सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यप्रणाली पर चिंता जताई, कहा- सिस्टम ध्वस्त हो चुका है

एक संपत्ति के स्वामित्व से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस बात का उल्लेख किया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट देश का सबसे बड़ा हाईकोर्ट है, लेकिन दुर्भाग्य से वहां फाइलिंग और लिस्टिंग की प्रक्रिया ध्वस्त हो चुकी है... कोई नहीं जानता कि कौन-सा मामला सूचीबद्ध किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो साभार: आधिकारिक वेबसाइट)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (9 जनवरी) को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा एक मामले पर जल्द विचार करने के निर्देश के बावजूद सुनवाई नहीं करने का जिक्र करते हुए उच्च न्यायालय की स्थिति को ‘चिंताजनक’ बताया है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, अदालत ने एक संपत्ति के स्वामित्व के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर उत्तर प्रदेश के दिवंगत सांसद मुख्तार अंसारी के बेटों ने दावा किया है.

जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कुछ उच्च न्यायालयों के कामकाज पर प्रकाश डाला और कहा, ‘कुछ उच्च न्यायालयों के बारे में हम नहीं जानते कि वहां क्या होगा… इलाहाबाद उच्च न्यायालय उनमें से एक है, जिसके बारे में चिंतित होना चाहिए. दुर्भाग्य से वहां फाइलिंग और लिस्टिंग की प्रक्रिया बर्बाद हो गई है…कोई नहीं जानता कि कौन सा मामला सूचीबद्ध किया जाएगा.’

इस बात का उल्लेख करते हुए कि इलाहाबाद हाईकोर्ट देश का सबसे बड़ा हाईकोर्ट है, जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह पिछले शनिवार को वहां मौजूद थे और कुछ संबंधित जजों और रजिस्ट्रार के साथ उनकी लंबी बातचीत हुई थी.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट लखनऊ के जियामऊ में एक संपत्ति के स्वामित्व से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहा था. इस संपत्ति पर साल 2020 में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने मुख्तार अंसारी और उनके बेटों, जिसमें अब्बास अंसारी भी शामिल थे, की ओर से जमीन पर बनाए गए बंगले को बुलडोजर से ढहा दिया था. सरकार की योजना प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत फ्लैट बनाने के लिए संपत्ति का इस्तेमाल करने की थी.

‘कोई राय व्यक्त करने का इच्छुक नहीं’

इस संबंध में पीठ में शामिल अन्य जज जस्टिस एनके सिंह ने उच्च न्यायालय द्वारा मामले का फैसला होने तक आवास इकाइयों के निर्माण पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया.

अब्बास अंसारी की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि हालांकि, उक्त जमीन पर कब्जे के संबंध में उनकी याचिका बार-बार इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गई थी, लेकिन कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई गई थी.

सिब्बल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 21 अक्टूबर को उच्च न्यायालय से अंतरिम रोक के आवेदन पर शीघ्र सुनवाई करने को कहा था लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया है. इसके बाद जस्टिस सूर्यकांत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की व्यवस्था पर टिप्पणी की.

हालांकि, उच्च न्यायालय ने इसे सुनवाई के लिए क्यों नहीं लिया, इस बारे में वरिष्ठ वकील की दलीलों ने पीठ को प्रभावित नहीं किया.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘चूंकि हमने कोई नोटिस जारी नहीं किया है और हाईकोर्ट की रजिस्ट्री से कोई रिपोर्ट भी नहीं मिली है, इसलिए हम इस बारे में कोई राय व्यक्त करने के इच्छुक नहीं हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां थीं, जिनमें याचिकाकर्ता की रिट याचिका पर बेंच ने गौर नहीं किया जबकि इसे समय-समय पर सूचीबद्ध किया गया था.’

कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में बताया है कि अधिकारियों की ओर से लखनऊ के जियामऊ गांव में स्थित प्लॉट संख्या 93 पर निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया गया है, जिस पर याचिकाकर्ता अपने स्वामित्व का दावा कर रहे हैं.

कोर्ट ने आगे कहा कि अगर तीसरे पक्ष के अधिकार बनाए जाते हैं, तो इससे याचिकाकर्ताओं को भारी नुकसान हो सकता है. इसलिए अधिकारियों के साथ-साथ याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई होने तक साइट पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया जाता है.