिहार के पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद, बिहार विधानसभा की लोक लेखा समिति पीएसी के तत्कालीन अध्यक्ष ध्रुव भगत सहित छह लोगों को निर्दोष क़रार देते हुए मामले से बरी कर दिया.
अदालत के फैसले के बाद दोषी ठहराए गए सभी 16 लोगों को बिरसा मुंडा जेल भेज दिया गया.
लालू प्रसाद यादव ने जेल जाने से पूर्व कहा कि उन्हें राजनीतिक साज़िश के तहत फंसाया गया है और इस फैसले के ख़िलाफ़ वह उच्च न्यायालय जाएंगे जहां उन्हें अवश्य न्याय मिलेगा. उन्होंने कहा कि उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.
अदालत का यह फैसला आते ही राजद के प्रवक्ता मनोज झा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की. उन्होंने अदालत के फैसले पर सवाल उठाए हैं. राजद की ओर से कहा गया है कि अवैध निकासी पर जिसने एफआईआर किया है उसी को जेल भेज दिया गया. इसके पीछे पूरी तरह से भाजपा की साज़िश है. हमें पूरी न्यायपालिका पर भरोसा है. इस देश को सिर्फ दो लोग चला रहे हैं.
950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले से संबंधित देवघर कोषागार से 89 लाख, 27 हज़ार रुपये के फर्जीवाड़े के मामले से जुड़े इस मुक़दमे में सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने शाम पौने चार बजे फैसला सुनाया.
उन्होंने सबसे पहले इस मामले में मिश्रा, निषाद, भगत, चौधरी, सरस्वती चंद्र एवं साधना सिंह को निर्दोष क़रार देते हुए बरी कर दिया.
अदालत ने इसके बाद मामले के 22 आरोपियों में से शेष सभी 16 आरोपियों को दोषी क़रार दिया और उन्हें हिरासत में लेकर बिरसा मुंडा जेल भेजने का निर्देश दिया. सजा सुनाए जाते ही लालू, शर्मा, आईएएस अधिकारी बेक जूलियस सहित अनेक लोगों के चेहरे पर मायूसी छा गई. उनके अनेक रिश्तेदारों एवं मित्रों की आंखें भी डबडबा गईं.
सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के इस मामले में लालू के अलावा सुशील कुमार सिन्हा, सुनील कुमार सिन्हा, राजाराम जोशी, गोपीनाथ दास, संजय अग्रवाल, ज्योति कुमार, सुनील गांधी, तीन पूर्व आइएएस अधिकारियों फूलचंद सिंह, जूलियस और महेश प्रसाद, पूर्व सांसदों राणा और शर्मा एवं चारा आपूर्तिकर्ता कृष्ण कुमार एवं त्रिपुरारी मोहन को दोषी क़रार दिया.
इससे पूर्व बीते 23 दिसंबर को फैसला सुनने लगभग 11 बजे लालू, मिश्रा एवं अन्य सीबीआई की विशेष अदालत पहुंचे जहां उपस्थिति दर्ज करने के बाद अदालत ने उन्हें फैसला सुनने के लिए दोबारा दोपहर बाद तीन बजे पेश होने के निर्देश दिया.
इससे पहले चाईबासा कोषागार से 37 करोड़, 70 लाख रुपये की अवैध निकासी के चारा घोटाले के एक अन्य मामले में लालू, शर्मा, राणा, मिश्रा समेत आज के मामले के कई आरोपी दोषी ठहराए जा चुके हैं. हालांकि उच्च न्यायालय से उनको ज़मानत मिल गई थी.
अदालत पहुंचे राजद सुप्रीमो ने मीडिया से कहा कि वह निर्दोष हैं और उन्हें न्यायपालिका से न्याय मिलने की आशा है. उन्होंने कहा कि भाजपा एवं अन्य ने उन्हें राजनीतिक विद्वेष की भावना से इस मामले में फंसाया है.
उन्होंने कहा कि वह भाजपा से लड़ेंगे और उसकी नकारात्मक राजनीति का जवाब देंगे. उन्होंने ने कहा कि वह किसी से डरते नहीं हैं और राजद का प्रत्येक कार्यकर्ता लालू है लिहाज़ा उनके जेल जाने या न जाने से पार्टी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
यह मामला वर्ष 1990 से 1994 के बीच देवघर कोषागार से अवैध तरीके से रुपये की निकासी से संबंधित है. सीबीआई ने 27 अक्तूबर, 1997 को मुकदमा संख्या आरसी, 64ए, 1996 दर्ज किया था और लगभग 21 वर्षों बाद इस मामले में फैसला सुनाया गया.
अवैध तरीके से धन निकालने के इस मामले में लालू प्रसाद यादव एवं अन्य के ख़िलाफ़ सीबीआई ने आपराधिक षड्यंत्र, गबन, फ़र्ज़ीवाड़ा, साक्ष्य छिपाने, पद के दुरुपयोग आदि से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के साथ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1)(डी) एवं 13(2) के तहत मुक़दमा दर्ज किया था.
इस मामले में कुल 38 लोगों को आरोपी बनाया गया था. इनमें से 11 की मौत हो चुकी है, वहीं तीन सीबीआई के गवाह बन गए जबकि दो ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था जिसके बाद उन्हें 2006-07 में ही सज़ा सुना दी गई थी. इसके बाद 22 आरोपी बच गए थे, जिनको लेकर 23 दिसंबर को फैसला सुनाया गया.
शिवपाल सिंह की अदालत ने इस मामले में सभी पक्षों के गवाहों के बयान दर्ज करने और बहस के बाद अपना फैसला 13 दिसंबर को सुरक्षित रख लिया था. इस मामले की सुनवाई के लिए लालू अपने छोटे बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ 22 दिसंबर की शाम चार बजे रांची पहुंचे थे.
लालू के अधिवक्ता चितरंजन प्रसाद ने बताया कि इस मामले में लालू को अधिकतम सात वर्ष की एवं न्यूनतम एक वर्ष की क़ैद की सज़ा हो सकती है.
इस मामले में तीन आईएएस अधिकारियों फूलचंद सिंह, बेक जूलियस एवं महेश प्रसाद को भी आरोपी बनाया गया था. साल 2013 में इस मामले के 53 में से 44 केसों की सुनवाई पूरी हो गई और 500 लोगों को दोषी पाया गया और कई अदालतों ने उनको सज़ा सुनाई.
साल 2013 के अक्टूबर महीने में चाईबासा कोषागार से 37 करोड़, सत्तर लाख रुपये अवैध ढंग से निकासी करने के चारा घोटाले के एक अन्य मामले में लालू प्रसाद यादव और सहित 22 लोगों को सज़ा सुनाई गई थी. हालांकि लालू यादव ने इस फैसले के ख़िलाफ़ उच्चतम न्यायालय में अपील की थी जिसके बाद उन्हें ज़मानत मिल गई थी.
बता दें कि इस मामले 23 जून 1997 में सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव सहित 55 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल की थी. इसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रदेव प्रसाद वर्मा का भी नाम था.
इसके बाद लालू और जगन्नाथ मिश्रा ने अग्रिम जमानत की गुहार लगाई. लेकिन 29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने भी लालू की अग्रिम ज़मानत की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी. इसी दिन उस समय बिहार के सबसे ताकतवर नेता रहे मुख्यमंत्री लालू यादव को बिहार पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.
इसके बाद लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. उन्होंने अपनी जगह पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया. राबड़ी देवी ने कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन से विश्वासमत हासिल कर दिया. तकरीबन 135 दिन जेल में रहने के बाद लालू को 12 दिसंबर 1997 को बाहर आए थे.
हालांकि इसके अगले साल ही 28 अक्टूबर 1998 को उन्हें चारा घोटाले के ही एक दूसरे मामले में फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. इस बार उन्हें पटना की बेऊर जेल में रखा गया था. बाद में उन्हें ज़मानत मिल गई थी.
चारा घोटाले का घटनाक्रम
अविभाजित बिहार सरकार में 1996 में 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले का खुलासा हुआ. वर्ष 2000 में बिहार से अलग कर झारखंड राज्य के गठन के बाद 61 में से 39 मामले नए राज्य में हस्तांतरित कर दिया गया.
मामले में 20 ट्रकों पर भरे दस्तावेज़ थे. मामले में एक विशेष सीबीआई अदालत ने 23 दिसंबर को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को दोषी करार दिया गया.
घटनाक्रम इस प्रकार है:
जनवरी, 1996: चाईबासा के उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग में छापेमारी की जिसके बाद चारा घोटाले का खुलासा हुआ.
मार्च, 1996: पटना उच्च न्यायालय ने सीबीआई से चारा घोटाले की जांच करने को कहा. सीबीआई ने चाईबासा (अविभाजित बिहार में) कोषागार से अवैध निकासी मामले में प्राथमिकी दर्ज की.
जून, 1997: सीबीआई ने आरोपपत्र दायर किया, लालू प्रसाद को आरोपी के तौर पर नामज़द किया.
जुलाई, 1997: लालू ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया, राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया गया. सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया. न्यायिक हिरासत में भेजे गए.
अप्रैल, 2000: राबड़ी को भी मामले में आरोपी बनाया गया लेकिन उन्हें ज़मानत दे दी गई.
अक्टूबर, 2001: उच्चतम न्यायालय ने बिहार के विभाजन के बाद मामला झाारखंड उच्च न्यायालय को हस्तांतरित किया.
फरवरी, 2002: झारखंड में विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई.
दिसंबर, 2006: पटना की एक निचली अदालत ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में लालू और राबड़ी को बरी किया.
मार्च, 2012: लालू और जगन्नाथ मिश्रा के ख़िलाफ़ आरोप तय किए गए.
सितंबर, 2013: एक दूसरे चारा घोटाला मामले में लालू, मिश्रा और 45 अन्य दोषी क़रार दिए गए. लालू को रांची की जेल में भेजा गया और लोकसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराया गया, चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई.
दिसंबर, 2013: उच्चतम न्यायालय ने लालू को ज़मानत दी.
मई, 2017: उच्चतम न्यायालय के आठ मई के आदेश के बाद सुनवाई दोबारा शुरू हुई. उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत से देवघर कोषागार से अवैध निकासी मामले में उनके ख़िलाफ़ अलग से मुकदमा चलाने को कहा.
23 दिसंबर, 2017: सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू सहित 16 अन्य को दोषी क़रार दिया. लालू को अब तक छह में से दो मामलों में दोषी क़रार दिया जा चुका है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)