दिल्ली: अरविंद केजरीवाल के पूर्व आवास को लेकर विवाद क्यों चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है?

अरविंद केजरीवाल के पूर्व सरकारी आवास के मुद्दे को लेकर हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को घेरा है. बुधवार को आप नेता मीडिया के साथ इस बंगले पर पहुंचे थे, जहां उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया गया.

आप सांसद संजय सिंह और दिल्ली के मंत्री सौरभ भारद्वाज. (फोटो साभआर: एक्स/@AamAadmiParty)

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र राजधानी के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का पूर्व आवास 6 फ़्लैगस्टाफ़ रोड एक बार फिर चर्चा में है. अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान बना ये सरकारी बंगला अब आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच खींचतान का प्रमुख मुद्दा बनता नज़र आ रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, बुधवार (8 जनवरी) के ताज़ा घटनाक्रम में आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और दिल्ली सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज को मीडिया सहित जब इस सरकारी आवास के अंदर नहीं जाने दिया, तो ‘आप’ नेता इसके बाहर ही धरने पर बैठ गए. इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री निवास 7 लोक कल्याण मार्ग की ओर मार्च किया और फिर पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद धरने पर बैठ गए.

दरअसल, अरविंद केजरीवाल के पूर्व सरकारी आवास के मुद्दे के ज़ोर पकड़ने के पीछे प्रमुख कारण हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा बार-बार इसका नाम लेकर ‘आप’ और केजरीवाल को घेरना है, जिसके बाद दोनों पार्टियां आमने-सामने हैं.

भाजपा द्वारा पूर्व में भी इस बंगले की साज-सज्जा पर केजरीवाल द्वारा अत्यधिक खर्च करने के आरोप लगाए जाते रहे हैं.

अब आम आदमी पार्टी का कहना है कि भाजपा नेता मीडिया के साथ केजरीवाल के पूर्व सीएम आवास पर आएं और दिखाएं कि सोने के टॉयलेट और स्विमिंग पूल कहां हैं. मीडिया खुद भाजपा का झूठ देखे. इसके बाद भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के राजमहल का दौरा उनको करवाए.

क्या है पूरा विवाद?

अरविंद केजरीवाल ने आबकारी नीति मामले में जमानत मिलने के बाद बीते साल 17 सितंबर को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था और चार अक्टूबर को अपने सरकारी आवास 6 फ़्लैगस्टाफ़ रोड के घर को खाली किया था. इसके कुछ ही दिनों बाद 9 अक्टूबर को आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया था कि दिल्ली की निर्वाचित मुख्यमंत्री आतिशी को उपराज्यपाल के इशारों पर उनके अधिकारिक आवास से बाहर निकाल दिया गया है.

इस दौरान मुख्यमंत्री कार्यालय ने आतिशी की एक तस्वीर भी जारी की थी, जिसमें वे अपने निजी आवास में फ़ाइलों पर दस्तख़त करती दिख रही हैं. उनके इर्द-गिर्द पैक किया हुआ सामान रखा है.

आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह ने तब कहा था, ‘नवरात्र के मौक़े पर एक महिला मुख्यमंत्री का सामान फेंक उसे घर से निकाल दिया गया है. दिल्ली की सत्ता से 27 सालों से बाहर भाजपा बिना चुनाव जीते ही मुख्यमंत्री निवास पर क़ब्ज़ा करना चाहती है.’

वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने कहना था कि ऐसा कोई नियम नहीं है, जिसके तहत ये आवास मुख्यमंत्री आवास के रूप में निर्धारित हो.

दिल्ली में भाजपा के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने अपने बयान में कहा था, ‘आम आदमी पार्टी नियमों की अनदेखी कर इस शीशमहल को अपने पास रखना चाहती है.’

इस मामले पर पीडब्ल्यूडी यानी लोक निर्माण विभाग का भी जवाब सामने आया था. पीडब्ल्यूडी की तरफ़ से एक बयान में कहा गया कि यह आवास अधिकारिक रूप से आतिशी को आवंटित नहीं किया गया है.

मालूम हो कि पीडब्ल्यूडी ही दिल्ली में सरकारी घरों के निर्माण और देखभाल का काम करता है. विभाग ही मंत्रियों को बंगले आवंटित करता है. आतिशी इस विभाग की मंत्री भी हैं.

इस विवाद पर पीडब्ल्यूडी की तरफ़ से कहा गया कि 6 फ्लैगस्टाफ़ पर निवास के निर्माण को लेकर विजिलेंस के भी कुछ मामले चल रहे हैं. ऐसे में पीडब्ल्यूडी के लिए ये ज़रूरी है कि वह आवास को फिर से आवंटित करने से पहले इसकी गहन जांच करे और वहां मौजूद सामान की सूची तैयार करे.

पीडब्ल्यूडी का ये भी कहना था कि इस आवास की जो चाबी पीडब्ल्यूडी को वापस की गई थी उसे कुछ समय बाद वापस ले लिया गया था जबकि मकान हस्तांतरित करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई थी.

कब शुरू हुआ विवाद?

2015 में लगातार दूसरी बार सीएम बनने के बाद केजरीवाल अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के साथ इस घर में रहते थे. पूर्व सीएम के सरकारी बंगले को लेकर इस पूरे विवाद की शुरुआत साल 2020 में कोविड महामारी और लॉकडाउन के दौरान हुई थी, जब सीएम आवास की छत गिरी थी. 1942 में निर्मित पीडब्ल्यूडी के स्वामित्व वाली इस संपत्ति में तब पांच बेडरूम थे और एक अलग कार्यालय स्थान था.

कोविड के दौरान जब बंगले की छत की मरम्मत का काम चल रहा था, तो एक शौचालय की छत भी ढह गई थी. इसके कारण पूरे घर की संरचनात्मक सुरक्षा ऑडिट और उसके बाद नवीनीकरण की जरूरत पैदा हुई.

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी इसका हवाला दिया है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि मार्च 2020 में तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मंत्री सत्येंद्र जैन ने इस आवास के पुनर्निर्माण और एक अतिरिक्त मंजिल के निर्माण का प्रस्ताव दिया था और इसे जरूरी बताया था.

इसके बाद जुलाई 2020 में संपत्ति पर नए निर्माण का प्रस्ताव रखा गया था क्योंकि मौजूदा बिल्डिंग पर पुनर्निर्माण नहीं किया जा सकता था.

इस मामले में भाजपा को तभी निर्माण कार्य का पता चला. भाजपा के एक सूत्र ने अखबार को बताया था कि कई भाजपा नेता जब प्रवासी श्रमिकों के लिए व्यवस्था की कमी से लेकर एमसीडी द्वारा पैसे न दिए जाने जैसे मुद्दों पर सीएम आवास के पास विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे, तभी उन्होंने निर्माण कार्य होते देखा था.

पार्टी के सामने ये मुद्दा सबसे पहले उठाने वाले नेताओं में शामिल भाजपा के एक नेता ने अखबार को बताया, ‘हमने लॉकडाउन के तहत इस तरह की गतिविधि पर प्रतिबंध के बावजूद इस संपत्ति की परिधि के भीतर पूरे जोरों पर चल रहे निर्माण पर सवाल उठाया.’

8 मई, 2023 को वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय माकन की शिकायत के आधार पर उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने तत्कालीन मुख्य सचिव नरेश कुमार को सीएम के बंगले में कथित उल्लंघनों और ‘जरूरत से अधिक ख़र्च और अस्पष्ट खर्च’ की जांच करने के आदेश दिए.

एक सरकारी अधिकारी ने एक्सप्रेस से कहा कि यह पूर्व मुख्य सचिव (नरेश कुमार) थे, जिन्होंने दिल्ली में सेवाओं को अपने हाथ में लेने के लिए केंद्र द्वारा अध्यादेश जारी करने पर ‘आप’ सरकार और नौकरशाही के बीच गतिरोध के दौरान मुख्यमंत्री आवास के नवीनीकरण में अनियमितताओं की सीमा को रेखांकित किया था. इस मामले में सितंबर 2023 में सीबीआई ने प्रारंभिक जांच दर्ज की.

अगस्त 2024 में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) ने इस आवास पर निर्माण से संबंधित अवैधताओं में कथित भूमिका के लिए तीन इंजीनियरों को निलंबित कर दिया. इसे ‘आप’ ने तब विच-हंट कहा था.

पिछले महीने, दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए दिल्ली सतर्कता निदेशालय ने पीडब्ल्यूडी को जांच शुरू करने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा था कि किसके द्वारा या कहां से सीएम के बंगले में पाए गए ‘भव्य सामान’ दिए गए थे.

केजरीवाल के अक्टूबर 2024 में घर खाली करने के बाद पीडब्ल्यूडी ने इस घर पर कब्ज़ा कर लिया और इसके अंदर की वस्तुओं की सूची बनाने पर जोर दिया. इस बीच आतिशी-पीडब्ल्यूडी-भाजपा और ‘आप’ के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलते रहे.

11 दिसंबर 2024 को इस मुद्दे पर केजरीवाल पर हमला तेज करते हुए भाजपा ने घर के अंदरूनी हिस्सों के कई कथित ‘टूर वीडियो’ जारी किए, साथ ही दिल्ली का करोड़पति शीर्षक वाला एक रैप गीत भी जारी किया, जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा.

भाजपा के आरोपों पर पलटवार करते हुए ‘आप’ ने कहा कि भाजपा राष्ट्रीय राजधानी में ‘कानून व्यवस्था की खराब स्थिति को उजागर करने के केजरीवाल के प्रयास से ध्यान हटाने के लिए उन पर निशाना साध रही है. पुराने घर की ‘जर्जर’ स्थिति पर प्रकाश डालते हुए ‘आप’ नेता संजय सिंह और राघव चड्ढा ने इसकी मरम्मत और जीर्णोद्धार को उचित ठहराने की कोशिश की और बताया कि केजरीवाल के बुजुर्ग माता-पिता के साथ-साथ उनके छोटे बच्चे भी इसमें रहते थे.

हालांकि, भाजपा ने घर की मरम्मत और नवीनीकरण के ऑडिट का विवरण देने वाली कैग रिपोर्ट का हवाला देते हुए सवाल उठाया कि 7.91 करोड़ रुपये के प्रारंभिक अनुमान से, 2022 में काम समाप्त होने तक इस आवास के काम की कुल लागत 33.66 करोड़ रुपये कैसे हो गई.

मालूम हो कि खबरों में इस मकान के निर्माण में जरूरत से अधिक ख़र्च किए जाने का दावा किया गया था. भाजपा ने पिछले साल भी इसे मुद्दा बनाने का प्रयास भी किया था.

अब इस मामले में पीडब्ल्यूडी की विजिलेंस जांच के अलावा सीबीआई भी इस आवास के निर्माण में हुई कथित अनियमितताओं की जांच कर रही है.