यूपी: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल मस्जिद केस की कार्यवाही 25 फरवरी तक रोकी

संभल की शाही जामा मस्जिद की प्रबंधन समिति स्थानीय अदालत द्वारा मस्जिद के सर्वे के ख़िलाफ़ पुनरीक्षण याचिका सुनते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही को 25 फरवरी तक रोक दिया है.

(फोटो: श्रुति शर्मा/द वायर हिंदी)

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (8 जनवरी) को संभल की शाही जामा मस्जिद मामले में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर 25 फरवरी तक रोक लगा दी है.

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने संभल सिविल कोर्ट के 19 नवंबर 2024 के आदेश, जिसमें अधिवक्ता आयुक्त द्वारा मुस्लिम स्थल का सर्वेक्षण करने के लिए कहा गया था, के खिलाफ इस मुगलकालीन मस्जिद की प्रबंध समिति द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को सुनते हुए रोक लगाने का आदेश पारित किया.

ज्ञात हो कि संभल सिविल जज सीनियर डिवीजन ने 19 नवंबर को कुछ हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा एक आवेदन का संज्ञान लेने के बाद जल्दबाजी में मस्जिद का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था. इन कार्यकर्ताओं ने दावा किया था कि मुगल सम्राट बाबर के समय में निर्मित यह इस्लामी धार्मिक स्थल मूल रूप से भगवान विष्णु के कल्कि अवतार को समर्पित प्रमुख हिंदू मंदिर था.

अदालत के आदेश के कुछ घंटों के भीतर मस्जिद का प्रारंभिक सर्वेक्षण करने के बाद अधिवक्ता आयुक्त रमेश राघव के नेतृत्व में सर्वेक्षण दल 24 नवंबर की सुबह फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी के दूसरे दौर के लिए मस्जिद पहुंचा था. हालांकि, उस दिन हालात हिंसक हो गए.

शाही जामा मस्जिद के पास की गलियों में मस्जिद के दूसरे तनावपूर्ण सर्वेक्षण के दौरान भड़की हिंसा में कम से कम चार मुस्लिम मारे गए थे. मृतकों के परिजनों ने पुलिस पर उन्हें गोली मारने का आरोप लगाया है, वहीं अधिकारियों ने इस आरोप से इनकार किया है. इस हिंसा में कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे और कई वाहनों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया गया था.

इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 28 नवंबर 2024 को हिंसा की जांच के लिए उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश देवेंद्र कुमार अरोड़ा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग द्वारा न्यायिक जांच का आदेश दिया था.

इसी दौरान, 12 दिसंबर 2024 को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने उपासना स्थल अधिनियम, 1991 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिया कि देश की अदालतें अन्य धार्मिक स्थलों पर दावा करने वाले कोई भी नए मुकदमे दर्ज न करें. शीर्ष अदालत ने अदालतों को अगले नोटिस तक लंबित मुकदमों में सर्वेक्षण के निर्देश सहित कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने से भी रोक दिया था.

अदालत के यह निर्देश संभल की मस्जिद के मामले पर भी लागू हुए थे. अधिवक्ता आयुक्त की सर्वेक्षण रिपोर्ट स्थानीय अदालत में पेश की गई और उसे सीलबंद लिफाफे में रखा गया है. मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि इस मामले पर इस अदालत को विचार करना चाहिए.

मस्जिद की प्रबंध समिति की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अग्रवाल ने राज्य और केंद्र सरकार, जिलाधीश और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से भी जवाब मांगा है.

गौरतलब है कि संभल जिले की आधिकारिक वेबसाइट पर मस्जिद को ‘ऐतिहासिक स्मारक’ बताया गया है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि इसे पहले मुगल बादशाह बाबर के निर्देश पर बनाया गया था. हालांकि, वरिष्ठ वकील हरि शंकर जैन के नेतृत्व में हिंदू कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि मस्जिद विष्णु के अंतिम अवतार कल्कि को समर्पित एक प्राचीन मंदिर का स्थल था. मुख्य वादी हरि शंकर जैन के वकील और बेटे विष्णु शंकर जैन ने कहा कि 1529 में बाबर ने हरिहर मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया और इसे मस्जिद में बदलने की कोशिश की थी.

उनका यह भी कहना है कि जामा मस्जिद की देखभाल करने वाली समिति द्वारा इसका ‘जबरन और गैरकानूनी तरीके से’ इस्तेमाल किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि मस्जिद प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 की धारा 3 (3) के तहत संरक्षित एक स्मारक है. उन्होंने यह भी दावा किया कि उन्हें मस्जिद तक ‘पहुंच से वंचित’ किया जा रहा है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)