नई दिल्ली: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को सोपस्टोन (soapstone) खनन के कारण घरों को हुए नुकसान की रिपोर्ट मिलने के बाद राज्य के बागेश्वर जिले में सभी खनन गतिविधियों को तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी और समस्या की ओर से आंखें मूंद लेने के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों को फटकार लगाई.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने इसे विडंबनापूर्ण बताया कि प्रशिक्षित अधिकारियों ने पहाड़ी की तलहटी में खनन कार्यों की अनुमति दे दी, जबकि शीर्ष पर गांवों में बस्तियां हैं.
यह निर्णय न्यायालय द्वारा नियुक्त आयुक्तों द्वारा जिले में सोपस्टोन खनन पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद लिया गया.
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र की पीठ ने आदेश में कहा, ‘रिपोर्ट न केवल चिंताजनक है, बल्कि चौंकाने वाली भी है. रिपोर्ट और तस्वीरें स्पष्ट रूप से खननकर्ताओं द्वारा पूरी तरह से अराजकता को दर्शाती हैं और स्थानीय प्रशासन द्वारा उल्लंघन की ओर से आंखें मूंद लेने का सबूत हैं. इसके अलावा, रिपोर्ट और तस्वीरें, प्रथमदृष्टया दर्शाती हैं कि आगे की खनन गतिविधियों, जो पहले से ही घरों को नुकसान पहुंचा चुकी हैं, के परिणामस्वरूप भूस्खलन और निश्चित रूप से जानमाल की हानि होने की संभावना है.’
आयुक्तों की रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि धंसने का स्तर चिंताजनक है और क्षेत्र में सोपस्टोन खनन के कारण गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जिसका खामियाजा समुदाय को भुगतना पड़ रहा है.
अदालत ने कहा कि तस्वीरें बड़ी-बड़ी दरारें दिखाती हैं, जो आसन्न भूस्खलन का संकेत देती हैं जिससे कई लोगों की जान जा सकती है. अदालत ने कहा, ‘इसलिए, अगले आदेशों तक बागेश्वर जिले में सभी खनन कार्य तत्काल प्रभाव से निलंबित रहेंगे.’
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अवैध रूप से पेड़ों की कटाई हो रही है, खदान संचालकों द्वारा वन भूमि का अनाधिकृत उपयोग किया जा रहा है, नेपाल से विदेशी श्रमिकों को काम पर रखा जा रहा है और श्रम कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है. इसमें वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण तथा झरनों के सूखने की ओर भी इशारा किया गया है.
ज्ञात हो कि सितंबर 2024 में खबर आई थी कि बागेश्वर के कई गांवों के घरों में दरारें और भू-धंसाव हुआ यह जिसके लिए ग्रामीणों ने खनन को ज़िम्मेदार बताया था. इलाके के कांडा-कन्याल, कांडा और अन्य खनन स्थलों के गांवों में भूमि धंसने की समस्या पाई गई.
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा एनजीटी में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र की वनस्पतियों में ओक, देवदार और सरू के पेड़ शामिल हैं, और वहां के वन्यजीवों में तेंदुआ, जंगली सूअर और लोमड़ी शामिल हैं. इसके साथ ही इलाके का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल कालिका मंदिर भी इसी क्षेत्र में स्थित है.
मालूम हो कि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बागेश्वर जिले की कांडा तहसील के कई गांवों में सोपस्टोन खनन के कारण कई स्थानों पर दरारें आने से संबंधित ख़बरों का स्वत: संज्ञान लिया था और ग्रामीणों की शिकायतों का आकलन करने के लिए दो आयुक्तों को नियुक्त किया था.
टाइम्स ऑफ इंडिया ने सितंबर 2024 में रिपोर्ट किया था कि बागेश्वर जिले में 160 चालू खदानें हैं, जिनमें 30 नई सोपस्टोन खदानें शामिल हैं, जिन्हें 2024 में मंजूरी दी गई थी. स्थानीय निवासियों और कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि इनमें से कई साइटें खनन नियमों का उल्लंघन करती हैं, जैसे कि खनन विभाग या स्थानीय प्रशासन से औपचारिक प्राधिकरण के बिना प्रति साइट छह उत्खनन मशीनों सहित भारी मशीनरी का उपयोग करना.
रिपोर्ट में बागेश्वर के गांवों में 200 से ज़्यादा घरों पर पड़ने वाले ख़तरनाक भू-धंसाव को भी जिक्र किया गया था, जहां सड़कों, खेतों और घरों में दरारें आ गई थी. उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूडीएमए) ने जिले के 11 गांवों को संवेदनशील के रूप में चिह्नित किया था, जहां 450 घर खतरे में थे.
उल्लेखनीय है कि बागेश्वर जिले में काफी खड़िया भंडार हैं, जिसके चलते व्यापक खनन गतिविधियों का केंद्र बना रहता है.बताया जाता है कि इस क्षेत्र में 130 से अधिक सोपस्टोन खदानें चालू हैं, मुख्य रूप से कांडा घाटी में. सोपस्टोन 7,000 रुपये प्रति टन तक के भाव में बिकता है और इसका इस्तेमाल कागज, पेंट और सौंदर्य प्रसाधन जैसे उद्योगों में किया जाता है.
बता दें कि बागेश्वर की प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता लंबे समय से चिंता का विषय रही है, खासकर मानसून के मौसम में. करीब चार दशक पहले साल 1983 में भयाल टोक में भूस्खलन हुआ था, जिसमें 37 लोग मारे गए थे. इसके बाद साल 2010 में सुमगढ़ में हुए भूस्खलन में 18 स्कूली बच्चों की जान गई थी.
मालूम हो कि राज्य के ही जोशीमठ में साल 2023 की शुरुआत में लगभग 1,000 लोगों को जमीन धंसने और दीवारों पर पड़ी दरारों के चलते अपना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था.