नई दिल्ली: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेतृत्व में इतिहास के पुनर्लेखन का काम व्यापक स्तर पर जारी है. 2025 की पहली तारीख़ को पड़ोसी मुल्क के चर्चित अख़बार ‘डेली स्टार’ ने बताया कि बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तकों में छात्रों को पढ़ाया जाएगा कि 1971 में देश की आजादी की घोषणा ‘बंगबंधु‘ शेख मुजीबुर रहमान ने नहीं, बल्कि जियाउर रहमान ने की थी.
बताया गया है कि नई पाठ्यपुस्तकों में मुजीब की ‘राष्ट्रपिता‘ की उपाधि भी हटा दी गई है.
नेशनल करिकुलम एंड टेक्स्टबुक बोर्ड के चेयरमैन प्रोफेसर एकेएम रियाजुल हसन ने द डेली स्टार को बताया, ‘शैक्षणिक वर्ष-2025 के लिए तैयार की गई नई पाठ्यपुस्तकों में लिखा होगा कि 26 मार्च, 1971 को जियाउर रहमान ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की और 27 मार्च को उन्होंने बंगबंधु की ओर से स्वतंत्रता की एक और घोषणा की.’
जियाउर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के संस्थापक और वर्तमान बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया के पति थे. बता दें कि हाल ही में प्रधानमंत्री पद छोड़ने को मजबूर हुईं शेख हसीना के पिता मुजीब ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था.
पहले भी पाठ्यपुस्तकों में हो चुके हैं बदलाव
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मुजीब और जियाउर की विरासत हमेशा से ही राजनीतिक रूप से विवादित रही है, और यह सवाल भी विवादित रहा है कि बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा किसने की. मुजीब के नेतृत्व में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का नेतृत्व करने वाली पार्टी अवामी लीग का दावा है कि यह घोषणा ‘बंगबंधु’ ने की थी, जबकि बीएनपी अपने संस्थापक जियाउर को इसका श्रेय देती है.
इसी वजह से बांग्लादेश में सत्ता के आधार पर आधिकारिक इतिहास में बदलाव होता रहा है. 1978 में बांग्लादेश के राष्ट्रपति के रूप में ज़ियाउर के शासनकाल के दौरान पहली बार इस तरह का बदलाव किया गया और ज़ियाउर को स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला व्यक्ति बताया गया.
तब से आधिकारिक इतिहास का कई बार पुनर्लेखन हुआ है. सबसे हाल ही की बात करें तो 2009 में शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद का इतिहास का पुनर्लेखन हुआ था.
2010 में 1978 में प्रकाशित ‘बांग्लादेश स्वतंत्रता युद्ध: दस्तावेज’ के तीसरे खंड, जिसमें जियाउर को स्वतंत्रता के उद्घोषक के रूप में प्रस्तुत किया गया था, को बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित कर दिया गया था.
अगस्त 2024 में सरकार विरोधी आंदोलन के कारण शेख हसीना को सत्ता छोड़नी पड़ी थी. उनके कार्यकाल में मुजीब की विरासत को मजबूत करने के प्रयास किए गए थे. लेकिन अब अंतरिम सरकार, जिसमें बीएनपी का दबदबा है, ने मुजीब की विरासत पर प्रहार किया है. विरोध प्रदर्शनों में मुजीब की मूर्तियां तोड़ी गईं और उनके निवास (जिसे हसीना सरकार में स्मारक के रूप में विकसित किया गया था) को जलाकर नष्ट कर दिया गया.
स्वतंत्रता की घोषणा पर विवाद
तथ्यों के आधार पर ज़िया के स्वतंत्रता घोषणाकर्ता होने का दावा संदिग्ध है. 26 मार्च 1971 को शेख मुजीब ने स्वतंत्रता की घोषणा की थी. अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए) और हेनरी किसिंजर की अध्यक्षता में वाशिंगटन स्पेशल एक्शन ग्रुप की बैठक के दस्तावेज़ों में भी मुजीब की घोषणा का उल्लेख है.
मुजीब का संदेश 26 मार्च की सुबह 12:30 बजे टेलीग्राम से भेजा गया था. 26 मार्च की दोपहर, कलुरघाट स्थित ‘स्वाधीन बांग्ला बेतार केंद्र’ से मुजीब के संदेश को एमए हन्नान ने प्रसारित किया. ज़िया ने 27 मार्च को बंगबंधु के नाम पर एक और घोषणा की.
ज़िया और मुजीब की विरासत का संघर्ष
मुजीब ने 1973 में भारी बहुमत से चुनाव जीता था और बांग्लादेश को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बनाने का प्रयास किया. वहीं, 1975 में उनकी हत्या के बाद सत्ता में आए ज़िया-उर-रहमान ने संविधान से धर्मनिरपेक्षता को हटाकर इस्लामी तत्वों को बढ़ावा दिया.