राज्यों के पास मुफ़्त योजनाओं के लिए खूब पैसा है, मगर जजों के वेतन के लिए नहीं: सुप्रीम कोर्ट

अदालत न्यायिक अधिकारियों के वेतन और पेंशन के संबंध में लंबित एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस संबंध में जब अटॉर्नी जनरल ने सरकार के बढ़ते पेंशन बिल का ज़िक्र किया तब जस्टिस गवई ने सरकारों द्वारा मुफ़्त सुविधाएं और धनराशि दिए जाने पर टिप्पणी की.

(फोटो साभार: Wikimedia Commons)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (7 जनवरी) को एक अहम टिप्पणी में कहा कि राज्यों के पास मुफ्त योजनाओं (freebies) के लिए पैसा है, लेकिन जब न्यायाधीशों को वेतन और पेंशन देने की बात आती है तो वे वित्तीय संकट का दावा करते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने लाडली बहना योजना और आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किए गए हालिया वादों का हवाला दिया.

इस संबंध में जस्टिस गवई ने कहा, ‘राज्य के पास उन लोगों के लिए सारा पैसा है, जो कोई काम नहीं करते. जब हम वित्तीय बाधाओं के बारे में बात करते हैं तो हमें इस पर भी गौर करना चाहिए. चुनाव आते ही आप लाडली बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं, जिसमें आपको निश्चित राशि का भुगतान करना होता है. दिल्ली में अब किसी न किसी पार्टी की ओर से घोषणाएं होती हैं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो वे 2500 रुपये देंगे.’

मालूम हो कि अदालत न्यायिक अधिकारियों के वेतन और पेंशन के संबंध में लंबित एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

इस मामले में जस्टिस गवई ने मुफ्त सुविधाओं का जिक्र तब किया जब अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमन ने सरकार के बढ़ते पेंशन बिल का जिक्र करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

मामले में न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने कहा कि न्यायपालिका को इस मामले में वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता हो सकती है. उन्होंने कहा कि अधिक विविध न्यायपालिका सुनिश्चित करने के लिए न्यायाधीशों को बेहतर वेतन देने की जरूरत है.

यह घटनाक्रम ऐसे समय सामने आया है, जब शीर्ष अदालत ने चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही मुफ्त सुविधाओं की घोषणा को चुनौती देने वाली याचिकाओं को अपने पास रख लिया है, लेकिन अभी तक इस मामले पर विस्तार से विचार शुरू नहीं किया गया है.

गौरतलब है कि 2013 में सुब्रमण्यम बालाजी मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा कलर टीवी, साइकिल, मुफ्त मकान, बिजली या रोजगार देने के वादों को घूस या भ्रष्टाचार नहीं माना जा सकता है. ये सरकार पर निर्भर है कि वो नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करते समय लोगों की जरूरतों और अपने वित्तीय खजाने का ध्यान रखे. अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता कि सरकारें कैसे पैसे खर्च करें.

26 अगस्त, 2022 को तत्कालीन सीजेआई की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मुफ्त सुविधाओं पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं को तीन-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया था, जिसने कहा कि वह मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करने की प्रार्थनाओं पर गौर करेगी.