मध्य प्रदेश: टाइगर रिज़र्व और आसपास के 52 गांवों का आरोप, वन अधिकार अधिनियम के उल्लंघन हुआ

मध्य प्रदेश में रानी दुर्गावती टाइगर रिज़र्व और उसके आसपास के क्षेत्रों- दमोह, नरसिंहपुर और सागर की 52 ग्राम सभाओं का आरोप है कि सितंबर 2023 में रिज़र्व को अधिसूचित किए जाने के बाद उनके वन अधिकार दावों को अस्वीकार किए गए और ग्रामीणों को जबरन वहां से हटने के लिए मजबूर किया गया.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: द वायर)

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व और उसके आसपास के क्षेत्रों में वन अधिकारों को मान्यता न दिए जाने तथा जबरन बेदखली के प्रयासों से संबंधित 52 गांवों की याचिकाओं और शिकायतों का संज्ञान लेते हुए जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) ने मध्य प्रदेश सरकार को मामले की जांच करने तथा राज्य के वन विभागों और संबंधित जिला कलेक्टरों के परामर्श से इसका समाधान करने का निर्देश दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र ने दमोह, नरसिंहपुर और सागर जिलों की 52 ग्राम सभाओं से ज्ञापन मिलने के बाद 23 दिसंबर को मध्य प्रदेश आदिवासी कल्याण विभाग को पत्र लिखा.

ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि सितंबर 2023 में वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व को अधिसूचित किए जाने के बाद वन अधिकार दावों को अस्वीकार कर दिया गया और ग्रामीणों को जबरन रिजर्व से बाहर जाने के लिए मजबूर किया गया, जो वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (डब्ल्यूएलपीए), 2006 का उल्लंघन है.

इसमें आरोप लगाया गया है कि इसके अलावा ग्रामीणों को वन संसाधनों, वन उपज और खेतों तक पहुंचने से प्रतिबंधित किया गया है.

एमओटीए ने एमपी सरकार को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘यह ध्यान दिया जा सकता है कि समुदायों को एफआरए, 2006 के तहत निर्धारित उनके अधिकारों का प्रयोग करने से अलग करना, अधिनियम का उल्लंघन है. इसलिए, चूंकि राज्य सरकारें एफआरए कार्यान्वयन प्राधिकरण हैं, इसलिए यह सलाह दी जाती है कि राज्य वन विभागों, संबंधित जिला कलेक्टरों और डीएफओ के परामर्श से मामलों की जांच और समाधान किया जा सकता है.’

2,339 वर्ग किलोमीटर में फैला रानी दुर्गावती अभ्यारण मध्य प्रदेश का सबसे नया टाइगर रिजर्व है, जो रानी दुर्गावती और नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्यों के क्षेत्रों को जोड़कर तैयार किया गया है. दरअसल, इसे केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व में डूब जाने वाले 100 वर्ग किलोमीटर के प्रमुख जंगल की भरपाई के लिए बनाया गया है.

पत्र को आवश्यक कार्रवाई के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय के अनुसूचित जनजाति आयोग प्रभाग तथा दमोह, सागर और नरसिंहपुर जिला कलेक्टरों को भी भेजा गया है. इसके अलावा, इसे कार्रवाई के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भी भेजा गया है तथा वन्यजीव वार्डनों को उचित निर्देश जारी करने के लिए कहा गया है ताकि समुदायों के हितों की रक्षा की जा सके.

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम वन विभागों को बाघ संरक्षण के लिए ‘अछूते’ क्षेत्र बनाने का अधिकार देता है, जो मानव बस्तियों से मुक्त हों. हालांकि, ऐसे अछूते क्षेत्र तभी बनाए जाने हैं जब आदिवासी और वनवासी समुदायों के अधिकारों को मान्यता दी गई हो और उन्हें डब्ल्यूएलपीए और एफआरए के प्रावधानों के अनुसार बसाया गया हो. अधिकारों की मान्यता के बाद ग्रामीणों को केवल तभी स्थानांतरित और पुनर्वासित किया जा सकता है जब वे कानून के अनुसार स्वेच्छा से ऐसा करना चाहते हों.

जनजातीय कार्य मंत्रालय ने अपने पत्र में कहा, ‘विशेष रूप से महत्वपूर्ण वन्यजीव आवासों के लिए,एफआरए और डब्ल्यूएलपीए में यह निर्धारित किया गया है कि ग्रामसभा की स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति और निर्णयों में प्रभावित समुदाय की भागीदारी जैसी कुछ शर्तें पूरी होनी चाहिए, तभी राज्य सरकार किसी भी वन क्षेत्र में पुनर्वास शुरू कर सकती है.’

अधिकारों की गैर-मान्यता से संबंधित आरोपों के बारे में पूछे जाने पर नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य के प्रभागीय वनाधिकारी अब्दुल अलीम अंसारी ने इन आरोपों से इनकार किया.

अंसारी ने अखबार को बताया, ‘हम किसी भी परिवार को जबरन बेदखल नहीं कर रहे हैं. हमने पात्र परिवारों और गांवों को उस पैकेज के बारे में सूचित कर दिया है जो हम दे सकते हैं. बाघ अभयारण्य के अंदर कुल 93 गांव हैं, जिनमें से 40 को 2014 से स्थानांतरित किया गया है, जो मूल रूप से नौरादेही अभयारण्य क्षेत्र से हैं. हम आठ गांवों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में हैं, और बाकी को फिलहाल स्थानांतरित नहीं किया जा रहा है क्योंकि हमारे पास उनके लिए बजट नहीं है.’

अंसारी ने कहा, ‘सबसे अधिक गांव दमोह जिले में हैं, उसके बाद सागर और नरसिंहपुर का स्थान है.’