नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में पत्रकार मनोज टिबरेवाल आकाश के पैतृक घर को अवैध रूप से गिराए जाने से जुड़े एक मामले में पुलिस ने तत्कालीन जिलाधिकारी, कई पुलिस अधिकारियों और प्रशासनिक अधिकारियों सहित 26 लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस मामले में अधिकारियों की व्यक्तिगत तौर पर जवाबदेही तय करने का आदेश दिया था, जिसके बाद दो महीने के भीतर ही ये कार्रवाई सामने आई है.
इस मामले में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अमर नाथ उपाध्याय, जो सितंबर 2019 में महाराजगंज के डीएम थे, के साथ 26 अन्य लोगों के खिलाफ 16 से अधिक आरोप लगाए गए हैं, जिसमें सड़क चौड़ीकरण के नाम पर टिबरेवाल के घर को मनमाने ढंग से ध्वस्त करना, आपराधिक साजिश रचना, कानून की अवहेलना और दस्तावेजों के साथ जालसाजी आदि शामिल हैं.
ज्ञात हो कि बीते साल 6 नवंबर को भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ सहित तीन जजों की पीठ ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार को पत्रकार मनोज टिबरेवाल के दो मंजिला पैतृक घर और दुकान को अवैध रूप से ध्वस्त करने के लिए मुआवज़े के तौर पर 25 लाख रुपये देने का निर्देश दिया था.
शीर्ष अदालत ने ध्वस्तीकरण को मंजूरी और उसे अंजाम देने वाले संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक आपराधिक कार्रवाई का आह्वान करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि कानून के शासन में बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है.
इस संबंध में मान्यता प्राप्त पत्रकार टिबरेवाल ने अक्टूबर 2019 में अदालत को एक पत्र लिखकर महाराजगंज के मोहल्ला हामिद नगर में उनकी संपत्ति को अवैध रूप से ध्वस्त करने की शिकायत की थी. अदालत ने शिकायत को स्वत: रिट याचिका के रूप में दर्ज किया था और 2020 में डीएम और पुलिस अधीक्षक महाराजगंज को नोटिस जारी किया था.
नवंबर 2024 के अपने आदेश में शीर्ष अदालत की पीठ ने यूपी के मुख्य सचिव को कानून का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों की व्यक्तिगत जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए दंडात्मक उपायों सहित उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया था.
बता दें कि 30 दिसंबर 2024 को महाराजगंज पुलिस ने टिबरेवाल द्वारा 5 मार्च 2020 को राज्य के पुलिस महानिदेशक को सौंपी गई शिकायत पर एक मुकदमा दर्ज किया था. उनकी संपत्ति को ध्वस्त करने की कार्रवाई 13 सितंबर 2019 को की गई थी.
अपनी शिकायत में टिबरेवाल ने आरोप लगाया था कि उनकी पैतृक संपत्ति को तत्कालीन डीएम उपाध्याय के नेतृत्व में अधिकारियों ने पुलिस अधिकारियों, इंजीनियरों और ठेकेदारों के साथ मिलकर एक ‘बड़ी साजिश’ के तहत ध्वस्त कर दिया. टिबरेवाल ने एफआईआर में कहा था कि डीएम ने ‘दमनकारी और द्वेषपूर्ण रवैया’ अपनाया और ‘आपराधिक इरादे’ से उनके घर को मलबे में तब्दील कर दिया.
उन्होंने कहा कि प्रशासन ने उनके खिलाफ बदले की भावना से कार्रवाई की है, क्योंकि उनके पिता सुशील कुमार ने तोड़फोड़ से कुछ दिन पहले ही लिखित शिकायत में राष्ट्रीय राजमार्ग-730 (किमी 484 से 505 तक) के 21 किलोमीटर लंबे हिस्से के निर्माण में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की जांच की मांग की थी, जिसकी लागत 185 करोड़ रुपये है.
इस मामले में सुशील कुमार ने सड़क निर्माण में बड़ी अनियमितताओं, ‘कमीशनखोरी’ और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए विशेष जांच दल द्वारा जांच की मांग की थी. इस शिकायत के बारे में स्थानीय अख़बारों में रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी.
टिबरेवाल ने आरोप लगाया है कि इसके बाद डीएम, उनके सहयोगी अधिकारी, सरकारी इंजीनियर और ठेकेदार परिवार के खिलाफ रंजिश रखने लगे.
डीएम का विवादित अतीत
मालूम हो कि वर्ष 2016 में आईएएस अधिकारी के रूप में पदोन्नत हुए अमर नाथ उपाध्याय मार्च 2018 से अक्टूबर 2019 तक महाराजगंज के जिला मजिस्ट्रेट थे, जब उन्हें चार अन्य अधिकारियों के साथ एक गौ संरक्षण केंद्र के रखरखाव में कथित ‘वित्तीय अनियमितताओं’ और उसमें बेसहारा पशुओं की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के आरोप में निलंबित कर दिया गया था.
यह मामला पूर्वी उत्तर प्रदेश के महाराजगंज में मधवालिया गौ सदन से जुड़ा था. एक प्रारंभिक जांच समिति ने पाया था कि रजिस्टर में दर्ज बेसहारा गायों की संख्या वास्तविक आंकड़ों से मेल नहीं खाती थी. एक ऑन-फील्ड निरीक्षण से पता चला कि केवल 954 मवेशी थे, लेकिन रजिस्टर में 2,500 दिखाया गया था.
इसके बाद उपाध्याय को 14 जून 2020 को विशेष सचिव, राजनीतिक पेंशन, स्वतंत्रता सेनानी सैनिक बोर्ड विभाग के रूप में अगली पोस्टिंग मिली. पिछले साल जुलाई में उन्हें लखनऊ स्थित यूपी विकलांग सशक्तिकरण विभाग में विशेष सचिव के पद पर तैनात किया गया था.
टिबरेवाल ने अपनी शिकायत में बताया है कि कैसे ‘मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाते’ हुए अधिकारियों ने 13 सितंबर 2019 को उनकी संपत्ति के साथ-साथ परिवार के सभी सामान और दुकान में रखी दवाइयों को भी ध्वस्त कर दिया.
उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने बिना किसी कानूनी नोटिस, बिना किसी अधिग्रहण प्रक्रिया या उचित मुआवजे के उनके पुश्तैनी घर को ध्वस्त कर दिया. उन्होंने कहा कि कुछ ही मिनटों में घर और दुकान मलबे में तब्दील हो गए.
टिबरेवाल ने आरोप लगाया है कि अधिकारियों ने परिवार को जबरन घर से बाहर निकाला. उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें कैश बॉक्स से कीमती सामान निकालने के लिए एक मिनट का भी समय नहीं मिला.
इस ‘अमानवीय और आपराधिक कृत्य’ का विस्तार से वर्णन करते हुए टिबरेवाल ने आरोप लगाया कि अधिकारियों और पुलिस ने उनकी मां और गर्भवती भाभी के साथ भी दुर्व्यवहार किया और उनके खिलाफ शारीरिक बल का प्रयोग किया. टिबरेवाल का कहना है कि उनके दादा पीतराम टिबरेवाल ने 1960 के दशक में एक पंजीकृत विलेख (रजिस्टर्ड डीड) के माध्यम से संपत्ति खरीदी थी. उसके बाद उनके दादा की वसीयत के माध्यम से घर को उनकी मां लक्ष्मी देवी के नाम पर सरकारी दस्तावेजों में पंजीकृत किया गया था. टिबरेवाल और उनका परिवार पिछले 45 वर्षों से घर में रह रहे थे.
टिबरेवाल ने यह भी बताया कि ध्वस्तीकरण से एक दिन पहले डीएम ने उन्हें फोन करके उनके पिता और छोटे भाई मोहित को सड़क चौड़ीकरण परियोजना के संबंध में अपने कैंप कार्यालय की एक बैठक में शामिल होने के लिए कहा था. बैठक में पुलिस अधिकारी, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और जिला प्रशासन के अधिकारी और राष्ट्रीय राजमार्ग के परियोजना पर्यवेक्षक पहले से ही मौजूद थे.
टिबरेवाल ने बताया कि उन्हें वहां बताया गया कि निजी भूमि पर निर्माण कार्य नहीं ध्वस्त किया जाएगा और राजस्व मानचित्र के अनुसार लोक निर्माण विभाग को उपलब्ध सड़क की चौड़ाई के अनुसार ही काम आगे बढ़ेगा.
बात से पलटे अधिकारी
इसके बाद अधिकारियों ने राजमार्ग के दोनों ओर 26 फीट सड़क को पीले रंग से चिह्नित किया और टिबरेवाल से योजना के पांच फीट के दायरे में आने वाली अपनी संपत्ति के एक हिस्से को ध्वस्त करने के लिए कहा.
उन्होंने बताया कि वह घबरा गए और रातों-रात उक्त हिस्से को ध्वस्त कर दिया. हालांकि, अगले दिन उन्हें यह देखकर झटका लगा कि अधिकारियों ने रहस्यमय तरीके से अपना निर्णय बदल दिया था, उनके परिवार को ‘अंधेरे में’ रखते हुए बुलडोजर और अन्य मशीनों से उनके पूरे घर को ध्वस्त कर दिया गया. इस विध्वंस की कार्रवाई से पहले सड़क को अवरुद्ध करने के लिए भारी पुलिस बल की तैनाती की गई थी.
उन्होंने आरोप लगाया कि एफआईआर में नामित सभी लोग उचित नियमों या निर्धारित मापों का पालन किए बिना सड़क चौड़ीकरण के लिए मनमाने ढंग से संपत्तियों को ध्वस्त करने में वित्तीय गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की साजिश का हिस्सा थे.
मामले की एफआईआर में दंगा, आपराधिक षड्यंत्र, चोट पहुंचाने के इरादे से कानून की अवहेलना, गलत दस्तावेज तैयार करना, स्वेच्छा से चोट पहुंचाना, आपराधिक धमकी, शरारत, जाली दस्तावेजों को असली के रूप में इस्तेमाल करना, जालसाजी, किसी व्यक्ति को अपमानित करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग, गलत तरीके से बंधक बनाना और दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा या जीवन को खतरे में डालने के लिए जल्दबाजी या लापरवाही से काम करना जैसे आरोप शामिल हैं.
एफआईआर में नामित लोगों में एडीएम महाराजगंज कुंज बिहारी अग्रवाल, राजेश जयसवाल, महराजगंज नगर पालिका के तत्कालीन कार्यकारी अधिकारी राजेश जयसवाल, अधीक्षण अभियंता मणिकांत अग्रवाल और अशोक कनौजिया, अभियंता देव आनंद यादव, आरके. सिंह और राकेश कुमार शामिल हैं.
एफआईआर में स्थानीय खुफिया इकाई के दो निरीक्षकों राजन श्रीवास्तव और संतोष कुमार का भी नाम शामिल है. साथ ही नौ अन्य पुलिस अधिकारी- थाना प्रभारी, महाराजगंज सिटी सर्वेश कुमार सिंह, इंस्पेक्टर निर्भय कुमार, चौकी प्रभारी नीरज राय और सब-इंस्पेक्टर एसके सिंह रघुवंशी, अविनाश त्रिपाठी, जय शंकर मिश्रा, रणविजय, कंचन राय और मनीषा सिंह आदि के नाम भी शामिल हैं.
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