नई दिल्ली: 8 जनवरी को दुबई में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की काबुल में मुलाक़ात हुई. साल 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद यह अब तक की सबसे उच्चस्तरीय बैठक थी. विशेषज्ञ इस मुलाकात को तालिबान सरकार से संपर्क बनाए रखने भर की क़वायद नहीं मान रहे है.
दुबई में हुई बैठक से यह संकेत मिलता है कि भारत अब तालिबान के साथ अपने संबंधों में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपना रहा है. बैठक के बाद तालिबान ने भारत से अफगान व्यापारियों, मरीजों और छात्रों को वीज़ा जारी करने की अपील की है.
अफगान विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता हाफिज़ ज़िया अहमद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने यह अनुरोध भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री के समक्ष रखा.
हालांकि, भारत सरकार के बयान में वीज़ा पर कोई चर्चा नहीं की गई. बयान में सिर्फ यह कहा गया कि भारत अफगान जनता की विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार है.
तालिबान क्या चाहता है?
तालिबान की सरकार, जो अपने देश में अब तक स्वास्थ्य, शिक्षा और व्यापार के ढांचे को नहीं संभाल पायी है, वह चाहती है भारत उनके मरीजों, छात्रों और व्यापारियों को वीजा दे.
अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा और अशरफ गनी सरकार के पतन के बाद भारत सरकार ने सभी भौतिक वीज़ा रद्द कर दिए थे. अफगान नागरिकों को निर्देश दिया गया कि वे भारत यात्रा के लिए e-Emergency X-Misc वीज़ा के तहत आवेदन करें.
इसके बाद भारतीय सरकार ने वीज़ा जारी करने में सख्ती शुरू कर दी. छात्रों को भी वीज़ा देने से इनकार कर दिया गया. विदेश मंत्रालय ने शिक्षा मंत्रालय और उच्च शिक्षा निकायों और उन विश्वविद्यालयों, जहां अफगान छात्र पहले से ही नामांकित हैं, के साथ समन्वय करके विश्वविद्यालयों से अफगान छात्रों के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम और कक्षाएं शुरू करने को कहा था.
कुछ अफगानियों को चिकित्सा उपचार के लिए भारत आने की अनुमति दी गई थी, लेकिन यह संख्या अगस्त 2021 से पहले की तुलना में बहुत कम थी. अफगान व्यापारी, विशेष रूप से सूखे मेवों का व्यापार करने वाले, वर्षों से भारत आते रहे हैं. लेकिन तालिबान के सत्ता संभालने के बाद भारत ने उनकी संख्या भी सीमित कर दी है.
भारत वीजा देने में क्यों बरत रहा है सख्ती?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगान नागरिकों को वीज़ा जारी करना भारत के लिए एक कठिन निर्णय है. इसके पीछे तीन मुख्य कारण हैं:
तालिबान सरकार की मान्यता: भारत ने आधिकारिक रूप से तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है.
सुरक्षा चिंताएं: भारतीय खुफिया एजेंसियों ने अफगानिस्तान से वीज़ा आवेदकों को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएं व्यक्त की हैं.
वीज़ा सेवा का अभाव: काबुल स्थित भारतीय दूतावास और अफगानिस्तान के अन्य भारतीय वाणिज्य दूतावासों में वीज़ा सेक्शन वर्तमान में काम नहीं कर रहा.
तालिबान ने भारतीय को भरोसा दिलाया कि वीज़ा प्राप्त करने वालों की पूरी जांच-पड़ताल की जाएगी और किसी भी प्रकार की सुरक्षा चिंता नहीं होगी. हालांकि, भारत के सामने सुरक्षा के अलावा भी कई चुनौतियां हैं. काबुल में भारतीय दूतावास में वर्तमान में एक छोटा तकनीकी दल कार्यरत है, जो मानवीय सहायता प्रदान करने और तालिबान सरकार से संपर्क बनाए रखने का काम करता है. वीज़ा सेवाओं को फिर से शुरू करने के लिए दूतावास में बड़ी संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता होगी.
यदि भारत वीज़ा सेवाएं बहाल करता है, तो यह तालिबान के प्रति भारत के राजनयिक दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत दे सकता है. यह कदम एक राजनीतिक और कूटनीतिक निर्णय होगा, जो भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकता है.
हालांकि, भारत ने अभी तक तालिबान शासन को आधिकारिक मान्यता नहीं दी है. लेकिन तालिबान चाहता है कि भारत उसके शासन को मान्यता दिए बिना व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाए.
भारत को विकल्प क्यों बना रहा है तालिबान?
पाकिस्तान के अफगानों के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैये के कारण तालिबान भारत को एक बेहतर विकल्प मान रहा है. हालिया बैठक ऐसे समय हुई जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव अपने चरम पर है.
हाल ही में पाकिस्तानी वायु सेना के अफगानिस्तान पर हमलों में महिलाओं और बच्चों समेत कई लोग मारे गए. पाकिस्तान ने दावा किया कि ये हमले तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (जो पाकिस्तान से अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा है) के ठिकानों पर किए गए, लेकिन काबुल ने इसे ‘आक्रामकता’ करार दिया. तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को तालिबान का समर्थन हासिल है.
दूसरी तरफ़ भारत है जिसने अफगानिस्तान को दवाएं, टीके, सर्जिकल सामान, गर्म कपड़े, स्टेशनरी, और गेहूं की आपूर्ति की है. 2024-25 के बजट में भारत ने अफगानिस्तान के लिए 200 करोड़ रुपये की सहायता राशि आवंटित की है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान और ईरान के साथ बढ़ते सीमा विवादों के बीच भारत के लिए यह एक अवसर है कि वह ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को मानवीय सहायता और व्यापार बढ़ाने की दिशा में कदम उठाए. पारंपरिक मित्रता और मानवीय सहायता के माध्यम से भारत अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति को मजबूत कर सकता है.