नई दिल्ली: सरकारी खरीद में मेक इन इंडिया के 2017 के नियमों को लागू करना चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है. पब्लिक प्रोक्योरमेंट (प्रिफरेंस टू मेक इन इंडिया) ऑर्डर, 2017 के तहत नियमों का उल्लंघन कर घरेलू आपूर्तिकर्ताओं के साथ भेदभाव करने वाले 3,500 से अधिक उच्च–मूल्य निविदाओं (64,000 करोड़ रुपये मूल्य की) में से 40% निविदाएं पालन न करे हुए पाई गईं. यह खुलासा औद्योगिक नीति और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी ) द्वारा किया गया.
प्रमुख उल्लंघन और भेदभाव के मामले
कई निविदाओं में विदेशी ब्रांड जैसे सिस्को, एचपी, डेल, ओटिस, कोने, आदि का जिक्र किया गया, जो घरेलू कंपनियों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देते हैं. निविदाओं में अत्यधिक टर्नओवर या उत्पादन क्षमता की शर्तें शामिल की गईं, जिससे घरेलू आपूर्तिकर्ता वंचित हुए.
लिफ्ट से लेकर सीसीटीवी कैमरे, चिकित्सा उपकरण और डेस्कटॉप कंप्यूटर तक, रिकॉर्ड दिखाते हैं कि विभाग विदेशी ब्रांडों की ओर रुख कर रहे थे. उनका तर्क था कि ये घरेलू ब्रांडों की तुलना में आर्थिक रूप से अधिक फायदे वाले और गुणवत्ता में बेहतर हैं.
कई विभागों ने यह भी उल्लेख किया कि जिन विदेशी ब्रांडों का उनकी निविदाओं में उल्लेख किया गया है, उनके उत्पादन संयंत्र भारत में मौजूद हैं.
फरवरी 2023 में डीपीआईआईटी ने पाया कि अक्टूबर 2021 से केंद्रीय सरकारी क्रय इकाइयों द्वारा जारी की गई 1,750 उच्च-मूल्य निविदाओं (सेवाओं के लिए 1 करोड़ रुपये से अधिक, वस्तुओं के लिए 50 करोड़ रुपये से अधिक, और कार्यों के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक) में से 936 निविदाएं, जिनकी कुल कीमत 53,355 करोड़ रुपये थी, 2017 के नियमों के अनुरूप नहीं थीं.
आंकड़े और शिकायतें
2020 में, 2017 के आदेश को और सख्त किया गया था. इसमें एक वर्गीकरण पद्धति जोड़ी गई, जिसके तहत:
- यदि पर्याप्त स्थानीय क्षमता और प्रतिस्पर्धा हो, तो विभागों को केवल उन स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं से खरीद करनी चाहिए, जिनके उत्पादों में 50% से अधिक स्थानीय सामग्री हो.
- यदि ऐसा न हो, तो 20-50% स्थानीय सामग्री वाले आपूर्तिकर्ताओं से भी खरीद की जा सकती है.
- जिनके उत्पादों में 20% से कम स्थानीय सामग्री हो, उन्हें ‘गैर-स्थानीय आपूर्तिकर्ता’ के रूप में वर्गीकृत किया गया और उन्हें केवल विशेष मामलों (जैसे वैश्विक निविदा) में अनुमति दी गई.
पिछले वर्ष नवंबर तक, मेक इन इंडिया पहल की 10वीं वर्षगांठ के बाद 2017 के आदेश का पालन न करने वाली उच्च-मूल्य निविदाओं की संख्या बढ़कर 1,502 हो गई. यह 3,590 जांची गई निविदाओं का 42% था, जिसकी कुल कीमत 63,911 करोड़ रुपये थी.
- 982 निविदाएं (65%) 2017 के आदेश के प्रावधान शामिल न करने के कारण गैर-अनुपालक थीं.
- 450 निविदाएं (30%) विदेशी ब्रांड का उल्लेख करने के कारण गैर-अनुपालक पाई गईं.
- 152 निविदाएं (10%) में अत्यधिक टर्नओवर शर्तें होने के कारण गैर-अनुपालक थीं.
2019 में, प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रधान सचिव और डीपीआईआईटी सचिव ने मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे अपनी क्रय एजेंसियों को ऐसी प्रथाओं से बचने की सलाह दें.