नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (7 जनवरी, 2025) को सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों में लगातार हो रही देरी पर केंद्र और राज्यों को फटकार लगाई. कोर्ट ने पूछा कि जब नियुक्तियां ही नहीं हो रही हैं, तो पारदर्शिता लाने वाले इस कानून और संस्थान का क्या लाभ है.
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने बताया कि केंद्रीय सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों के आठ पद खाली हैं और करीब 23,000 अपीलें लंबित हैं. कई राज्य सूचना आयोग 2020 से निष्क्रिय हैं, और कुछ ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत याचिकाएं स्वीकार करना बंद कर दिया है.
पीठ ने केंद्र सरकार के वकील से कहा, ‘एक संस्थान बनाया गया है, लेकिन यदि इसके तहत काम करने वाले लोग ही नहीं होंगे, तो इसका क्या उपयोग है?’
याचिकाकर्ता अंजलि भारद्वाज की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि फरवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और 2023 व 2024 में पारित आदेशों के बावजूद समय पर और पारदर्शी तरीके से नियुक्तियां नहीं हो रही हैं. उन्होंने कहा, ‘कानून को खत्म करने का सबसे आसान तरीका यह है कि सूचना आयोगों को निष्क्रिय कर दिया जाए.’
केंद्र ने बताया कि अगस्त 2024 में सूचना आयुक्तों के लिए आवेदन मांगे गए थे, जिन पर 161 आवेदन प्राप्त हुए. हालांकि चयन प्रक्रिया अभी भी चल रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को निर्देश दिया कि वह दो हफ्तों के भीतर एक हलफनामा दाखिल कर यह बताए कि चयन प्रक्रिया कब पूरी होगी, चयन समिति अपनी सिफारिशें कब फाइनल करेगी और आठ सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की अधिसूचना कब जारी होगी.
झारखंड की ‘विशेष परिस्थिति’ पर भी कोर्ट ने गौर किया, जहां विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की अनुपस्थिति के कारण राज्य सूचना आयोग की नियुक्तियां रुकी हुई हैं. आयोग 2020 से निष्क्रिय है और 8,000 से अधिक अपीलें लंबित हैं. सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी को निर्देश दिया कि वह चयन समिति के लिए अपने किसी सदस्य को नामित करे और 10 हफ्तों के भीतर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करे.
सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों को भी निर्देश दिया, जिन्होंने चयन प्रक्रिया शुरू तो की है, लेकिन इसे पूरा करने की कोई समयसीमा तय नहीं की. कोर्ट ने उन्हें दो हफ्तों के भीतर आवेदकों की सूची और चयन समिति के गठन की जानकारी देने और कुल आठ हफ्तों में प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया. राज्यों के मुख्य सचिवों को अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए गए.
लंबित मामलों का बढ़ता जा रहा है बोझ
पिछले साल अक्टूबर में अंजलि भारद्वाज की संस्था ‘सतर्क नागरिक संगठन’ ने रिपोर्ट (भारत में सूचना आयोगों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट कार्ड, 2023-24) जारी कर बताया था, सूचना आयोगों में चार लाख से अधिक शिकायतें और अपीलें लंबित हैं. सूचना आयुक्तों के पद रिक्त पड़े हैं. कई आयोग तो निष्क्रिय हो चुके हैं. कई आयोग बिना जवाब दिए आवेदन लौटा दे रहे हैं. प्रत्येक आयोग को अपने कार्यान्वयन की वार्षिक रिपोर्ट तैयार करनी होती है, ज़्यादातर ऐसा नहीं कर रहे हैं.
सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक़, 30 जून, 2024 तक भारत के सभी 29 सूचना आयोगों में लंबित अपीलों और शिकायतों की संख्या 4,05,509 थी. साल दर साल अपीलों/शिकायतों के बैकलॉग की संख्या बढ़ती जा रही है. 31 मार्च, 2019 तक 26 सूचना आयोगों में कुल 2,18,347 मामले लंबित थे. 30 जून, 2021 तक संख्या बढ़कर 2,86,325 हो गई. जून 2022 में लंबित शिकायतों और अपीलों की संख्या तीन लाख को पार कर गई थी.
पिछले साल, 30 जून, 2023 तक बैकलॉग 3,88,886 था. (इन आंकड़ों से पता चलता है कि गत पांच सालों में लंबित शिकायतों/अपीलों की संख्या 1,87,162 बढ़ गई है.)
क्या आरटीआई को कमजोर किया जा रहा है?
अक्टूबर 2024 में द वायर हिंदी से बातचीत में अंजलि भारद्वाज ने कहा था कि 2005 में क़ानून को मज़बूत बनाया गया था, लेकिन उसका अनुपालन सही से नहीं हो रहा है, उसे ठीक करने की ज़रूरत है.
अंजलि, बैकलॉग को बेहद गंभीर समस्या मानती हैं. उन्होंने कहा, ‘मामले लंबित होने से लोगों को बहुत समय तक इंतज़ार करना पड़ रहा है. हमारी रिपोर्ट बताती है कि अभी जो हालत है, अगर छत्तीसगढ़ और बिहार में एक नया आरटीआई दायर किया जाए तो उसकी सुनवाई का नंबर आने में चार से पांच साल तक का समय लग जाएगा. …अगर सूचना इतनी देरी से मिलेगा तो उसका क्या मतलब रह जाएगा. लोग सूचना मांगते हैं भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए, अपने अधिकारों को पाने के लिए, ऐसे में सूचना पाने के लिए पांच–पांच साल इंतज़ार करना पड़े तो उस सूचना का क्या महत्व रह जाएगा.’
अंजलि कहती हैं, ‘सरकारें अलग–अलग तरह से कोशिश कर रही हैं कि लोगों को सूचना न मिले क्योंकि जब सूचना सामने आती है तो सरकारों पर बहुत तरह के सवाल उठते हैं. सरकारों के लिए यह सहज नहीं होता है. ऐसे में लोगों के पास विकल्प यही है कि वे सूचना आयोग में जाकर सूचना मांगे. अपील और शिकायत करें. सूचना आयोग बहुत जरूरी है. सूचना आयोग का काम है कि अगर सरकार ग़लत तरीके से सूचना नहीं दे रही है तो सूचना आयुक्तों के पास यह शक्ति है कि वह सरकार को सूचना देने के लिए निर्देश दे सकें. जब सूचना आयोग सही से काम नहीं करेंगे. तब तक लोगों को सूचना नहीं मिलेगी. ख़ासकर ऐसी सूचना नहीं मिलेगी जो सरकार देना नहीं चाहती है. सरकार से सूचना दिलवाई जाई ये काम सूचना आयुक्तों का है.’
अंजलि भारद्वाज से बातचीत में यह बात उभरकर सामने आती है कि सूचना के अधिकार के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए यह बहुत जरूरी है कि सूचना आयुक्त सही से काम करें और ऐसे लोगों पर जुर्माना लगाया जाए जो सूचना नहीं दे रहे हैं.
अंजलि, आरटीआई के लिए चलाए गए राष्ट्रीय अभियान की सह–संयोजक रही हैं. उनका संगठन लंबे समय से सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर वंचित समूहों को उनका अधिकार दिलाने का काम कर रहा है.